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Monday, November 21, 2011

बुद्धू


उसने कहा 
तुम बिल्कुल बुद्धू हो 
और मैं बुद्धूपने में खो गई 
उसे देख हंसती रही 
और हंसी समूची बुद्धू हो गई,
उसे छूकर लगा 
जैसे आकाश को छू लिया हो 
और पूरा आकाश ही बुद्धू हो गया चुपचाप,
उसकी आँखों में 
उम्मीद की तरलता  
और विश्वास की रंगत थी 
जो पहले से ही बुद्धू थी 
मेरी हथेलियाँ उसकी हथेलियों में थीं 
जैसे हमने पूरे ब्रह्मांड को मुट्ठी में लिया हो,
साथ चलते हुये हम सोच रहे थे 
दुनिया के साथ-  
अपने बुद्धूपने के बारे में  
हम खोज रहे थे 
पृथ्वी पर एक ऐसी जगह 
जो बिल्कुल बुद्धू हो..! 


33 comments:

  1. जब हम खुद से बुद्धू होते हैं तो बहुत कुछ हसीन लगता है।

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  2. वाह जबरदस्त आहुतियाँ इस अन्तरंग पलों की वेदी पर ....और अंत में ""बिल्कुल बुद्धू""" की पूर्ण आहुति ...जबरदस्त अनुभूति शब्दों के साथ !!! Nirmal Paneri

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  3. बुद़धू होने का सुख.....वि‍श्‍वास कर रंगत से आता है। वाह!!

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  4. पृथ्वी पर एक ऐसी जगह
    जो बिल्कुल बुद्धू हो..! वाह! बहुत ही खुबसूरत भाव.....

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  5. सचमुच प्यार बुद्धू ही होता है | वह कभी सयाना नहीं होता | प्यार में बुद्धू हो जाना प्यार की पूर्णता है. सुशीला जी आपने बहुत प्यारी कविता लिखी है जिसमें भाषा की ताजगी है और भावनाओं की खुशबू |
    - शून्य आकांक्षी

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  6. बुद्धू होना कितना सुखकर है...
    बड़ी प्यारी सी रचना!

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  7. ताजगी और मासूमियत भरी सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  8. सच में कितना मज़ा है इस बुद्धूपने में....

    किस्मतवालों को ही नसीब होता है ये भी...!!

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  9. बेहद प्रभावी रचना.. सम्प्रेश्नीय और सुन्दर शिल्प

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  10. हम खोज रहे थे
    पृथ्वी पर एक ऐसी जगह
    जो बिल्कुल बुद्धू हो..! waah

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  11. उसने कहा
    तुम बिल्कुल बुद्धू हो
    और मैं बुद्धूपने में खो गई

    khubsurat

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  12. वाह ...बहुत खूब

    कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
    धन्यवाद!

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  13. उत्कृष्ट भावपूर्ण अभिव्यक्ति..


    संजय भास्कर
    आदत...मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  14. masuumiyat bhara bhola andaaz....

    archana nayudu

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  15. बुद्धूपने में अपना ही एक अलग आनन्द है ..:):)

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  16. मेरी हथेलियाँ उसकी हथेलियों में थीं
    जैसे हमने पूरे ब्रह्मांड को मुट्ठी में लिया हो,....आनंद ..परम आनंद है इस बुद्धूपन में भी ...

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  17. हम खोज रहे थे
    पृथ्वी पर एक ऐसी जगह
    जो बिल्कुल बुद्धू हो..!
    wah....aapka budhoopana lazabab hai.

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  18. वाह अनोखी रचना....
    सादर बधाई...

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  19. BUDDHU KI SHARAN
    BUDDH KI SHARAN !
    GACHHAMI !

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  20. वाह , सुन्दर, अति सुन्दर.

    कृपया मेरे ब्लॉग snshukla.blogspot.com पर भी पधारने का कष्ट करें.

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  21. उसने कहा
    तुम बिल्कुल बुद्धू हो
    और मैं बुद्धूपने में खो गई ....
    बहुत ही अच्छी कविता.... सुशीला जी....बधाई......

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  22. आदरणीय
    बहुत अच्छी भावुक और दिल को छु जाने वाली कविता है.
    बुद्धूपन का यह एहसास बड़ी मुश्किल से मयस्सर होता है
    " मेरी हथेलियाँ उसकी हथेलियों में थीं
    जैसे हमने पूरे ब्रह्मांड को मुट्ठी में लिया हो,"
    बहुत सुन्दर

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  23. बहुत अच्छा.......

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  24. बहुत ही सुंदर! बधाई

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  25. यह बुद्धूपना कितनी जल्दी छिन जाता है! बुद्ध होन की व्यर्थ की अभिलाषा में हम अपने बुद्धूपने को भी खो देते हैं। बहुत सुंदर लगी यह कविता।

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  26. बहुत ही सुंदर!

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  27. jo bilkul buddhoo ho ...vah shayd maim ho saktaa hoon jo binaa samamjhe pooree kavita padh gaya
    Dr jaijairam anand
    Los Angeles Usa

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  28. बुद्धूपने की नई खोज मुबारक हो ! प्रेम और सौन्दर्य दोनों ही भोला होता है ! बधाई !

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  29. I love ur writing always........it always inspire me Sushila ji

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  30. अमूर्त को मूर्त रूप देने की कला बहुत कम लोगों में होती है.. किसी abstract चीज़ पर कविता लिखना सरल नहीं है. आपका बुद्धूपन बहुत पसंद आया. :)
    --सुनहरी यादें--

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