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Wednesday, March 24, 2010

अयोध्या के राम

चौदह कोसी अयोध्या में
आतें हैं तीर्थ यात्री
परिक्रमायें करते हैं नंगे-पांव
उनके पाओं के साथ
चलती है अयोध्या
डोलते है राम
आस्था के जंगल में
छिलते हैं पाओं के छाले
रिसता है खून
तीर्थ यात्री
दुखों की गठरियाँ ढ़ोते हैं सिर पर
उफनती है सरयू
की धो दें उनके पांव
उमगती है हवा
की सुखा दे उनके घाव
पर उनकी परिक्रमा
कल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की.

43 comments:

  1. इसी का नाम आस्था है, सुन्दर रचना!

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  2. यह परिक्रमा अनवरत चलती रहेगी...बहुत उम्दा रचना!


    रामनवमीं की अनेक मंगलकामनाएँ.
    -
    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. वाह! बहुत सुन्दर। रामनवमी मुबारक हो।

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  4. पर उनकी परिक्रमा
    कल भी अनवरत थी
    आज भी अनवरत है
    सदियों तक होगी यूँ ही
    चौदह कोसी खोज राम की.
    बहुत-बहुत सुन्दर. बधाई. शुभकामनायें भी.

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  5. आपने लोक मानस के राम की जो प्रतिष्‍ठा की है वह प्रशंसनीय है। बधाई।

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  6. सदियों तक होगी यूँ ही
    चौदह कोसी खोज राम की. !!! इसी आस्था पर तो आज सारा विश्व मुग्ध है !बेहद आशाजनक कविता है !राम नवमी की शुभ कामनाएं

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  7. सदियों तक होगी यूँ ही
    चौदह कोसी खोज राम की.
    हम्म...पर उनके दुखों का अंत कर पाएंगे उनके राम...या अनवरत सब आस लगाए ऐसे ही करते रहेंगे परिक्रमायें

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  8. यह अनवरत परिक्रमा सदियों तक होगी ...
    घट घट वासी राम की ....!!

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  9. रामनवमीं की मंगलकामनाएँ.....
    प्रभू की चाह में ये अनवरत क्रम यूँ ही चलता रहे ...
    जय श्री राम ....

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  10. आप की कई कविताएं पढ़ी , एक ही शब्द निकलता है मुंह से ’ मनमोहक ’ !

    बार बार आने का वादा करता हूं । धन्यवाद ।

    रामनवमी पर शुभकामनाएं ।

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  11. और कितनी सदियाँ यह यूँ ही चलती रहेगी..राम ही जाने!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  12. छिलते हैं पाओं के छाले
    रिसता है खून
    तीर्थ यात्री
    आपने वाकई तीर्थ यात्रीयो के दर्द को दिल से महसूस किया हे..धन्यवाद

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  13. Astha aur bhavanaon se paripoorna rachana---hardik shubhakamnayen.
    Adaraneeya Susheela ji,main bhee Priti ji ke ghar par ane valee thee par svasthya kharab hone ke karan naheen aa sakee--ap logon se mulakat na ho pane ka vakayee bahut afsos hai....
    Poonam

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  14. आस्था बनी रहे यह क्रम निरंतर चलता रहे ,यात्रियों को बिघ्न बाधाओं सुरक्षा मिले |गोवेर्धन की परिक्रमा भी सात कोस लगभग २१ किलोमीटर की होती है |आस्था जरूरी भी है |"" जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतान कर साथ ""दिक्कत उन्ही हो होती है

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  15. ye khoj yun hi chalti rahe anwart. ram mile na mile per prayas poora hona chahiye.

    yahan aaker taja ho gai kuch yaade ram ki dharti ki, kanak bhawan se lekar naya ghat or hanuman gadhi.

    sunder rachana ke liye badhai.

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  16. आस्था का सुन्दर प्रतीक..सच्चे मनोभाव.

    _________
    "शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण

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  17. कल भी अनवरत थी
    आज भी अनवरत है
    सदियों तक होगी यूँ ही
    चौदह कोसी खोज राम की...यही तो हमारे संस्कारों का प्रवाह है.

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  18. पर उनकी परिक्रमा
    कल भी अनवरत थी
    आज भी अनवरत है
    सदियों तक होगी यूँ ही
    चौदह कोसी खोज राम की.
    बहुत-बहुत सुन्दर. बधाई. शुभकामनायें भी

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  19. चौदह कोसी परिक्रमा के बाद भी राम नहीं मिलते लेकिन परिक्रमा अनवरत चलती है .आस्था के जंगल में पीडाएं भी कम नहीं हैं ..एक लाजवाब कविता . दिल से बधाई स्वीकारकरो .

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  20. Der se aane ke liye kshama chahti hoon.Pichli rachnayen bhi padhin.Kavita ke kshetra me nit naye aayam gadh rahin hain aap.Dher sari shubkamnayen.

