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Saturday, May 29, 2010

मैं बरतती हूँ तुम्हें ऐसे......

मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे
जैसे
हवा बरतती है सुगंध को
और दूब की नोक से चलकर
पहुचती है शिखर पर ,
मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे
जैसे
जल बरतता है मिठास को
और घुलकर घनी भूत होकर
मिटाता है युगों की प्यास ,
मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे
जैसे
धरती बरतती है हरी घास को
और उसकी हरियाली में
लहालोट हो छुपा लेती है चेहरा ,
मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे
जैसे
उमंगें बरतती है उद्दाम को
और अपनी बाहों में
भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश

50 comments:

  1. अद्भुत.......विशेष तौर पे
    जैसे
    उमंगें बरतती है उद्दाम को
    और अपनी बाहों में
    भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश

    ये पंक्तिया......

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  2. kya baat hai..
    bahut hi umdaah rachnaon me se ek....

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  3. mere blog par...
    तुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  4. बेहतर अभिव्यक्ति...
    जो निजता को समूचे जहां के सापेक्ष रख कर बरतना सिखा रही है...

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  5. waah adbhut aur manmohak kavita....aur chitr to bada hi khoobsoorat chuna...chura kar apne sankalan me daal liya...

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  6. वाह - खूबसूरत भाव और शब्द संयोजन।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  7. बहुत खूबसूरती से समूचे आकाश की कल्पना की है...खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  8. वाह ! बेहतरीन ... बेहतरीन !!

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  9. जल , वायु , पृथ्वी , आकाश --बहुत सुन्दर अहसास ।
    बढ़िया रचना ।

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  10. उमंगें बरतती है उद्दाम को
    और अपनी बाहों में
    भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश

    *बाँहों में समा जाये उमंगों का सारा आकाश,मन फैलाये अपने' पर ' उड़े इस खुले आकाश के बंधनों में !अहा!!
    *बहुत ही सुंदरता से भावों को प्रस्तुत किया है आप ने.
    बड़े करीने से सजाये हैं सभी शब्द ..सुशीला जी अति सुन्दर!

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  11. वाह! बहुत सुन्दर!
    www.mathurnilesh.blogspot.com

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  12. hva jl dhrti our umng prkriti ke tmam aayamo ko aatmsat krti punh ek dmdar prstuti.ek swal hai shushila ye mansik khurak yha ki hai ya gav ki?

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  13. उमंगें बरतती है उद्दाम को
    और अपनी बाहों में
    भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश

    समूचे आकाश को बाहों में समेत लेने की उमंग ...
    कमाल की पंक्तियाँ है ... अच्छे भाव लिए ...

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  14. JITNI SUNDAR KAVITA UTNA HI SUNDAR PHOTO BHI


    SHANDAR

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  15. Great poetry with great pic .............

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  16. बहुत सुन्दर भाव!! वाह!! आनन्द आ गया पढ़ने में.

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  17. sushila ji...aap bahut khubsurat likhte ho....

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  18. अनूठे अहसासों से लवरेज बेमिशाल प्रस्तुति

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  19. मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे
    जैसे
    उमंगें बरतती है उद्दाम को
    और अपनी बाहों में
    भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश
    सुन्दर भाव, सुन्दर और सरल भाषा, सुन्दर एहसास
    और क्या चाहिये एक अति सुन्दर रचना के लिये

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  20. वाह कमाल की अभिवय्क्ति!

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  21. खूबसूरत भाव और शब्द संयोजन।

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  22. बेहरीन, इसके सिवा कोई विशेषण अधूरा लगेगा। (घनी भूत=घनीभूत)

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  23. गहरे भाव लिए सुन्दर रचना

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  24. kavita me bas ek hi pankti hai jo kavita ko bana rahi hai ....मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे....
    naye tarah ka bimb rachna hai...हवा बरतती है सुगंध को... sunder kavita !

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  25. हवा में सुगंध का घुल जाना,जल का प्यास मिटाना,ये सभी नये बिम्ब नहीं पर आपने इस तरह कविता में पिरोया है की लगता है आपके शब्दों ने बार बार प्रयोग हुए बिम्बों को नया रूप दे दिया है.धरती का हरियाली में मुँह छुपा लेना.अद्भुत...

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  26. बहुत ही भावपूर्ण आैर उम्मीद भरी रचना।

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  27. और अपनी बाहों में
    भर लेना चाहती हैं समूचा आकाश
    PREM BHAV KI AASIM ABHIVYAKTI

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  28. अद्भुत...सुन्दर रचना

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  29. सुशीला जी, सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
    --------
    ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

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  30. अद्भुत अभिव्यक्ति........ अनछुए बिम्ब....

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  31. मैं बरतती हूँ तुम्हें ऐसे ..... प्रिय को बहुत संभाल कर सहेज कर जीने की चाह है .. जैसे कोई पान के पत्ते फेरता है ....प्रिय से ऐसा नेह ! हम विस्मित हैं तुम्हारी कविता के इतने सहज, मधुर, सौम्य ,और सुंदर भावों से रचे अपनेपन को देखकर ! सखि ,तुम्हें दिल से बधाई !!

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  32. कोमल भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति----बहुत बढ़िया रचना। पूनम

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  33. सशक्त सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति.
    बधाई

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  34. ...सुन्दर रचना ..मुझे आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.

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  35. sushila ji,aap ki kavita bahut sundar hai .gahan bhavanayon ke liye badhai.

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  36. prakriti ke pratidan ki anuthi abhivyanjna.shubkamnayen.

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  37. धरती बरतती है हरी घास को
    और उसकी हरियाली में
    लहालोट हो छुपा लेती है चेहरा ,
    मैं बरतती हूँ तुम्हे ऐसे

    कुछ अलग सा एहसास .....!!

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  38. बहुत कोमल भावनाओं का सशक्त प्रस्तुतीकरण।

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  39. खूबसूरत अभिव्यक्ति.........

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  40. हवा बरतती है सुगंध को
    और दूब की नोक से चलकर
    पहुचती है शिखर पर ,
    बहुत कोमल कविता है शतदल कमल की तरह ! इस नश्वर से अनश्वर भाव चुने है !यह उतर आई है कलम की नोंक पर और पहुंचती है दिलों के शिखर पर ! बधाई स्वीकारें !

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  41. Bahut hi sundar aur khubsurat shabd bhare hain, aapne........prashanshniya....:)

    ek nimantran: hamare blog pe aayen!!

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  42. जैसे
    धरती बरतती है हरी घास को
    और उसकी हरियाली में
    लहालोट हो छुपा लेती है चेहरा ,


    Adbhut roopak

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  43. बहुत सुन्दर कविता है सुशीला जी. लेकिन इतना लम्बा विराम क्यों? अगली पोस्ट कब डालेंगी?

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  44. मन इतना उदास था पर आपकी कविता ने मन को नमी और नरमी दोनों बक्शी. गज़ब का लिखती हैं आप सुशीला जी.

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  45. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  46. gahre bhao.........sunder abhivakti.....................

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  47. Save upto 70% on all major brands of contact lenses Online In INDIA including B&L/J&J/Freshlook/Acuvue & many more. www.SoftTouchLenses.com

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