गूंगी अयोध्या
टूटते हैं मन्दिर यहाँ
टूटती है मस्जिद यहाँ
टूटकर बिखर जाते हैं अजान के स्वर
चूर चूर हो जाती हैं घंटियों की स्वरलहरियां
कोई नही बचाता यहाँ सरगमों के स्वर
कोई नही पोछता सरयू के आंसू
उसकी लहरों की उदास कम्पन
अक्सर भटकती है सरयू
खोजते हुए सीता की कल-कल हँसी
(24 july 2009 ki "India News" magazine mein dekhein)
(Editor-Dr.Sudhir saxena)
atisundar .....atisundar
ReplyDeleteअतिसुन्दर तो है पर १८ साल बाद थोड़ी बूढ़ी सी नहीं लगती आपको ?
ReplyDeleteउसकी लहरों की उदास कम्पन
ReplyDeleteअक्सर भटकती है सरयू
खोजते हुए सीता की कल-कल हँसी
bahut hi lajawab
bahut sunder ... sarayu ka derd aaj bhi vahi hai ... sushila tumane utaar diya shabdon ke roop men .. ati sunder
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...................
ReplyDeleteन तैमुर -ओ बाबर की सन्तान कोई ,
न अरब है न अफगान कोई ,
न जादू अलग है न खुशबु अलग है
न जमुना अलग है ,न सरजू अलग है ,
बस इक रुद -ए-गंगा है हद्द -ए नजर तक .
राही मासूम रजा
सरयू का दर्द क्या खूब कहा आपने...
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और आकर यहीं अटक गया...आप कमाल का लिखती हैं...शब्द और भाव विलक्षण हैं...आपकी एक एक करके सारी पोस्ट पढ़ गया...माँ सरस्वती आप पर यूँ ही मेहरबान रहे ये ही कामना है...
ReplyDeleteनीरज
झकझोर देने वाली रचना.
ReplyDeleteवाकई,
कहीं कुछ न बचा. बचा है तो बस आपसी दूरियां, तनाव, अविश्वाश, हिंसा, लूट-खसोट,आदि-आदि.
सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.
बहुत सुन्दर. आपको पढ़कर अच्छा लगा. शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteVery very true. A good satire on Kalyugi man..
ReplyDeleteThanks for sharing.
अयोध्या क्या कहे मजहबी मतलबी लोगों ने इसे बेजुबान बहरा बना दिया |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना. बधाई. मेरे ब्लौग पर आने के लिये धन्यवाद भी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना. जब सब धर्मों का लक्ष्य एक है, तो क्यों हम खामख्वाह धर्म के नाम पर लड़कर इंसानियत को कलंकित करते हैं. विचारनीय है.
ReplyDeleteAchcha laga aapke blog par aakar.Yun hi likhte rahiye.Shubkamnayen.
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteमान के भाव प्रभावित करते हैं !
ऐसा प्रतीत होता है कि आपने यह रचना काफ़ी पहले लिखी थी !
लेकिन पंक्तियों में निहित संदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा !
हार्दिक शुभ कामनाएँ !
आज की आवाज
thanks. aap kahein aur hum na aayien ?
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आपके ब्लॉग पर आती रहूंगी!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है..लहरों की उदास कम्पन...बहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteसुशीला जी,
ReplyDeleteजो पता आपने दिया था उस पर से ईमेल वापस आ रहे हैं। एक बार मुझे ईमेल करें ताकि सही पते पर ईमेल भेज सकूँ।
sushila ji...aapne taham blog mein "stree" topic par comment post kiya hai, ki aap hain kaun.. ye prashn thoda atpata sa hai..magar ho sakta hai aapke puchne ka aashay kuch aur hai. mera naam nishant kaushik hai...taaham ek pragitisheelta se sambaddh blog hai..mein is blog mein bhinn bhinn topics par likhta hun..aap kuch aur jaanna chahti hain kisi any mantavy mein to aap ni:sankoch mail kar sakti hai...
ReplyDeletekaushiknishant2@gmail.com
Dhanywaad...
Nishant kaushik....
Aapke dard mai bhi shamil ho,kaash ise har koi samjhe
ReplyDeletebahut sunder
सरयू की उदासी देर तक छंटने वाली नहीं, क्योंकि इसने रामराज्य का स्वाद चखा है और अब मायावती और मुलायम के राज्य में नरक का अनुभव कर रही है कल्याण के राज में भी इसका कल्याण नहीं हो पाया लेकिन जीती अब भी इसलिए है क्योंकि सैकड़ों लोग राम का नाम अपनी आत्मा में बसाये इसके दर्शनों के लिए रोज आते हैं इन्हें कैसे अस्वीकार करे सरयू
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार .......सुभि के लिए स्नेह .
ReplyDeleteWah...
ReplyDeleteaapki kavita bahut khubsurat hai kio k ye samkaleen samasya k yatharth ko apne clever me leti hai....aaj ke punjivadi yug me aisi samasyaon ko laghu sthan dia jaane laga hai...aise samey me apko aisi kavita likhne k liye mubarak....dr.amarjeet kaunke
ReplyDeleteMAN KO CHOOTI HAI AAPKI SAB RACHNAAYEN......BAHOOT KHOOB
ReplyDeleteसकारात्मक लेखन हेतु बधाई
ReplyDeletekai bar shabd hi takdir ban jate hain. aisa hi kuchh ehsas hua is kavita ko padhkar..badhai.
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर्व की शुभकामनाओं सहित-
आकांक्षा,
शब्द-शिखर
amazing post , bahuty hi accha lekhan .. badhai ho aapko .. aapki kavitayen dil ko choo rahi hai ...
ReplyDeleteregards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
गूंगी अयोध्या
ReplyDeleteटूटते हैं मन्दिर यहाँ
टूटती है मस्जिद यहाँ
टूटकर बिखर जाते हैं अजान के स्वर
चूर चूर हो जाती हैं घंटियों की स्वरलहरियां
कोई नही बचाता यहाँ सरगमों के स्वर
झकझोर देने वाली रचना.....!!
क्या बात है आप तो बहुत सुन्दर लिखती है अच्छा
ReplyDeleteलगा आपके ब्लोग्स को देखकर . आशा है आप हमारे
ब्लोग्स का अध्ययन करेंगी
Aap ki sabhi rachnaye dil mein bas janey vali hain . Shubh kaamnayey .... Jaswinder
ReplyDeleteमर्म स्पशी रचना...
ReplyDeleteआपके लिए विनय चारू की दो लाइने:
मंदिर मस्जिद गिरजाघर ने , बाँट लिया भगवान को....
धरती बांटी ... सागर बांटा... मत बांटो इन्सान को.....
कोई नही पोछता सरयू के आंसू .... बहुत ही सुन्दर है
ReplyDeleteमार्मिक....सच्ची.....गहरी बात....सच...हाँ....!!!
ReplyDeleteआपने तोमीनू जी के ब्लॉग पर ऐसा कमेन्ट कर दिया कि मुझे आपसे पूछना पड़रहा है कि अयोध्या तो गूंगी है...ठीक पर आप क्यों गूंगी हैं इतनी पीडा छुपाये हुए शांत क्यों हैं
ReplyDeleteपता है न खामोशी का मतलब है स्वीकार्यता
वैसे सरयू के पानी में एक सदी में एक बार जलजला आता ही है
बहुत बढ़िया कविता ...
ReplyDeleteसकारात्मक विचार !
ReplyDeleteअच्छा लगा !
इस कविता में एक अच्छी कविता के सभी तत्व झलकते हैं..........बधाई
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