गिरो जैसे गिरती है बर्फ
ऊँची चोटियों पर
जहाँ से फूटती है मीठे पानी की नदियाँ
गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह
रीते पात्र में पानी की तरह गिरो
उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए
गिरो आंसू की एक बूंद की तरह
किसी के दुःख में
गेंद की तरह गिरो
खेलते बच्चों के बीच
गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह
एक कोंपल के लिए जगह खाली करते हुए_____नरेश सक्सेना जी (साभार- तदभव)
ayisi kavita jise baar baar padne par bhi fir se
ReplyDeletepadne ka man kare........