नदी की लहरों पर
खुशी की धूप उगती है
जब वह छूती है
तुम्हारी आवाज ,
उसकी उदास लहरें
पहन लेतीं हैं तुम्हारी महक
नदी नहाती है अपनी ही
भूली बिसरी चाहतें ,
भीग जाती है नदी
उस धूप की मिठास में
स्थगित धुनें सुर साध लेती हैं
और नदी उस सरगमी नमी मे
उमगकर डूब जाती है ,
बर्फीले सपनों को मिलती है
नरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
नदी की लहरों पर
ReplyDeleteखुशी की धूप उगती है
जब वह छूती है
तुम्हारी आवाज .....
बहुत ही खूबसूरत बिम्ब है.....
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
इस ग्लेशियर में कौन द्फ्न नहीं होना चाहेगा ...
बहुत खूब....
नदी
ReplyDeleteधूप
बर्फ
इन तीन प्रतीकों के माध्यम से बड़ी उत्तम कविता का सृजन किया आपने..........
आपको हार्दिक बधाई !
नरम धूप की अंकवार
ReplyDeleteशब्द मोतियों से भावों के धागे में
भीग जाती है नदी
ReplyDeleteउस धूप की मिठास में
-बहुत सुन्दर कोमल अहसास!
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर
बहुत खूबसूरत और कोमल से भावों से सजी खूबसूरत रचना
मन को छूती अभिवयक्ति भावनाओं की छटा बिखेरती पोस्ट के लिए धन्यवाद /
ReplyDeletewaah prem ko prakriti se kya khoob joda...prem ka gleshiyar...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत.......
ReplyDeleteबर्फीले सपनों को मिलती है
ReplyDeleteनरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
bahut badhiya....
भीग जाती है नदी
ReplyDeleteउस धूप की मिठास में
स्थगित धुनें सुर साध लेती हैं !!!
भीग जाती होगी नदी तभी तो तरलता है ! कोई तो धूप होगी ,जिसकी मिठास में नदी धुनों को रवानी देती हुई ,सुर साधती हुई चल पडती है ! बहती रहे नदी और चलती रहे काव्य यात्रा ! ढेरों बधाईयाँ !
bahut behtar!
ReplyDeleteachchhi kavita
ReplyDeleteबर्फीले सपनों को मिलती है
ReplyDeleteनरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
-बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति!
एक स्वर /स्नेह संबोधन कितने सुखद होते हैं न सुशीला जी!जिसे सुन कर ही खुशी में सराबोर हो जाता है मन !
अपनी सी लगी कविता!
भीनी-भीनी सी महक वाली, नर्म सा एहसास देती पानी सी निर्मल कविता... बेहद खूबसूरत !
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteहाँ तुम्हारे आवाज की छुवन ....
ReplyDeleteBeautiful !
bahut sundar montaz
ReplyDeleteहाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
मै इसे बार बार पढती हूँ सुशीला जी
''हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।''
आपके शब्द जहां कहीं भी आते हैं, अपने संस्पर्श से सुखों के असंख्य ग्लेशियर पिघला देते हैं। सरलता, सादगी, सजगता और इस सबके पीछे संवेदना की इतना सांद्र, इतना सघन आवेग !
ढेरों-ढेरों सृजनात्मक मंगल कामनाएं!
शानदार।
ReplyDeleteहाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ..
नदी की उदास लहरें ...भूलो बिसरी चाहतें .... और तुम्हारी आवाज़ की छुवन ... पिघलता एहसास ... रिस्ता सुख .. फिर रेगिस्तान होता एहसास ..... बहुत ही नाज़ुकी से पिरोया है इस रचना को ... लजवाब कल्पना ...
इस ब्लॉग में चित्र चयन अद्भुत है. कविता के बार में फिर कभी....
ReplyDeletebahut sundar lagi aapki kavita...
ReplyDeletejaane kitne ahsaason se bhari hui hai..
aabhaar..
बर्फीले सपनों को मिलती है
ReplyDeleteनरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर
susheela di, aapki yah kavita itani achchi lagi ki maihar panktiyo ka arth nikal kar bar-bar padhati hi chali gai.
poonam
इस कविता के बिंब बहुत ही सुंदर हैं। प्रेम का नदी और जल से जो संबंध है, उसे अत्यंत सुंदरता के साथ प्रस्तुत किया है सुशीला जी, बहुत बहुत बधाई। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनदी की लहरों पर
ReplyDeleteखुशी की धूप उगती है
जब वह छूती है
तुम्हारी आवाज .....
बहुत ही खूबसूरत बिम्ब है.....
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
इस ग्लेशियर में कौन द्फ्न नहीं होना चाहेगा ...
kya baat hai bahut khoob rachti hain aap
waah.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteनदी की लहरों पर
खुशी की धूप उगती है
जब वह छूती है
तुम्हारी आवाज ,
भीग जाती है नदी
ReplyDeleteउस धूप की मिठास में
स्थगित धुनें सुर साध लेती हैं
और नदी उस सरगमी नमी मे
उमगकर डूब जाती है....
