सच में प्रेम और पृकृति इतने ही नजदीक हैं.....मोहब्बत में आदमी खुदा जैसा ही बन जाता है और अद्भुत सृजना करता है...... बहुत कमाल की कविता है.... ........डॉ अमरजीत कौंके
prakriti और प्रेम के gahre sambandh यूँ तो rachnaaon में आते rahte हैं ....... पर आपने jitni khoobsoorti के साथ उसे अपनी रचना में utaara है वो कमाल है .......... लाजवाब लिखा है ........
बतौर महबूब 'मैंने'हमेशा कहा - तुम हर जगह हो, हर ओर हो और 'मेरी' दीवानगी की हद है कि हर शय में 'मुझे' तुम नजर आए। लेकिन इस कविता में 'मैंने' 'तु्म्हारी' दीवानगी को पहचाना...माना। मोहब्बत ने एक और मंजिल छू ली। बहुत खूबसूरत।
kavita aapke vicharon ki tarah hi sundar hai. ---------------- aapka jo sawaal tha usaka jawab hai HAAN. ham hi wo kumarendra hain stri vimarsh wale lekh ke......
सरल भाषा का प्रयोग किया और सरलता से सब कुछ कह दिया आपकी कविता ने आप भी इतने ही सरल होंगे उम्मीद है अच्छा लिखा तुमने मुझे ही तो लिखा बार-बार लगातार अच्छा लिखा .......मेरे ब्लॉग पर भी एक बार आयिए कोई सुझाव हो तो जरूर देना , मैं इंतजार करूंगा आपका पाठक ......विंकल ...
वाह....दृष्टि पूर्णता और व्यापक दृष्टि के इतने बड़े आयामों को एक छोटी सी रचना में समेटकर एक अद्भुत कार्य निभाया गया है.....हालांकि दृष्टि के नज़रिए होते हैं...मगर इस रचना को पढ़ते पढ़ते आप संकीर्णता से बचते बचते आते हैं....बेहतरीन रचना....
bahut hi achchi poem hai,prem main aadmi ko har cheez main apna premi nazar aata hai.ishq haqeequi ki baat karein to kahen ki har cheez mein khuda ka jalwa nazar aata hai.
aapki kavitaye komal anubhootiyon ki sandar parinati hai. shubhkamnaye. aapki bhavanao ko maine kuchh aage badhaya hai. pshayad pasand aa jaye. dekhe... girish pankaj-94252 12720 ------------------------------------------- likh sakoo to zaingi me pyar likhna chahati hoo bas yahi sansaar ka mai saar likhna cahati hoo rok paye rok le ye nafaraton ki aandhiyaan pyar ke hi shabd mai har baar likhna chahti hooo
वाह!! बहुत खूब!!
ReplyDeleteहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.
ReplyDeleteआपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
प्रेम की महाभावना को विराट संस्कार देती कविता या यूँ कहें कि प्रेम की विराटता को उजागर करती कविता।
ReplyDeleteआप इतना कम क्यों रचती हैं? प्रोफाइल में housewife की जगह गृहिणी लिखिए न। यह अधिक गरिमामय और अर्थगुरु है। हिन्दी तो है ही।
प्रेम को बहुत बड़ा कैनवास दिया है ! प्रेम और
ReplyDeleteप्रकृति को एक दूसरे का सुन्दर साहचर्य देकर उन्हें एकाकार कर दिया है तुमने .. बहुत बधाई
waah prem ki sunder anubhuti,awesome.
ReplyDeleteसच में प्रेम और पृकृति इतने ही
ReplyDeleteनजदीक हैं.....मोहब्बत में आदमी
खुदा जैसा ही बन जाता है और
अद्भुत सृजना करता है......
बहुत कमाल की कविता है....
........डॉ अमरजीत कौंके
वाह ...!
ReplyDeleteऔर इस का असर यह हुआ की मैं मैं न रही.. tum ho gayee:)
यह गौरव सम्पूर्ण सत्ता पा लेने का !
ReplyDeleteतुम से चल कर तुम तक पहुंचने का !
अद्भुत है यह प्रेम कविता .....असंख्य शुभ कामनाये !
वाह सुशीला जे इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति ? कमाल है बधाई
ReplyDeleteतुमने चाँद लिखा
ReplyDeleteवह मुस्कराता रहा रात भर
तुमने हवा लिखी
नहा लिया उसने चंदन पराग
वाह जी वाह...कितने सुन्दर शब्द और कमाल के भाव...बेहद खूबसूरत रचना...
नीरज
prakriti और प्रेम के gahre sambandh यूँ तो rachnaaon में आते rahte हैं ....... पर आपने jitni khoobsoorti के साथ उसे अपनी रचना में utaara है वो कमाल है .......... लाजवाब लिखा है ........
