( ये कविता पुस्तक-मेले के एक स्टाल पर हुसैन की पेन्टिंग पर बैठी एक जिंदा तितली देखकर लिखी गई ...)
मेले में स्वछंद ...
शब्दों को मुट्ठी में भरकर
किताबों की सुगंध पीते हुये
अर्थों की दुनियाँ के पार
वो उड़ सकती थी
नीले खुले आसमान में
बादलों के पार
बूँदों से आँख -मिचौनी खेलते हुए
पृथ्वी को नहलाते हुए
अपने अनगिन रंगों की बारिश में
वो उड़ सकती थी
दूर...बहुत दूर
नदी की लहरों सी चंचल
समंदर के सीने पर
चित्र बनाते हुए खिलखिलाते हुए
पहुँच सकती थी वो
रंगों का सूत्र लिए
रंगों के गाँव
रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
हंसी और आँसू का हाल
पर ,बेसुध विमुग्ध वह
हुसैन के श्वेत -श्याम चित्र पर
लिए जा रही थी
चुंबन ही चुंबन
चुंबन ही चुंबन !
sundar!ud jayegi titali!
ReplyDeletekahin zyada der nhi rukegi
sundar shyamal titali...
बेहद सशक्त और शानदार रचना।
ReplyDeleteKya baat hai ! Umdaaa !
ReplyDeleteVah Didi, kitni sunder rachna hai, akhir titli bhi kala ki parkhi nikli......badhai
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....तितली के रंगों जैसी.
ReplyDeleteसुन्दर सरस विषय, श्रेष्ठ भावाभिव्यक्ति। साधुवाद सुशीला जी।
ReplyDeletesundar rachna..
ReplyDeleteबेसुध विमुग्ध वह
ReplyDeleteहुसैन के श्वेत -श्याम चित्र पर
लिए जा रही थी
चुंबन ही चुंबन
चुंबन ही चुंबन !
एक तितली ने किताबों की दुनिया में उड़ते हुए पहचाना अपने जैसे निश्छल सौंदर्य के चितेरे हुसैन की कला को। और एक कवि ने उसे अद्भुत ढंग से व्यक्त किया। लाजवाब।
ReplyDeleteतितली के मन के भावों को शायद शब्द दे दिए हैं ... पारखी तितली
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
waah titli ka ye haal tha to dekhne wale un buddhijiviyon ka kya hal hoga jo apne bhaavo ko abhivyakt kar sakte hai kai tarah se.
ReplyDeletebahut sunder shabdo se saji utkrisht abhivyakti.
Is kavita ko chura kar, titli bana kar uda diya, aur pahuncha diya parindon tak...
ReplyDeleteWah,kya andaz hai aapka bhi,bahut oonchi kalpana ko swar diya ,sunder rachna ,hardik dhanyavaad.
ReplyDeletedr.bhoopendra
rewa
mp
बेहतर...
ReplyDeleteWAH-WAH di
ReplyDeletekamaal kar diya hai aapne to .
kitni sahjta ke saath aapne titli ke mano -bhavon ko abhivykt kiya hai.yahi to ek shreshhth -kavi ki pahchaan hai.aur isme aap parangat hain yah likhne ki jaroorat nahi hai.
bahut bahut hi achhi lagi aapki ye anupam kriti
hardik badhai
sadar naman
poonam
alag tarah ki behad jandar kavita......
ReplyDeleteTITLI KE BAHAANE APNE MN KE BHAVON KO ABHIVYAKT KAR DIA.........KHOOOOB
ReplyDeleteकवि की कल्पना की पहुँच कहाँ तक जा सकती है...!
ReplyDeleteएक सुन्दर उदाहरण.....
आपकी ये रचना......!!
पहुँच सकती थी वो
ReplyDeleteरंगों का सूत्र लिए
रंगों के गाँव
रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
हंसी और आँसू का हाल ....पर , bahut sundar chitran
वाह सुशीला जी ,मुझे लगता है वह तितली और कोई नहीं आप ही थीं, कम-से-कम उस क्षण ! बहुत सुन्दर कविता ! सच है सौंदर्य अनुभूति का विषय है ,कहने का नहीं !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
सुंदर रचना.
ReplyDeleteDidi Ji Pranam,
ReplyDeleteAppki yehi to khasiyat hai .......ki aap kabhi kahi bhi, kisi bhi topic pr .itni sasakt aur umda rachna likh akti hai ...........nahi to titliyan to log roj dekhte hai aur shayed kitabo p bhi baithti ho ................
aapki is behtreen rachna ke liye bahut bahut badhai ...........
bahut hinsundar rachna...badhaai
ReplyDeleteकितने सुन्दर भाव भरे हैं..... वाह!
ReplyDeleteसादर...
मुझको है प्रिये नहीं.......पेंटर न्यूड हुसैन....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के नाम पर.......सदा रहा बेचैन.....
सदा रहा बेचैन.........देवियों को दी गाली.....
टांग कब्र में डाल .......नग्नता पेंट से डाली......
कह मनोज बनते नहीं......कर्मविहीन के भाग्य....
मरने भर मिटटी नहीं......निज धरती सौभाग्य.....
aabhar aap sabhi ka ...!
ReplyDeleteपहुँच सकती थी वो
ReplyDeleteरंगों का सूत्र लिए
रंगों के गाँव
रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
हंसी और आँसू का हाल ....पर , रश्मि प्रभा जी की तरह मुझे भी यह शब्द अन्दर तक छू गए ...