कम शब्दों में बात कहने का हुनर हर किसी को नहीं आता लेकिन आप इस विधा में पारंगत हैं...बहुत ही प्रभाव शाली रचना है ये आपकी...मन्त्र मुग्ध कर दिया और जो आपने चित्र साथ में दिया वो भी लाजवाब है...बहुत बहुत बधाई... नीरज
आप जैसे कुछ ब्लॉग पढ़कर खुद लिखने का मन नहीं करता. देर से आपके ब्लॉग में हूँ... आप अच्छा लिखती हैं ये कहना भी छोटा मुह बड़ी बात होगी...
1) :उसकी अंतहीन सीमाओं मे मेरा वजूद ले चुका है प्रवेश बिना किसी प्रवेशपत्र के " स्थूल से शुष्म हो जाना शायद इसी को कहते हैं. प्रेम कविता है या भक्ति ?
2)
"मेरे प्रेम की गठरी में थोड़े शब्द हैं तो ढेर सारा मौन है कुछ उदासियाँ हैं तो अनंत हसीं है " उपयुक्त lines जरा साधारण लगा पर बाकी कविता 'Awesome' . हाँ शायद शुरुआत ऐसे ही ज़रूरी हो.
3) किस कसी को quote करूँ? पूरा ब्लॉग ही किसी पुस्तक की तरह पठनीय है... देर से हूँ और देर तक रहूँगा...
कुछ जगह बनाकर जरुर लाना ठूंठ हुई उम्र के लिए नई नर्म कोंपलें अंधेरों के लिए थोडा सा सूरज तपते वक्त के लिए थोड़ी सी चांदनी लाना वसंत के लिए .
कथाक्रम मेरे हाथ में है .उसमे आपकी कविता पढ़ी .माँ के लिए बेटी की फ़िक्र की सम्वेदना को शब्दों में आकार लिए भी देखा .बेटी होने के नाते उसे दिल से महसूस भी किया मगर आगत के सन्दर्भ में इतनी उदासी क्यों आप आज की नारी है कलम आप के हाथ में है भविष्य के पन्ने पर सुनहरे अक्षर लिखने की पूरी ताब .फिर एक और दमदार रचना के इंतजार में ....... राजवंत राज .
कविता छोटी होते हुए भी संवेदना के स्तर पर अनंत विस्तार लिए हुए है.सुंदर और मार्मिक रचना है.बधाई! दिल के अरमानों को झुठलाना कठिन है.चाहना आसान है, पाना कठिन है. किन्तु जहाँ चाह है वहां राह है. लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी
सुशीला जी...आपको मेरे आगमन की सूचना है ये। क्या कमेंट लिंखे...लोगो ने कितना प्रेम उड़ेला है। जरा सी चाहत में कितना कुछ मिल जाता है..देखिए..यहां तो बहुत कुछ चाहने क चक्कर में जो पास है वो भी छूट जाता है.कहीं बरकतो की हैं बारिशें, कहीं तिश्नगी का हिसाब है। लिखते रहिए..हमें जिलाए रखिए.
शायद १५ दिन .. हाँ इतने दिन पहले आप को पढना शुरू किया था.आज तक इतनी मुश्किल किसी को टिप्पणी लिखने में नहीं हुई.ऐसी कविताये है जिनमे रस है.बस पढ़ते जाओ,
..आनंद..
इस कविता को कितनी ही बार पढ़ चुकी हूँ.कितनी ज़रा सी ही ख्वाहिश है,बहुत ज्यादा नहीं.बिम्ब अनूठे और बेहद खूबसूरत है.मेरी टिप्पणी आपके लेखन के लिए काफी नहीं है..
maine aaj pehli baar apko pada hai pad kar laga ki ab tak maine kaafi kuch miss kar diya u r really a good one blogger ........ kam shabdo main bahut kuch ..........
ooh jindagee me kabhi kabhi kitni der ho jati hai... aisi hi deri ka anubhaw aaj aapki rachnao ko padhkar hua... par thanks god ki internet ke is mahamayajaal me mai is abhiwyakti tak pahuch paya....
बढ़िया छोटी -सी सुन्दर कविता..
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
chhotee se lekin bahut sundar rachna....badhaiii
ReplyDeleteshandar.......