ReplyDeleteयह एक उत्कृष्ट कविता है कथ्य मे भी और शिल्प के स्तर पर भी ।
ReplyDeleteतुमने मुझे ही तो लिखा
ReplyDeleteबार-बार
लगातार
बड़ा अच्छा लिखा है। पूरी कविता बहुत अच्छी लगी।
खिल गए गुल या खुले दस्ते हिनाई तेरे
ReplyDeleteहर तरफ तू है तो फिर तेरा पता किस से करें ...:)
rachna bahut sundar hai aapki
तुमने मुझे ही तो लिखा
ReplyDeleteबार-बार
लगातार
बहुत बहुत अच्छी कविता. एक नज़र इधर भी डाल लें....
http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/09/blog-post_17.html
तुमने मुझे ही तो लिखा
ReplyDeleteबार-बार
लगातार
बहुत ही खूबसूरत कविता है ....
कमाल है !! बहुत खूब !!!
ReplyDeleteबतौर महबूब 'मैंने'हमेशा कहा - तुम हर जगह हो, हर ओर हो और 'मेरी' दीवानगी की हद है कि हर शय में 'मुझे' तुम नजर आए। लेकिन इस कविता में 'मैंने' 'तु्म्हारी' दीवानगी को पहचाना...माना। मोहब्बत ने एक और मंजिल छू ली। बहुत खूबसूरत।
ReplyDeletekavita aapke vicharon ki tarah hi sundar hai.
ReplyDelete----------------
aapka jo sawaal tha usaka jawab hai HAAN. ham hi wo kumarendra hain stri vimarsh wale lekh ke......
बहुत सुंदर लिखा है आपने. पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteकविता यहाँ तक खींच लायी मुझे...चिट्ठा-चर्चा से!
ReplyDeleteप्रेम के हजारों रंग इसी तरह आपकी कविताओं में आते रहें, बहुत ही सुंदर कविता है यह। क्या कहूं, बस दिल से बधाइयां ले लीजिए।
ReplyDeleteshukria. apki is rachna ka bhi koi jawab nahin.
ReplyDeletejo aapne likha laajawab likha.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति एकदम सरल शब्दों में---अच्छी लगी आपकी कविता।
ReplyDeleteपूनम
सरल भाषा का प्रयोग किया और सरलता से सब कुछ कह दिया आपकी कविता ने
ReplyDeleteआप भी इतने ही सरल होंगे उम्मीद है
अच्छा लिखा
तुमने मुझे ही तो लिखा
बार-बार
लगातार
अच्छा लिखा .......मेरे ब्लॉग पर भी एक बार आयिए
कोई सुझाव हो तो जरूर देना , मैं इंतजार करूंगा
आपका पाठक ......विंकल ...
बेहद स्वच्छ, सरल अभिव्यक्ति जो कविता बन कर चमत्कृत कर देती है.........अब तक की पढी सबसे कमनीय कविता........
ReplyDeleteसुशीला जी,
ReplyDeleteकोमला भावों की अप्रतिम अभिव्यक्ती मन को छू गई।
बहुत ही अच्छी रचना पढ़अने को मिली नारी को संपूर्ण अभिव्यक्त करती हुई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
प्रेम की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति. मन के भीतर तक उतरता प्रेम. एहसास देता हुआ अपने होने का. बधाई.
ReplyDeleteवाह....दृष्टि पूर्णता और व्यापक दृष्टि के इतने बड़े आयामों को एक छोटी सी रचना में समेटकर एक अद्भुत कार्य निभाया गया है.....हालांकि दृष्टि के नज़रिए होते हैं...मगर इस रचना को पढ़ते पढ़ते आप संकीर्णता से बचते बचते आते हैं....बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteNishant kaushik
bahut hi achchi poem hai,prem main aadmi ko har cheez main apna premi nazar aata hai.ishq haqeequi ki baat karein to kahen ki har cheez mein khuda ka jalwa nazar aata hai.
ReplyDeleteaapki kavitaye komal anubhootiyon ki sandar parinati hai. shubhkamnaye. aapki bhavanao ko maine kuchh aage badhaya hai. pshayad pasand aa jaye. dekhe... girish pankaj-94252 12720
ReplyDelete-------------------------------------------
likh sakoo to zaingi me pyar likhna chahati hoo
bas yahi sansaar ka mai saar likhna cahati hoo
rok paye rok le ye nafaraton ki aandhiyaan
pyar ke hi shabd mai har baar likhna chahti hooo
तुमने मुझे ही तो लिखा
ReplyDeleteबार-बार
लगातार
bahut sundar abhivakti hai.
तुमने लिखी
ReplyDeleteकविता
वोह बिखर गयी
धरती आकाश में मोती के दानो की तरह
उस नटखट चाँद को चिढाती रही
फिर खेलने लगी उसी के साथ
बादलों के पीछे
नहा लिया उसने चंदन पराग
ReplyDeleteतुमने मुझे ही तो लिखा
बार-बार
लगातार..
phir se ek khoobsoorat ant ke saath likhi gayi ek sunder kavita........
अरे ऐ सुसीला! का लिखा है री!
ReplyDeleteप्रेम को बहुत बड़ा कैनवास दिया है ! प्रेम और
ReplyDeleteप्रकृति को एक दूसरे का सुन्दर साहचर्य देकर उन्हें एकाकार कर दिया है तुमने .. बहुत बधाई