Thursday, August 20, 2009
उसकी खोज
वह खोजती है
उन शब्दों का साहचर्य
जहाँ आत्मा के पार का संसार
जीवित होता है,
और बांधता है पूरा आकाश,
वह खोजती है
उन क्षणों का सौन्दर्य
जहाँ शब्दों के बीच का मौन
महाकाव्य रचता है
सरल संस्तुतियों के साथ,
वह खोजती है
उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास
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उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
ReplyDeleteजहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास
निशब्द हूँ आपकी इस रचना पर । लाजवाब। बधाई
बहुत आत्मीय लगी आपकी रचना. बधाई.
ReplyDeleteमोक्ष से सहवास के बाद जन्म लेता है जीवन.....फिर-फिर सँवरने के लिए..फिर एक नई जिजीविषा लिए......अभूतपूर्व क्रम है..हम कभी थकते भी नहीँ......बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई..
ReplyDeleteshabd brmha hai.......iski vyakhya karti,
ReplyDeleteyh kvita abhutpurw hai.....shabdon ka sahchry.....
shabdo ka moun........anuthi abhivykti hai........
apki khoj jari rhe......shubhkamnayen.!!!
आप की प्यार कविताओं का कोई जवाब नहीं...
ReplyDeleteइन कविताओं में जीवन का यथार्थ भी रूपमान
होता है और मोहब्बत की शिद्दत और गहराई
भी...छोटे छोटे अहसासों से लबरेज़ इन कविताओं
में अपने बहुत ही सूक्षम पलों को पकडा
है....दुआ करता हूँ और भी खुबसूरत
रचनाएं पढने को मिलें.....डॉ.अमरजीत कौंके
अलका जी के ब्लॉग पर से आप तक पहुचना हुआ .
ReplyDeleteअध्यात्म ,और जीवन दर्शन की गहरी समझ लिए
अतीन्द्रिय अनुभव की समर्थ अभिव्यक्ति को देख कर
कुछ पल समय रुक गया
फिर देखता रहा
आदमजात बेखौफ दिखनेकी
ललक की तेजस्विता .
और अब कहना पड़ेगा
वाह क्या बात है ?
जहाँ अथाह एकांत में
ReplyDeleteकिया था उसने
मोक्ष से सहवास मोक्ष के साथ सहवास यानि अमरता ! जीवन के प्रति बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण है तुम्हारा !!!
बहुत ऊंची सोच है. इस खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
ReplyDelete"jahan shabdon ke beech ka maun mahakavya rachta hai"...... aise pal kya wakai mein naseeb hote hain ??
ReplyDeleteवह खोजती है
ReplyDeleteउस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास
--जबरदस्त गहराई है विचारों में और उतनी ही बेहतर अभिव्यक्ति!! वाह!! बधाई.
अच्छी कविता है. बधाई.
ReplyDeleteप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
बस एक शब्द.....""गज़ब.....!!""
ReplyDeletedunia mein kitni khoj hui
ReplyDelete.....par tumahri khoj ne
mujhe GANTAVYA diya.
masterpiece....amazing.
kuchh pal khone ke liye vivash karti rachna sarahneey hai. badhai!!
ReplyDeletebahut sundar rachna....badhaai aapko
ReplyDeleteआपके विचारों में बहुत गहराई है...वाकई रचना बहुत सुन्दर है
ReplyDeleteक्या अद्भुत बात कह दी आपने.....यूँ तो इस कविता रूपी वेद का हर इक शब्द ही "असीम....."है....और यह वही महसूस कर सकता है....जो इन शब्दों के "उस" तल तक पहुँच पाए.....बाकि आखिरी की इन पंक्तियों ने जैसे अपनी पूरी असीमता को उजागर कर दिया है.....और यहीं पर मैं अपने शब्द खोकर 'मौन'में जा रहा हूँ.....!!!!!
ReplyDeleteवह खोजती है
उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास.......!!!!!
वह खोजती है
ReplyDeleteउन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
bahut sunder ... badhayee...
लो...मैं आ गई आपकी दुनिया में. बहुत प्यार लिख रही हैं आप, वो भी बेखौफ आदमजात सी..फोटो से भी बेखौफ दिख रही हैं.यूं ही बने रहिए..मेरी बधाई स्वीकारे..आपकी दुनिया छान रही हूं...
