वहाँ बारिश हो रही है
और मै भीगती हूँ यहाँ
अहर्निश...,
वह लिखता है--
मै जल्द ही बात करूँगा
और मेरी आत्मा नहा उठती है
जैजैवन्ती की धुनों से...,
वह लिखता है--
कुछ मुश्किलें हैं
और मै बाँहें फैलाकर
बटोर लेना चाहती हूँ
उसके सारे दुःख...,
वह लिखता है--
मै मिलने आऊँगा
और मै थिरकती हूँ
पृथ्वी के इस छोर से उस छोर तक...।
kyaa baat hai..bhut sundar
ReplyDeleteयह पराकाष्ठा है प्रेम की, जिसमें बांहें फैलाकर बुलाती एक खोई हुई स्त्री एक पुरुष के दुखों को अपना बना लेती है। ... अनंत हैं उस स्त्री के दुख और अनंत हैं उसकी कामनाएं... पर प्रेम है कि अनंत है और सब चीजों से...लाजवाब और बेमिसाल..
ReplyDeleteउफ़्फ़
ReplyDeleteअद्भुत प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसुन्दर...'मर्मस्पर्शी'
ReplyDeleteसच में बहुत बहुत खुबसूरत....
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.. अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर 'मर्मस्पर्शी' अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteवह लिखता है--
ReplyDeleteमै मिलने आऊँगा
और मै थिरकती हूँ
पृथ्वी के इस छोर से उस छोर तक...।
manmohak
मान के कोमल भावों को उकेरा है .. सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDelete--------
कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
गज़ब गज़ब गज़ब्……………
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
मै मिलने आऊँगा
ReplyDeleteऔर मै थिरकती हूँ
पृथ्वी के इस छोर से उस छोर तक...
sundr abhivakti ....
prem me anubhuti ki ga hvarta hoti hai, kisi ka apna banane se adhik prasannta kisi ka ho jane me hai ! aapki kavita se isee bhav ka bodh ho raha hai ! shubh pranam !
ReplyDeleteनिर्दोष भाव... अच्छी कविता..बधाई...
ReplyDeleteto understand poetry is quite difficult for me ,but your this poetry really appeals.
ReplyDeleteअच्छा शब्द साधती हैं आप, पढ़ कर ठहर सा गया.
ReplyDeletekyaa baat hai..bhut sundar
ReplyDeleteprem prem prem me nhai ek kavita... sundar sundar sundar
ReplyDeletetum likhti ho vha
ReplyDeletemai mhsoos krti hun yahan
pati isi ko khte hai .
.
ReplyDeleteआदरणीया सुशीला पुरी जी
सादर अभिवादन !
बहुत दिन बाद आ पाया हूं … आ'कर लौटना कठिन हो रहा है ।
आपकी पिछली कई न पढ़ी जा सकी रचनाएं एक साथ पढ़ी हैं … एक अलग दुनिया में विचर रहा हूं …
…और प्रस्तुत रचना के द्वारा उपस्थिति मात्र अंकित कर रहा हूं
वह लिखता है--
मै जल्द ही बात करूँगा
और मेरी आत्मा नहा उठती है
जैजैवन्ती की धुनों से...,
...
....
वह लिखता है--
मै मिलने आऊँगा
और मै थिरकती हूँ
पृथ्वी के इस छोर से उस छोर तक...
आपके यहा जब भी आया … भाव और शिल्प सौंदर्य के संगम में तीर्थ-स्नान कर के ही लौटा हूं …
चंद शब्दों के सहारे एक विराट कविता रच देने की आपकी फ़नकारी को हृदय से नमन !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूबसूरत प्रेम अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletenari ke nishchal pyar ki sunder abhivyakti....
ReplyDeleteman ki nirmal bhaavnao ko sunder shabd diye hain.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,सुशीला जी ! जब कोई हमारा सर्वस्व हो जाता है तो हमारा हर बर्ताव उसी के अनुसार होने लगता है ! प्यारी कविता !
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...महसूस हुआ कि प्रेम है तो यहीं है...प्रेममयी ब्लॉग़ पर प्रेम से भीगी रचनाएँ....!!
ReplyDeleteवह लिखता है--
ReplyDeleteवहाँ बारिश हो रही है
और मै भीगती हूँ यहाँ
अहर्निश...,
kya gazab ki soch hai......very good.
इससे ज्यादा अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि दिल का एक हिस्सा आपके नाम किया .
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकारें .
सादर
-बाबुषा
इस क्षण मुझे आप पर इतना प्रेम आ रहा है कि मैं कहीं कि मलिका होती तो पूरी रियासत आपके नाम कर देती..! सच ! कितना सुंदर लिखा है ..
ReplyDeleteमैं एक दिन आउंगी वहाँ..और पूरा दिन बिता डालूंगी आपकी छाँव में ...सब पहले का भी पढ़ डालूंगी ..!
एक नदी बह रही है जिसमें मुझ जैसे को डूब जाना चाहिए !
चलती हूँ .
शुभ रात्रि
-बाबुषा
वह लिखता है--
ReplyDeleteमै मिलने आऊँगा
और मै थिरकती हूँ
पृथ्वी के इस छोर से उस छोर तक...।
bahut sundar Sushila ...
meetha hamesha ki trah..
....... और बहुत ही सधा हुआ ! सच्मुच आज मैंने एक कविता पढ़ी !
ReplyDeleteउम्दा सोच
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ
उम्दा लेखन ....
ReplyDeleteBahut hi umda prastuti... Aabhar...
ReplyDeleteअति सुंदर रचना..धन्यवाद आपको । देव की कृपा यूँ ही आप पर बनी रहे.
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