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत, बहुत मृदु. आप बहुत अच्छा लिखती हैं सुशीला जी.
ReplyDeleteachha prayas hai
ReplyDeleteमुझे नीड़ नहीं
ReplyDeleteबस, मुझे थोड़ी सी छांव चाहिए!!! बहुत सुंदर कविता है कबूतर के पंखों की तरह ! बधाई !
Bahut kam shabdo me bahut badi va ghari baat ...Sundar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
तुम्हारे नीले वितान तले
ReplyDeleteभरनी है मुझको उड़ान
क्या ख्वाहिश है थोड़ी सी छाव और एक उड़ान
बहुत खूब
जब तक प्रिय के आकाश का एक कोना अपना नहीं होगा तब तक नीड में छाव नहीं होगी. सुंदर है . बधाई !
ReplyDeleteयू ही लिखती रहिये,यकीन मानिये हराभरा पेड़ और अनंत आकाश से, एक दिन पता भी नही लगेगा और मुलाकात हो जाएगी.
ReplyDeleteलगता है सुशीला जी हमारे ख्याल साथ चलते हैं!
ReplyDeleteकम शब्दों में बात कहने का हुनर हर किसी को नहीं आता लेकिन आप इस विधा में पारंगत हैं...बहुत ही प्रभाव शाली रचना है ये आपकी...मन्त्र मुग्ध कर दिया और जो आपने चित्र साथ में दिया वो भी लाजवाब है...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनीरज
कितनी मासूम सी चाहत है लेकिन कितने सारे अर्थ है इसमें । मुझे तो कहीं वह नीली छतरीवाला भी दिखाई दे रहा है ।
ReplyDeletegagar mein sagar!
ReplyDeletelaghuta me gurutaa....gaagar mey saagar...aapki छ्oti-sipyaari-si kavita par yahi kahaa ja sakta hai. badhai.
ReplyDeleteइस चाहना का जवाब नहीं, लेकिन इसमें वो विवादी स्वर नहीं, जिससे आप अनेकार्थ पैदा कर देती हैं।
ReplyDeleteमुझे नीड़ नहीं
ReplyDeleteबस, मुझे थोड़ी सी छांव चाहिए
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कम शब्दों में बड़ी बात..सुन्दर भावाभिव्यक्ति...उम्दा रचना.
आप जैसे कुछ ब्लॉग पढ़कर खुद लिखने का मन नहीं करता.
ReplyDeleteदेर से आपके ब्लॉग में हूँ...
आप अच्छा लिखती हैं ये कहना भी छोटा मुह बड़ी बात होगी...
1)
:उसकी अंतहीन सीमाओं मे
मेरा वजूद
ले चुका है प्रवेश
बिना किसी प्रवेशपत्र के
"
स्थूल से शुष्म हो जाना शायद इसी को कहते हैं. प्रेम कविता है या भक्ति ?
2)
"मेरे प्रेम की गठरी में
थोड़े शब्द हैं
तो ढेर सारा मौन है
कुछ उदासियाँ हैं
तो अनंत हसीं है
" उपयुक्त lines जरा साधारण लगा पर बाकी कविता 'Awesome' . हाँ शायद शुरुआत ऐसे ही ज़रूरी हो.
3) किस कसी को quote करूँ? पूरा ब्लॉग ही किसी पुस्तक की तरह पठनीय है...
देर से हूँ और देर तक रहूँगा...
कुछ जगह बनाकर
जरुर लाना
ठूंठ हुई उम्र के लिए
नई नर्म कोंपलें
अंधेरों के लिए
थोडा सा सूरज
तपते वक्त के लिए
थोड़ी सी चांदनी
लाना
वसंत के लिए .
कथाक्रम मेरे हाथ में है .उसमे आपकी कविता पढ़ी .माँ के लिए बेटी की फ़िक्र की सम्वेदना को शब्दों में आकार लिए भी देखा .बेटी होने के नाते उसे दिल से महसूस भी किया मगर आगत के सन्दर्भ में इतनी उदासी क्यों आप आज की नारी है कलम आप के हाथ में है भविष्य के पन्ने पर सुनहरे अक्षर लिखने की पूरी ताब .फिर एक और दमदार रचना के इंतजार में .......
ReplyDeleteराजवंत राज .