ReplyDeletebar bar padhne ka man karta hai,
ReplyDeleteATAMANUBHUTI ki PARAKASHTTHA hai.
wonderful.
सुन्दर! बहुत दिन हो गये अब नई रचना आनी चाहिये।
ReplyDeleteवह खोजती है
ReplyDeleteउन शब्दों का साहचर्य
जहाँ आत्मा के पार का संसार
जीवित होता है,
और बांधता है पूरा आकाश,
apki is rachna par badhai........
bahut hi khoobsoorat abhivyakti...
अद्भुत कविता...समाजी बंधनों से उपर उठकर...आत्मा की अनंत गहराइयों से निकालकर लनाई हैं आप इस कविता को....क्या कहूं.. अपनी ही एक कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं...'आम्रपाली चाहती है आखिरी बार रमण करना, मृत्यु की तरह आएं तथागत'.... बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteadbhut ! adbhut adbhut! mujhe lagaa main kahin kho gayee hun...duur kahin..
ReplyDeletebahut hi achchee kavita..
Is gudh,gambhir aur arthpurn rachna ke liye badhai swikaren.
ReplyDeleteजहाँ शब्दों के बीच का मौन
ReplyDeleteमहाकाव्य रचता है.....Is kavita ko padkr yhi kha ja sakta hai....Nice wordings...
shukria.
ReplyDeleteMOKSH SE SAHEWAAS ...accha bandhan hai.
haan ek kam to pura ho gaya lekin ab kasak serial chaloo hai.kuch na kuch chalta hi raheta hai thik vaise hi jaise rachnaaien hoti rahati hain.aur chale na chale;who cares?bas lekhan hamesha chaltaa rahe,inhi duaaon ki ummid mein HAYA
/पिछले २ अक्टूबर २००८ की शाम
ReplyDeleteगांधीजी के तीन बंदर राज घाट पे आए.
और एक-एक कर गांधी जी से बुदबुदाए,
पहले बंदर ने कहा-
''बापू अब तुम्हारे सत्य और अंहिंसा के हथियार,
किसी काम नही आ रहे हैं ।
इसलिए आज-कल हम भी एके४७ ले कर चल रहे हैं। ''
दूसरे बंदर ने कहा-
''बापू शान्ति के नाम ,
आज कल जो कबूतर छोडे जा रहे हैं,
शाम को वही कबूतर,नेता जी की प्लेट मे नजर आ रहे हैं । ''
तीसरे बंदर ने कहा-
''बापू यह सब देख कर भी,
हम कुछ कर नही पा रहे हैं ।
आख़िर पानी मे रह कर ,
मगरमच्छ से बैर थोड़े ही कर सकते हैं ? ''
तीनो ने फ़िर एक साथ कहा --
''अतः बापू अब हमे माफ़ कर दीजिये,
और सत्य और अंहिंसा की जगह ,कोई दूसरा संदेश दीजिये। ''
इस पर बापू क्रोध मे बोले-
'' अपना काम जारी रखो,
यह समय बदल जाएगा ।
अमन का प्रभात जल्द आयेगा । ''
गाँधी जी की बात मान,
वे बंदर अपना काम करते रहे।
सत्य और अंहिंसा का प्रचार करते रहे ।
लेकिन एक साल के भीतर ही ,
एक भयानक घटना घटी ।
इस २ अक्टूबर २००९ को ,
राजघाट पे उन्ही तीन बंदरो की,
सर कटी लाश मिली ।
Posted by DR.MANISH KUMAR MISHRA at 08:03 0 comments
Labels: hindi kavita. hasya vyang poet, गाँधी जी के तीन बंदर
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जहाँ शब्दों के बीच का मौन
ReplyDeleteमहाकाव्य रचता है
सरल संस्तुतियों के साथ,
वह खोजती है
उन आत्मीय संबोधनों के स्वर
जहाँ पीड़ा भी संवरती है
निर्वसन निराकार,
वह खोजती है
उस तोष के कुछ सूत्र
जहाँ अथाह एकांत में
किया था उसने
मोक्ष से सहवास
.......maine kaha na ki aapki har kavita ka ant bahut hi khoobsoorat hai.....
ekdum dil ko chhoo lene wala..........
Saari kavitaayein padhne k baad kehne k liye kuchh raha hi nahi...
ReplyDeleteSundar...Aap bhi aur aapki kavitaayein bhi...