मेरे प्रेम की गठरी में
थोड़े शब्द हैं
तो ढेर सारा मौन है
कुछ उदासियाँ हैं
तो अनंत हसीं है
मेरी इस गठरी में
दुबकी है कई अजन्मीं खुशियाँ,
मेरे प्रेम की गठरी में
कच्चे-पक्के रास्ते हैं
तो जंगली पगडंडियाँ भी हैं
मेरे वहाँ कस्तूरी बस्ती है
वन-वन भटकती नहीं
मेरे पास
मृगछौने सा समय करता है किलोल,
मेरे प्रेम की गठरी में
चुटकी भर ठिठुरन है
तो अंजुरी भर धूप है
मेरी इस पोटली में
एक ऐसी छीनी है
जिससे हो सकता है आसमान में सुराख,
मेरे प्रेम की गठरी में
एक छाव है जहां
सुस्ताता है उस पार का बटोही
मेरे यहाँ हुआ करती हैं
तृप्ति की कई-कई नदियाँ
मेरे पास लहरों की पूरी कथा है
मैंने अपनी गठरी में बाँधा है
एक नई धरती एक नया आसमान।
( लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारित )
main to aapki fan ho gayi.. :)
ReplyDeleteवाह आपकी गठरी तो कल्पवृक्ष है। सब कुछ है इसमें। वाह! शानदार!
ReplyDeleteपूरा मन ही खिल उठ है कविता में... अति सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..वाह!
ReplyDeleteमैंने अपनी गठरी में बाँधा है
ReplyDeleteएक नई धरती एक नया आसमान ..
वाह बहुत ही लाजवाब ...... प्रेम से लबालब है आपकी गठरी ... कोमल एहसास समेटे नाज़ुक रचना है ......... उमंग जगाती .... सपनों में ले जाती रचना ............
bahut khoobsurat rachna hai.
ReplyDeleteaapkee is gathree se to hum bhi bandhe hue hain...
ReplyDeletelaajwaab rachna...bahut sundar...
बिलकुल शेफाली !!!! आपने सही देखा .....मेरी इस गठरी में मेरे, आप सभी दोस्त बंधे हैं .हार्दिक आभार.
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ReplyDeletetripti ki nadiyan...behtarine ...shilp
ReplyDeleteek aisi chheni hai jis se ho sakta hai
aasman me suraakh......wah ...kamaal....
bahut hi sunder abhivyakti.badhai....
suno yaar
hamme bhi ek baar apne gaon le chalo....
us phyzaan ka hum pe bhi kucch is tarah ka asar ho jaaye
प्रेम की गठरी का सुन्दर मनोहारी चित्रण ...ये गठरी है ही ऐसी...जिसके पास है वो सबसे धनवान है...
ReplyDeleteनीरज
तुम्हारी प्रेम की गठरी में ऐसी ऐसी चीज़ें हैं जिनकी हमें तलाश है !एक बार गठरी खोल दो ना प्लीज़
ReplyDeleteजरुर अंशू ! आपका बहुत स्वागत है ,मेरा गाँव तुम्हारा गाँव भी है .
ReplyDeleteप्रज्ञा ! उस गठरी में तुम भी तो हो !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रहा...प्रेम अकेला ऐसा विषय है, जो भावनात्मक क्षेत्र में दखल रखने के बावजूद अपनी तरफ दुनिया को झुकाने की शक्ति रखता है...और भावना का विस्तार कविता में हो या कहानी में..इसका विस्तार अनंत है...मुझे पसंद आई कविता..खासकर...प्रेम का अनोखा होने से पहले अति साधारण विवरण कविता में उतर आया है...और इसे और स्पष्टता की ज़रूरत नहीं..
ReplyDeletenishant
बड़ी ही सशक्त और सम्भावनाओ से भरपूर है,यह kvita ! sachmuch prem ki gathari me ab bhi bahut kuchh है jisase duniya anjan है ! badhai !!!
ReplyDeleteसुदंर कविता। दो पंक्तियों के बीच स्पेस सिंगल होता तो ज्यादा पठनीय रहता।
ReplyDeleteआपकी गठरी में तो जैसे सबकुछ ही समा गया है...बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteउत्तम
ReplyDeletekavita utkrisht hai,pasand aai.bahut-bahut dhanyavad.
ReplyDeletelaxmi kant.
aapki prem ki gadri to itni badi hai ki sara jag hi usme sama jaye. bahut accha laga.
ReplyDeletehttp://sameerpclab2.blogspot.com
मेरे प्रेम की गठरी में ,
ReplyDeleteचुटकी भर ठिठुरन है
तो अंजुरी भर धूप है !
........
जैसे सब कुछ कह दिया हो.
बहुत ही भावपूर्ण कविता..आप की कविता में पाठक को संग बहा लिए जाने की अद्भुत क्षमता है.
[ देर से पहुँचने के लिए क्षमा chahti hun ,आप की जो फीड आई है उस में दिया लिंक पृष्ठ उपलब्ध नहीं है बता रहा है]
सुशीला जी आपकी इस गठरी से तो जलन होने लगी है ......!!
ReplyDeleteइस गठरी का कोई जवाब नहीं, यह सलामत रहे, भार बढता रहे, सहन कर सकने के लिए प्रेम भी बढता रहे। इतने अनंत विस्तार की इस शानदार कविता के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं।
ReplyDeletehmmm.. prem shabda itna hi vistrit hota haishayad ki isme sab kuchh samaya hota hai... kaun kab kya aur kaise payega ye alag alag vyakti ki sthiti paristhiti aur vyaktitva par nirbhar karta hai...
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार .
ReplyDeleteमैं देर से आया इस जादुई गठरी के करीब .. लेकिन उम्मीद है मेरे हिस्से में भी कुछ न कुछ ज़रूर आयेगा.... ख़ुदा इस गठरी को बदनज़र से बचाए ... आमीन!
ReplyDeleteaap ne apni gathree me bhandha hai na kawel ek nayee dharti aur ek naya aasman ko parantoo apne annant prashansakoon ko bhi.allah kare zor-e-qalam aur ziyada!
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ReplyDeletewah..lazwab....tar ho gaye aapke lafzo ke barish me....
ReplyDeletewah sushila ji kya gathari ha aapk sare mausam ..le aai esme ..girish..
ReplyDeleteइसे देखे बिना निकल लेता तो सच में बहुत कुछ खो देता! थोड़े शब्दों के साथ ढेर सारा मौन लिए कविता की उठान ही कितनी लाजवाब है! और फिर, गठरी क्या खुलती है.. एक तलिस्म बुनती हुई प्रेम की एक अलग ही दुनिया खुलती चली जाती है!! वाह! वाह! एक पूरा घना जंगल अपने नैसर्गिक सौंदर्य के साथ साकार होने लगता है ..वधाई ! ऐसे ही किसी वन में कृष्ण ने जिया होगा प्रेम..सर्वश्रेष्ठ पांचतारा कविता!
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