यदि ला सको तो
ला देना
अपनी अनुपस्थिति का अंजन
अपने स्पर्श का पीत- वसन
अपनी दृष्टि का अंगराग
साथ में लाना
कुछ फूल स्मित के
वसंत के लिए ,
ला सको तो
लाना
अपनी बांहों का कंठहार
अपने चुम्बनों का गीत
सहमे समय के लिए
धडकनों की निर्द्वंद धुन
और ढेर सारी उम्मीद भी
वसंत के लिए ,
कुछ जगह बनाकर
जरुर लाना
ठूंठ हुई उम्र के लिए
नई नर्म कोंपलें
अंधेरों के लिए
थोडा सा सूरज
तपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी
लाना
वसंत के लिए .
vasant ke aagman par utkrashth rachna.
ReplyDeleteवसंत पंचमी कि हार्दिक शुभ कामनाएँ...इस अवसर की सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप को .
इतनी सुन्दर कविताओं के इस ब्लॉग ( जिसमें शास्त्रीय आभा हो ) से मैं
ReplyDeleteदूर था संयोग से आ गया , यहाँ आ कर अच्छा लग रहा है ... अनुसरण कर लिया है ...
अच्छी कविताओं को अब पढता ही रहूगा ...
आपकी कविताओं में --- ''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ ठीक
आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ" --- इन पंक्तियों का परिचय बखूबी मिलता है ... आभार ,,,
....... बसंत पंचमी की शुभकामनाएं ........
बसंत के रंग को और रंगती .. बसंती महक को और महकाती... प्रियतम को पुकारती इस कविता में विरह और संयोग आपस में सराबोर हैं .. प्रेम है या विरह ! या दोनों एक ही हैं ! बहुत सुन्दर बसंती कविता .. बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा , अमरेन्द्र जी ,महेंद्र जी ,अर्चना जी ,अमिताभ जी ...आप सबको कुसमाकर के आगमन पर हार्दिक शुभकामनायें .
ReplyDeleteठूंठ हुई उम्र के लिए
ReplyDeleteनई नर्म कोंपलें
अंधेरों के लिए
थोडा सा सूरज
तपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी
लाना
वसंत के लिए!!!
बहुत सुंदर कविता है जो न जाने कितनी कितनी उम्मीदें जगा गई !वसंत तो आता ही है उमंग और उत्साह देने के लिए !ये अलग बात है की इस तपते वक्त में वह खामोश सा रह जाता है !
वसंत पंचमी की शुभ कामनाएं !
बसंत के आगमन में और किसी नेह की प्रतीक्षारत अनुपम रचना ............ आपको बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकमनाएँ
ReplyDeleteमैंने बहुत पुकारा इस बार बसंत को..वो आया और पसर गया, मुझे पता ना चला। जब पढी आपकी कविता तो समझ में आया वो कहां पसर गया है...इस बेमुरौव्वत समय में मौसमो का अहसास जाता रहा। ना ठीक से हवा छूती है ना धूप आंखें चौंधियाती है...मैं अपने हिस्से का वसंत खोज रही हूं...सुशीला जी..यार..क्या करती हो।
ReplyDeleteअरे वाह! इत्ती सुन्दर बासंती कविता लिखी और हम अभी तक इसे देख ही नहीं पाये। बहुत खूब!
ReplyDeleteअपनी अभिव्यक्ति में काफ़ी साफ़ सरल और अच्छी कविताएँ हैं सुशीला जी आपकी.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.
अंधेरों के लिए
ReplyDeleteथोडा सा सूरज
तपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी
लाना
वसंत के लिए .
-वाह!! मौसम खिल उठा कविता में..सुन्दर कविता...बधाई!!
ठूंठ हुई उम्र के लिए
ReplyDeleteनई नर्म कोंपलें
अंधेरों के लिए
थोडा सा सूरज
तपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी
लाना
वसंत के लिए!!!
बहुत सुंदर कविता है.बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये .
chir virah ki yaad lekar jee raha koi
ReplyDeletechir milan ki aas lekar hee raha koi
jab kabhi hamse miloge jaan jaaoge
umra bhar ehsaas lekar bhi raha koi.
krishnabihari
साथ में लाना कुछ फूल स्मित के....अच्छी कविता......
ReplyDeleteप्राकृतिक बिम्बों में आपने, भरी प्रेम की ज्वाला.
ReplyDeleteप्याला है अमृत का, आपने ढाली मधुरिम हाला.
ढाली मधुरिम हाला, बसन्त बौराया तब.
क्या कर पाती कलम, पूरी सुशीला सामने हो जब.
कह साधक क्या चाहत उभरी इन बिम्बों में!
भरी प्रेम की ज्वाला, प्राकृतिक बिम्बों में.
sahiasha.wordpress.com
सारी मुश्किल घड़ियों में बसंत तुम आना और थम जाना मेरे अंदर्……मेरे आंगन…
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता हमेशा की तरह
सुन्दर कविता।
ReplyDeleteतपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी लाना........बहुत खूब
पहली बार आना हुआ, लेकिन सार्थक !!
ReplyDeleteकौन कहता है कि ब्लॉग में स्तरीय लेखन नहीं हो रहा है.आपकी कविताओं में भोर की उजास है.इतनी सहजता से बड़ी बात कह जाति हैं, घोर आश्चर्य!!
सहमे समय के लिए
धडकनों की निर्द्वंद धुन
और ढेर सारी उम्मीद भी
मुबारक बाद, दिल से!!
lucknow me to milnaa naa ho paaya...lekin itnee pyaree kavita padhkar man prasann ho gaya...aapko bhi basant, aur basatee hokar mile..
ReplyDeletesamay se vartalap karti is sundar abhivyakti ke liye dher sari badhai.
ReplyDeletepehli baar yahan aai or bahut achcha laga bahut pyaara likhti hain aap
ReplyDeleteवाह कितना सुन्दर चित्रण! एकद बासन्ती कविता. बधाई.
ReplyDeleteSUPERB!THIS BASANTI POEM REVEALS PANORAMA OF POETIC MATURITY & DEPTH OF EXPRESSION OF MADAM SUSHILA PURI.IMMENSELY MEANINGFUL,THOUGHT & MARVELLOUS POEM. KEEP IT UP !
ReplyDeleteयदि ला सको तो
ReplyDeleteला देना
अपनी अनुपस्थिति का अंजन
apki sampoorn rachna mein ek vinamrata poorn aagrah bahut achchha laga.vinamrata apne aap mein tushti evam santushti deti hai.apki racha sachmuch sarahneey hai. badhai!!
वसंत के लिए ,
ReplyDeleteकुछ जगह बनाकर
जरुर लाना
...apadhapi ke is daur men Vasant par apki yah kavita behad masum aur prabhavi lagi...badhai.
अगली कविता का इंतजार है!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअनुपस्थिति, स्पर्श,दृष्टि ठूठ हुई उम्र,अँधेरे तपते वक़्त जितनी निराकार अमूर्त भावनाए है उनके लिए मूर्त प्रतिमान .......
ReplyDeleteखोज ज़बरदस्त है मिलेगा सब मिलेगा लगे रहिये
शुभकामनाये
राजवंत राज
अच्छी कविता है.
ReplyDeleteअनूप जी आपकी आज्ञा सिर-माथे ...
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक धन्यवाद .
ReplyDeleteक्या कहें, लाजवाब कर दिया आपने, बहुत सुंदर कविता प्रस्तुत करने के लिए आभार।
ReplyDelete