बहुत सुंदर सुशीला जी .....
नदी नहाती है अपनी ही
ReplyDeleteभूली बिसरी चाहतें ,
भीग जाती है नदी
उस धूप की मिठास में
बर्फीले सपनों को मिलती है
नरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
itna sunder manvikaran aur usse utpann prabhav
aik alag duniyan mein lejata hai.shabdon mein jo bhaw ki urja bhari gayee hai usse saara akikrit ho gaya aur adbhut anand deta hai.apki rachna ne man ko moh liya.
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
....मन की कोमल भावनाओं का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है आपने ... मन को बहुत अच्छा लगा.....
प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ
khushi ki dhoop our aawaj ki chhuvn, wah,
ReplyDeletekya shbd chune hai ,
main dil se chahti hu aisi khubsoort abhivyktiyo ko pdhna our gunna.
nye ke intjar me .
Prakriti se aapne bade sundar bimb liye hain.badhai.
ReplyDeleteumda sushila ji!
ReplyDeleteछोटी-छोटी आपकी कविताओं की विशेषता यह लगी कि बिंबो और प्रतीकों से युक्त होने के बावजूद समझने में आसान हैं। प्रेम की शीतलता और ताप, दोनों कई कविताओं में मौजूद हैं। जो लोग साहित्य में आज प्रेम-कविताओं को बिलकुल नकार रहे हैं उन्हें आपके ब्लाग पर आकर देखना चाहिए कि किस तरह प्रेम सफ़र के लिए ऊर्जा का भी एक सशक्त कारक हो सकता है। आपके ब्लाग पर आना सार्थक हुआ।
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteहाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर
waah kya baat hai....
yun hi likhte rahein...
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर
अद्भुत शब्द प्रयोग...आपकी लेखनी को बारम्बार नमन...
नीरज
सुशीला जी अभी स्वामी विवेकानंद जी की इक किताब खरीदी है केवल किताब का टाइटल देख कर "I am a voice without a form".. इस शीर्षक ने जितना मुझे उद्वेलित किया उससके कहीं अधिक उद्वेलित कर रही आपकी कविता की ये पंक्ति...
ReplyDelete"नदी की लहरों पर
खुशी की धूप उगती है
जब वह छूती है
तुम्हारी आवाज "
क्या कुछ नहीं कह दिया आपने इन्ही चार पंक्तियों में ... बाकि कविता तो बस आवाज़ का कम्पन और रिदम है... सुंदर कविता..
बर्फीले सपनों को मिलती है
ReplyDeleteनरम धूप की अंकवार
हाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
प्रियतम के आवाज़ की छुअन नदी के भीतर बहुत कुछ रचती है बहुत कुछ पिघला देती है ..अदभुत है तुम्हारा प्रियतम और उसकी अंकवार! प्रियतम में समा जाने की अंतहीन अकुलाहट को नदी बनकर जीना सचमुच ऊर्जा की सतत धार को जीना है .कविता का सौन्दर्यबोध बांधता हैआवाज़ की छुवन का करिश्मा महसूस हों रहा है कविता बहुत मुबारक !!
तुम्हारे आवाज की छुवन
ReplyDeleteनदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
very nice.
8/10 nice khubsurat
ReplyDeletevery nice.......
ReplyDelete...... ....... .........
ReplyDeleteहाँ तुम्हारे आवाज की छुवन
नदी के भीतर पिघला देती है
सुखों का पूरा ग्लेशियर ।
----------- अगर यह क्रिया - व्यापार अतीत - स्मरण
का होगा तो वह नदी बेशक आंसुओं की होगी ! आंसू
यानी भावों की सघन तरलता !
सुन्दर कविता ! आभार !
Shabdoon ko khubsurti se pirone aur vicharoon ko viyakt karne ki aapki kala lajawab hai.............Wah !Uttam Rachna.
ReplyDeletewahwa....achhi rachna...
ReplyDelete-----------------------------------
ReplyDeletemere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
मनभावन अभिव्यक्ति...बेहतरीन कविता..बधाई.
ReplyDelete____________________________
'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
Didi Ji bahut sunder ahsaas hai kavita me...............bahut hi acchi.......
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार !!!
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ReplyDeletebhut khub
ReplyDeletethanks
आज संडे है। यूं ही घूमता हुआ इस ब्लाग पर आ गया। और, जब पढऩे लगा तो पढ़ता ही चला गया। जबरदस्त कविताएं हैं। इससे भी बढ़ कर कविताओं पर टिप्पणी करने वाले। जो सहज ही अहसास कराते हैं, कविता और साहित्य में आज भी रुचि बरकरार है। इस ब्लांग पर मुझे कविता और साहित्य तो मिला। इसके साथ ही मिले ढेर सारी पत्रिकाओं के लिंक। जिन्हें मंै अर्से से खोज रहा था। इसके लिए भी धन्यवाद
ReplyDeleteachchi kavayitri hain aap ye apka blog batata hai.
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