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Saturday, December 19, 2009

मेरे हिस्से की मिठास

मेरे मन के समंदर में
ढेर सारा नमक था
बिलकुल खारा
स्वादहीन
उन नोनचट दिनों में
हलक सूख जाता थी
मरुस्थली समय
जिद्द किये बैठा था
नन्हें शिशु सी मचलती थी प्यास
मोथे की जड़ की तरह
दुःख दुबका रहता था भीतर
उन्ही खारे दिनों में
समंदर की सतह पर
मेरे हिस्से की मिठास लिए
छप-छप करते तुम्हारे पांव
चले आये सहसा
और नसों में घुल गया चन्द्रमा .

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