Friday, October 7, 2011
Saturday, October 1, 2011
पान
रूंधना पड़ता है
चारो तरफ से
बनाना पड़ता है
आकाश के नीचे
एक नया आकाश,
बचाना पड़ता है
लू और धूप से
सींचना पड़ता है
नियम से,
बहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
पान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर,
स्वाद और रंगत के लिए
चूने कत्थे की तरह
पिसना पड़ता है
गलना पड़ता है,
इसके बाद भी
इलायची सी सुगंध
प्रेम से ही आती है !
चारो तरफ से
बनाना पड़ता है
आकाश के नीचे
एक नया आकाश,
बचाना पड़ता है
लू और धूप से
सींचना पड़ता है
नियम से,
बहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
पान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर,
स्वाद और रंगत के लिए
चूने कत्थे की तरह
पिसना पड़ता है
गलना पड़ता है,
इसके बाद भी
इलायची सी सुगंध
प्रेम से ही आती है !
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