
कोलवेल दबाते में
हथेली का खुरदुरापन चुभता है
कई कई प्रश्नों के साथ,
छोटू, जो घर घर से उठाता है कूड़ा
टुकुर टुकुर देखता है
घरों से निकलते स्कूल जाते बच्चे
भूकुर भूकुर ढ़ेबरी सा जलता है छोटू,
छूता है अपनी खुरदुरी हथेलियाँ
जो छूना चाहती हैं किताबें
और उनमें छपे अक्षरों की दुनियाँ,
ऐसी दुनियाँ
जहाँ मिल सके बराबरी
जहाँ दया में मिले
सीले बिस्कुटों की नमी न हो
कूड़ा उठाते हुये छोटू
छूना चाहता है
एक नया सूरज...!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
कूड़ा उठाते हुये छोटू
ReplyDeleteछूना चाहता है
एक नया सूरज...! सूरज उसकी मुट्ठी में है , क्या उस मजबूर मुट्ठी को कोई खोल सकेगा या अपने आराम के लिए एक और सूरज निगल लेगा
बाल दिवस की शुभकामनाएँ!
ReplyDelete---
कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कूड़ा उठाते हुये छोटू
ReplyDeleteछूना चाहता है
एक नया सूरज...!
Kaash...uskee ye tamanna pooree ho!
ऐसी दुनियाँ
ReplyDeleteजहाँ मिल सके बराबरी
जहाँ दया में मिले
सीले बिस्कुटों की नमी न हो
देने वालों की सह्रदयता पर कटाक्ष करती अच्छी पंक्तियाँ
सच्चाई को कहती अच्छी प्रस्तुति
बहुत ही सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteis chhotu ki khwahish me ek aag hai jiski tpish se dan me di jane wale biskuto ki nmi ek din jroor sookhegi bs bat uski is tpish ko idhan dete rhne ki hai .
ReplyDeletebhut umda khyalat hai .
aage bhi shiddt se aisi kvitao ka intjaar rhega jo sochne pr mjboor kre .
kataksh karti sunder prastuti.
ReplyDeleteऐसी दुनियाँ
ReplyDeleteजहाँ मिल सके बराबरी...
बेहतर...
बाल दिवस पर आपको बहुत सारी शुभकामनाएँ ! कल ही इस कविता को पढ़ लिया था . बहुत मार्मिक कविता है . इसे पढ़कर कुछ दिनों पहले की बात याद आ गई . कॉलोनी की मुख्य सड़क पर कई दिनों से काम चल रहा है , इसलिए मजदूर वहीँ सड़क किनारे खाली स्थानों पर टेंट लगाकर रहते हैं . एक दिन सुबह -सुबह जब हम घूमकर लौट रहे थे .. देखा कि एक बच्चा हाथ में कुदाल पकड़े है और हंस-हंसकर उसे चला रहा है . बच्चे की उम्र को देखते हुए तुरंत प्रतिक्रिया आई .. और वहीँ पास बैठे उसके पिता से कह भी दिया .. ज़रा देख लीजिये .. उसे चोट लग सकती है .. उसका तुरंत जवाब मिला .. आपके बच्चे को खिलौने से लगती है क्या ...
ReplyDeleteअन्तरस्पर्शी/भावमय रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
bahut hi acchi kavita hai...
ReplyDeleteदेश के ६४ सालों के बाद भी न जाने ऐसे कितने ही छोटू तरसते हैं किताबों को क्या सच में आज़ादी आ गई ...
ReplyDeleteभावमयी सुंदर रचनात्मक बेहतरीन पोस्ट...
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ...
भावमयी सुंदर रचनात्मक कटाक्ष करती पंक्तियाँ .....
ReplyDelete"कूड़ा उठाते हुये छोटू
ReplyDeleteछूना चाहता है
एक नया सूरज...!"
बहुत खूब !