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  21. बहुत अच्छा लिखा है आपने

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  22. bahut sundar ayodhaya ka photo
    sundar lekhn sheli

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  23. very nicely describe I really like it ...........

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  24. बहुत अच्छी कविता…बधाई

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  25. दो बार दाद ! शुक्रिया ,
    किसकी तारीफ करूँ ,.अयोध्या .छांव, ,चाहना या ,,,,,,,,!

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  26. अच्छी रचना. इस बार अभिव्यक्ति एक नए रंग में लगी.

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  27. तीर्थ यात्री
    दुखों की गठरियाँ ढ़ोते हैं सिर पर
    उफनती है सरयू
    की धो दें उनके पांव
    उमगती है हवा
    की सुखा दे उनके घाव
    पर उनकी परिक्रमा
    कल भी अनवरत थी
    आज भी अनवरत है

    ---Manushya ki yaatra kabhi khatm nahi hoti.....
    Bahut sudar abhivyakti....
    haardik shubhkamnayne.

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  28. बहुत दिनों बाद आया आपके ब्लाग पर और तमाम कवितायें पढ़ीं…अफ़सोस कि रेगुलर नहीं देख पाया…अब असुविधा के ब्लाग रोल में लगा रहा हूं…

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  29. राम जिस तरह हमारे मानस पर छाये हुए हैं वो धर्म, जाति के बन्धनों से ऊपर है... उनकी खोज यूं ही अनवरत चलती रहेगी... आपने बहुत भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है... बहुत सुंदर अनुपम...

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  30. अयोध्या से जुडी यादें ताजा हो गईं..आभार इस सुन्दर रचना के लिए.

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  31. आस्था से बड़ा कोई नहीं , बुरे समय में जब कोई पास नहीं होता हमारी आस्थाएं बहुत सहारा देती हैं ! शुभकामनायें !

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  32. चौदह कोसी अयोध्या में
    आतें हैं तीर्थ यात्री
    परिक्रमायें करते हैं नंगे-पांव
    उनके पाओं के साथ
    चलती है अयोध्या ...
    waah ..
    lekin unhein kaun bataye...
    raam to apne mann mein hai....
    raam to jeewan me hai....
    achhi rachna ke liye badhai, yun hi likhte rahein
    mere blog par aane ke liye dhanyawaad...

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  33. मैं भी जाऊँगी अयोध्या देखने...

    ***************
    'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"

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  34. pahli baar aapke blog par aai. bahut achchha likhti hai aap. nishchit hi hame margdarshan milega..... bhartiya samaj mein RAM aur unse judi ASTHA ki bahut gahri paith hai. astha ka sunder chitran

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  35. आप सभी का हार्दिक आभार !!!

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  36. जी लो इस पल को यारों ,
    न आएगा ये कारवां दोबारा ,

    ना बनाव राम मंदिर ,
    ना बाबरी कि मस्जिद दोबारा ,
    कुछ तुम रो लो ,
    कुछ हम रो ले ताकी ,
    न हो ये गलती दोबारा |
    श्रीकुमार गुप्ता
    fir bhi chahte hain dange to jarur banayen ram mandir .mandir shanti k liye hain na ki dagon ka karan bsana hai ram ko to unke vicharon ko mn me lao nahi to naam ke ram ko jana jayega na ki krm k............
    mn se ravan jo nikale ram uske mn me haii

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  37. आपके ब्लॉग का अनुसरण तो पहले ही कर चुका हूँ , आज आया कविता पढने तो कई कवितायें पढ़ गया | अच्छा रहा आपकी कविताओं को देखना | कुछ पर टिप्पणी भी करने की इच्छा है |

    सच कह रहा हूँ इस कविता को पढ़कर गुजरा हुआ वक़्त याद आ गया | मैं फैजाबाद का ही रहने वाला हूँ | इन दिनों दिल्ली में पढ़ाई कर रहा हूँ , पर जब घर रहता था तो जरूर जाता था चौदह कोसी और पंच कोसी पैकरमा करने | नाका नामक जगह से उठाता था और फिर पूरा करके वहीं आता था | आधा चक्कर पूरा करके सरयू में नहाते वक़्त सच में लगता था जैसे थकान दूर हुई ! फिर 'जनौरा' नामक जगह पर जाते जाते सोचते थे कि अब अगली बार नहीं आउंगा पैकरमा करने पर कुछ ही समय बाद फिर इंतिजार करने लगते थे कि 'पैकरमा कब शुरू होगा ?''

    बहुत सुन्दर सवेदना के साथ यह कविता लिखी है आपने , ऐसा लग रहा है कि आपने भी कभी - न - कभी परिक्रमा जरूर किया है ! आभार !

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  38. सुशीला जी आपकी मात्र यह कविता ही नहीं संपूर्ण ब्लॉग देखा और पढ़ा निसंदेह श्रेष्ठ एवं स्तरीय रचनाये ,साधुवाद ,मुझे गर्व है लखनऊ पर
    AVADHESH NARAIN SRIVASTAVA

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