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Wednesday, March 24, 2010

अयोध्या के राम

चौदह कोसी अयोध्या में
आतें हैं तीर्थ यात्री
परिक्रमायें करते हैं नंगे-पांव
उनके पाओं के साथ
चलती है अयोध्या
डोलते है राम
आस्था के जंगल में
छिलते हैं पाओं के छाले
रिसता है खून
तीर्थ यात्री
दुखों की गठरियाँ ढ़ोते हैं सिर पर
उफनती है सरयू
की धो दें उनके पांव
उमगती है हवा
की सुखा दे उनके घाव
पर उनकी परिक्रमा
कल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की.

Friday, March 12, 2010

चाहना...


मुझे नीड़ नहीं
बस, मुझे थोड़ी सी छांव चाहिए
कोई एक टहनी
या कोई नर्म फुनगी
या फिर आकाश का एक छोटा कोना
तुम्हारे नीले वितान तले
भरनी है मुझको उड़ान

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