अनवरत गड्ड-मड्ड समय है
जिसमें तुम्हारा होना भर रह गया है शेष
सब कुछ भूल चुकी हूँ
यहाँ तक कि भाषा भी
सिर्फ मौन है
और तुम हो
तुम्हे बटोरती हूँ
जैसे हरसिंगार के फूल
और उनकी महक से
भीगती हूँ भीतर ही भीतर,
कई बार धूसर उदासियों में
तुम बरसते हो आँखों से
और तुम हो जाते हो मेघ
अहर्निश कुछ अस्फुट शब्द
बुद्बुदातें हैं मेरे होंठ
और मैं समूचे अंतरिक्ष में
ठिठक कर खोजती हूँ खुद को,
ब्रह्माण्ड में बचा है सिर्फ
मेरा कहना
और तुम्हारा सुनना
ईश्वर अपने गूंगेपन पर चकित है
और तुम्हारे-मेरे शब्दों के बीच का मौन
सुन्दर अंतरीप में बदल रहा है
जहाँ फैले हैं अनगिनत उजाले
नई व्यंजनाओं के साथ,
देह के भीतर का ताप
दावानल बन जलाता नहीं
तुम्हारा होना
आत्मा को धीमी आंच पर सिझाता है
और अबूझ आहुतियों से गुजरकर मैं
बार बार उगने की प्रक्रिया में हूँ !

सब कुछ भूल चुकी हूँ
यहाँ तक कि भाषा भी
सिर्फ मौन है
और तुम हो
तुम्हे बटोरती हूँ
जैसे हरसिंगार के फूल
और उनकी महक से
भीगती हूँ भीतर ही भीतर,
कई बार धूसर उदासियों में
तुम बरसते हो आँखों से
और तुम हो जाते हो मेघ
अहर्निश कुछ अस्फुट शब्द
बुद्बुदातें हैं मेरे होंठ
और मैं समूचे अंतरिक्ष में
ठिठक कर खोजती हूँ खुद को,
ब्रह्माण्ड में बचा है सिर्फ
मेरा कहना
और तुम्हारा सुनना
ईश्वर अपने गूंगेपन पर चकित है
और तुम्हारे-मेरे शब्दों के बीच का मौन
सुन्दर अंतरीप में बदल रहा है
जहाँ फैले हैं अनगिनत उजाले
नई व्यंजनाओं के साथ,
देह के भीतर का ताप
दावानल बन जलाता नहीं
तुम्हारा होना
आत्मा को धीमी आंच पर सिझाता है
और अबूझ आहुतियों से गुजरकर मैं
बार बार उगने की प्रक्रिया में हूँ !
कई बार धूसर उदासियों में
ReplyDeleteतुम बरसते हो आँखों से
और तुम हो जाते हो मेघ
अहर्निश कुछ अस्फुट शब्द
बुद्बुदातें हैं मेरे होंठ
और मैं समूचे अंतरिक्ष में
ठिठक कर खोजती हूँ खुद को,
और ये खोजना कितना सुखद होता है कभी कभी....
बार बार उगाने की प्रक्रिया में .... यही जीवन भर चलता रहता है .... एक खोज ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रतिक्रिया विहीन हूँ...जैसे खो गया हूँ....प्रतीक्षा करो मेरे फिर से उगने की।
ReplyDeleteभावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteतुम्हे बटोरती हूँ
ReplyDeleteजैसे हरसिंगार के फूल
और उनकी महक से
भीगती हूँ भीतर ही भीतर,
कई बार धूसर उदासियों में
तुम बरसते हो आँखों से
और तुम हो जाते हो मेघ ,,,,
बहुत बहुत सुन्दर...
सादर..
ब्रह्माण्ड में बचा है सिर्फ
ReplyDeleteमेरा कहना
और तुम्हारा सुनना
ईश्वर अपने गूंगेपन पर चकित है
और तुम्हारे-मेरे शब्दों के बीच का मौन
सुन्दर अंतरीप में बदल रहा है
सुंदर अति सुंदर ।
बहुत ही व्यंजनापूर्ण सुंदर कविता है. हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteकिसी के होने का एहसास बार बार उगने की सांस लेने की जीवन जीने की प्रेरणा देता है ...
ReplyDeleteगहरे भाव ...
aise likhogi to ishwar ka goonga our chkit hona lazmi hai.waaaah .
ReplyDeleteतुम्हारा होना
ReplyDeleteआत्मा को धीमी आंच पर सिझाता है
और अबूझ आहुतियों से गुजरकर मैं
बार बार उगने की प्रक्रिया में हूँ !
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ye usake hone ka ahasas hai jo hamesha aasa pas hai
''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ
ReplyDeleteठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"
तेज लेखनी... गज़ब व्यक्तित्व ....
शुभकामनायें आपको !
सघन और गाढ़े भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति। प्रेम के दैवीय स्वरूप और एकाकीपन के ब्रम्हांडीय विस्तार के साथ वैयक्तिक अस्तित्व को स्थापित करती रचना।
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