जब पहली बार मिले थे हम
लिपियों के बीच मिले थे
तुमने मुझे
मेरे नाम से पुकारा था
बहुत धीमे
लगभग फुसफुसा कर,
और उन्ही दुबली लिपियों से
रचा था हमने महाकाव्य ,
भाषा के मौन घर में
छुप गये थे हम
डरे हुए परिंदों की तरह,
फिर एक दिन अचानक
सुबह सुबह
कलरव शुरू हुआ
अपने आप
और आसमान भर गया
अनगिन इन्द्रधनुषों से .
"भाषा के मौन घर में
ReplyDeleteछुप गये थे हम
डरे हुए परिंदों की तरह,
फिर एक दिन अचानक
सुबह सुबह
कलरव शुरू हुआ"
बहुत ख़ूब.
पढ़ते हुए
सुशीला जी की कविता
भ्रम होता है बार-बार
कहीं पढ़ रहा हूँ
अज्ञेय को तो नहीं
फिर से.
फिर एक दिन अचानक / सुबह सुबह / कलरव शुरू हुआ / अपने आप / और आसमान भर गया / अनगिन इन्द्रधनुषों से ..... बहुत खूब. हर्फ-हर्फ नाजुक अहसास ..... बधाई सुशीला जी.
ReplyDeleteअच्छे भाव... बेहतरीन...बधाई..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना एवं सुन्दर शब्दों से श्रृंगारित ,
ReplyDeleteबहुत अर्थपूर्ण और मनभावन
पढ़कर ह्रदय ने आतंरिक सुख महसूस किया.
हार्दिक धन्यवाद.
"बड़ी नाज़ुक सी है, मीठी, हमारी ये कहानी है!
ReplyDeleteहजारों कांपते लम्हों से गुजरी जिंदगानी है!
हमे तो याद है वो दिन , जहाँ तुमसे मिले थे हम,
उसे हम याद रखेंगे, जो उल्फत की निशानी है!"
..........आपकी रचना ने बहुत आनंद दिया!"
शब्द ही तो थे उन इन्द्रधनुषों में
ReplyDeleteभास्वर और अर्थवान
लिपि को पूर्णता प्रदान करने को आतुर
शायद तुम्हारी वाणी से झरे हुए
मैंने कब लिया था कोई नाम
ये तो हवा थी
कभी तुम्हारे कानों में फुसफुसाती
तो कभी मेरे कानों में गुनगुनाती ।
पपीहे की कूँक और
चाँद की रोशनी में
संभव है हम फिर से मिलें
और रचें कोई महाकाव्य
इस बार तैरेगी चान्दनी
हमारे इर्द-गिर्द
महाकाव्य नहीं होगा
संयोजन किसी भाषा या लिपि का
होगा बस आत्मा का संगीत
मेरी आँखों से झाँकता.......
सिर्फ तुम्हारी आँखों में।
कलरव सुन रहा हूँ । अच्छा लग रहा है ।
ReplyDeleteलगभग फुसफुसा कर,
ReplyDeleteऔर उन्ही दुबली लिपियों से
रचा था हमने महाकाव्य
बहुत सुंदर अनुभूति
sundar rachna sushila .. naye se bimb taazgi dete hue ..
ReplyDeleteindrdhanush si khinch jaati hai kavita ...
sundar rachna .. naye bimb taazgi de rahe hain .. ek indrdhanush sa kiinchti kavita
ReplyDeleteAisee bemisaal nafees rachana ke liye kya kahun? Khaamosh hun!
ReplyDeleteकविता हो तो ऐसी !
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण है यह...लाजवाब.....सुंदरता से दिल के भाव को शब्द दिया है,दिल को छु गया है।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर ,प्रेममयी कविता !
ReplyDelete'इन्द्रधनुषी रंगों से लथपथ थे
वे गवाक्ष ,जिन्हें --
हमारे स्वीकार ने
सहसा खोल दिया था ! '
लिपियों के बीच मिले थे
ReplyDeleteतुमने मुझे
मेरे नाम से पुकारा था
बहुत धीमे
लगभग फुसफुसा कर
और आसमान भर गया
अनगिन इन्द्रधनुषों से .
बहुत सुन्दर ....इन भावो को और शब्दों की आवशयकता नहीं हैं.
सादर आभार
वाह! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteरच लिया महाकाव्य उस चिर मौन में कितना सार्थक है ..बहुत गहरे अर्थ हैं इस रचना में ...आपका आभार
ReplyDeleteजब पहली बार मिले थे हम
ReplyDeleteथर-थर कांपती
लिपियों के बीच मिले थे
lipi...shabd ka prayog bha gaya:)
बहुत ही सहजता से मन पे उतरती कविता.
ReplyDeleteकोमल अभिव्यक्ती.
एक सुंदर रचना के लिये बधाई!
फिर एक दिन अचानक
ReplyDeleteसुबह सुबह
कलरव शुरू हुआ
अपने आप
और आसमान भर गया
अनगिन इन्द्रधनुषों से ..
बहुत सहजता के साथ पूरे एहसास कुछ ही शब्दों में लिख दिए हैं .... डोर ले जाने की क्षमता है इन शब्दों में...
लगभग निश्चित है...जो अनायास ....घटित हो जाता है...उस पर ये कि....वही जब व्यक्त भी हो जाता है...तो काव्य हो जाता है।
ReplyDeleteभाषा का मौन घर.....अच्छी कविता है.
ReplyDeleteशुरूआती लम्हों को बहुत खूबसूरती से लफ़्ज़ों में पिरोया है आपने ।
ReplyDeleteबेहतरीन ।
और आसमान भर गया
ReplyDeleteअनगिन इन्द्रधनुषों से...
वाह बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति बधाई हो
ReplyDeleteदुबली लिपियों से लिखा गया महाकाव्य !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत.
good
ReplyDeletesunder srijan ho gaya dubli lipiyon se likhte likhte . badhayi.
ReplyDelete....aur aasmaan ghir gya anginat indradhanusho se.....just beautiful.
ReplyDeleteTo love is to transform;
ReplyDeleteTo be a Poet...
And only lasting beauty
Is the beauty of heart.
अद्भुत....शब्द कितना कुछ कह गए ....रोमांटिक !!!!
ReplyDeleteसुन्दर......भावप्रवण....बधाई....
ReplyDeleteकोमल से भावों की सुन्दर परिणिति
ReplyDeleteइन्हीं शब्दों में हो सकती है.....
तुमने मुझे
मेरे नाम से पुकारा था
बहुत धीमे
लगभग फुसफुसा कर,
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भाषा के मौन घर में
छुप गये थे हम ........
उन्ही दुबली लिपियों से
ReplyDeleteरचा था हमने महाकाव्य ,
भाषा के मौन घर में
छुप गये थे हम
डरे हुए परिंदों की तरह
आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | बधाई और शुभकामनाएं |
बहुत भावपूर्ण...अद्भुत!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना,
ReplyDeleteमैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.समाज में समरसता,सुचिता लानी है तो गलत बातों का विरोध करना होगा,
हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
jo ankha rh gya ho vo bhi kh dalo
ReplyDeleteprindo ko asma me nidr uda dalo
ki bhav ab ruk nhi skte
chhnd ab chuk nhi skte
ki bhavna punah mukharit hui hai
tumhare spt rngo se nha ke
kvita our bhi pardrshi hui hai