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Friday, October 23, 2009

सिर्फ़ बचे तुम


आंकडों में लिपटा
तुम्हारा प्रेम
जोड़ते घटाते रहे तुम
शेष बचता रहा हर बार
पर मेरे लिए प्रेम
दो मिलकर एक बना
और एक दिन
एक भी समा गया शून्य में
सिर्फ़ बचे तुम

Monday, October 5, 2009

तुम्हारा चुम्बन

तुम्हारा वह चुम्बन
जिसमे घुली होती है
ईश्वर की आँख

झंकृत करती रहती है

अनवरत

मेरे जीवन के तार

उसमे भीगा होता है

पूरा का पूरा समुद्र

पूनम के चाँद को समेटे

नहा लेती हूँ मै
अखंड आद्रता

चांदनी ओढ़ कर
वहां विहँसता है बचपन
और घुटनों के बल
सरकता है समय
अपनी ढेर सारी
निर्मल शताब्दियों के साथ
सहेज लेती हूँ उसे
जैसे सहेजती है मां
पृथ्वी की तरह
अपनी कोख
.

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