शरद जी ! उसे मेरा पता बता देना प्लीज !!!
ReplyDeleteसुन्दर! नीली छतरी वाला निकल चुका है लखनऊ के लिये। पहुंचता ही होगा।
ReplyDeleteजबरदस्त रचना!!वाह!
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखती हैं आप.
ReplyDeleteनिशब्द कर दिया आपकी इस कविता ने...मन के भावों को कितनी सुन्दरता से शब्द दे दिए हैं...इतने कम लफ़्ज़ों में इतने गहरे भाव उकेर दिए...बहुत सुन्दर
ReplyDelete"लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ ठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"
ReplyDeleteशायद यह पहला परिचय है जिससे इतना प्रभावित हुआ ....इसी रास्ते चलें ! शुभकामनायें !
कविता छोटी होते हुए भी संवेदना के स्तर पर अनंत विस्तार लिए हुए है.सुंदर और मार्मिक रचना है.बधाई! दिल के अरमानों को झुठलाना कठिन है.चाहना आसान है, पाना कठिन है. किन्तु जहाँ चाह है वहां राह है.
ReplyDeleteलक्ष्मी कान्त त्रिपाठी
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकुछ न कह कर सब कुछ कह दिया !
ReplyDeleteइसे कहते हैं गागर में सागर भरना !
बात भीतर तक चुभ गई ........
सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण कविता..बधाई.
ReplyDelete________________
''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी
बहुत खूब ......!!
ReplyDeleteसुशीला जी अच्छा लिखती हैं आप ......!!
सुशीला जी...आपको मेरे आगमन की सूचना है ये। क्या कमेंट लिंखे...लोगो ने कितना प्रेम उड़ेला है। जरा सी चाहत में कितना कुछ मिल जाता है..देखिए..यहां तो बहुत कुछ चाहने क चक्कर में जो पास है वो भी छूट जाता है.कहीं बरकतो की हैं बारिशें, कहीं तिश्नगी का हिसाब है। लिखते रहिए..हमें जिलाए रखिए.
ReplyDeleteछोटी सी चाहत ... हसीन ख्वाब ... बेमिसाल ....
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक धन्यवाद .....आप सभी का उत्साहवर्धन मेरी अमूल्य पूंजी है .
ReplyDeleteअभी तो मैं भी बाकी हूँ कमेन्ट लिखने के लिए...बहुत अच्छा लिखती हैं आप.
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"पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर
बेहद खूबसूरत, बहुत मृदु. आप बहुत अच्छा लिखती हैं सुशीला जी.
ReplyDeleteशायद १५ दिन ..
ReplyDeleteहाँ इतने दिन पहले आप को पढना शुरू किया था.आज तक इतनी मुश्किल किसी को टिप्पणी लिखने में नहीं हुई.ऐसी कविताये है जिनमे रस है.बस पढ़ते जाओ,
..आनंद..
इस कविता को कितनी ही बार पढ़ चुकी हूँ.कितनी ज़रा सी ही ख्वाहिश है,बहुत ज्यादा नहीं.बिम्ब अनूठे और बेहद खूबसूरत है.मेरी टिप्पणी आपके लेखन के लिए काफी नहीं है..
maine aaj pehli baar apko pada hai pad kar laga ki ab tak maine kaafi kuch miss kar diya u r really a good one blogger ........
ReplyDeletekam shabdo main bahut kuch ..........
ooh jindagee me kabhi kabhi kitni der ho jati hai...
ReplyDeleteaisi hi deri ka anubhaw aaj aapki rachnao ko padhkar hua...
par thanks god ki internet ke is mahamayajaal me mai is abhiwyakti tak pahuch paya....
इस चाहना का जवाब नहीं, लेकिन इसमें वो विवादी स्वर नहीं, जिससे आप अनेकार्थ पैदा कर देती हैं।
ReplyDeleteati sunder, wah.
ReplyDeleteArpita ने तारीफ़ की थी तो अतीश्योक्ती सी लगी थी.
ReplyDeleteक्षमा चाहता हूँ.
भावविव्हल हो कर बैठा हूँ बस थोड़े सा ही पढ़ कर.
बुरा मानें या भला, उससे तो चिपका ही हूं, अब मैं बन गया चिपकू आप का भी.