चौदह कोसी अयोध्या में
आतें हैं तीर्थ यात्री
परिक्रमायें करते हैं नंगे-पांव
उनके पाओं के साथ
चलती है अयोध्या
डोलते है राम
आस्था के जंगल में
छिलते हैं पाओं के छाले
रिसता है खून
तीर्थ यात्री
दुखों की गठरियाँ ढ़ोते हैं सिर पर
उफनती है सरयू
की धो दें उनके पांव
उमगती है हवा
की सुखा दे उनके घाव
पर उनकी परिक्रमा
कल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की.
इसी का नाम आस्था है, सुन्दर रचना!
ReplyDeleteयह परिक्रमा अनवरत चलती रहेगी...बहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteरामनवमीं की अनेक मंगलकामनाएँ.
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
वाह! बहुत सुन्दर। रामनवमी मुबारक हो।
ReplyDeleteपर उनकी परिक्रमा
ReplyDeleteकल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की.
बहुत-बहुत सुन्दर. बधाई. शुभकामनायें भी.
आपने लोक मानस के राम की जो प्रतिष्ठा की है वह प्रशंसनीय है। बधाई।
ReplyDeleteसदियों तक होगी यूँ ही
ReplyDeleteचौदह कोसी खोज राम की. !!! इसी आस्था पर तो आज सारा विश्व मुग्ध है !बेहद आशाजनक कविता है !राम नवमी की शुभ कामनाएं
सदियों तक होगी यूँ ही
ReplyDeleteचौदह कोसी खोज राम की.
हम्म...पर उनके दुखों का अंत कर पाएंगे उनके राम...या अनवरत सब आस लगाए ऐसे ही करते रहेंगे परिक्रमायें
यह अनवरत परिक्रमा सदियों तक होगी ...
ReplyDeleteघट घट वासी राम की ....!!
रामनवमीं की मंगलकामनाएँ.....
ReplyDeleteप्रभू की चाह में ये अनवरत क्रम यूँ ही चलता रहे ...
जय श्री राम ....
आप की कई कविताएं पढ़ी , एक ही शब्द निकलता है मुंह से ’ मनमोहक ’ !
ReplyDeleteबार बार आने का वादा करता हूं । धन्यवाद ।
रामनवमी पर शुभकामनाएं ।
और कितनी सदियाँ यह यूँ ही चलती रहेगी..राम ही जाने!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
छिलते हैं पाओं के छाले
ReplyDeleteरिसता है खून
तीर्थ यात्री
आपने वाकई तीर्थ यात्रीयो के दर्द को दिल से महसूस किया हे..धन्यवाद
संुदर है।
ReplyDeleteAstha aur bhavanaon se paripoorna rachana---hardik shubhakamnayen.
ReplyDeleteAdaraneeya Susheela ji,main bhee Priti ji ke ghar par ane valee thee par svasthya kharab hone ke karan naheen aa sakee--ap logon se mulakat na ho pane ka vakayee bahut afsos hai....
Poonam
आस्था बनी रहे यह क्रम निरंतर चलता रहे ,यात्रियों को बिघ्न बाधाओं सुरक्षा मिले |गोवेर्धन की परिक्रमा भी सात कोस लगभग २१ किलोमीटर की होती है |आस्था जरूरी भी है |"" जे श्रद्धा संबल रहित नहि संतान कर साथ ""दिक्कत उन्ही हो होती है
ReplyDeletesacchi baat.....khari baat.....aur kavita ka andaaz.......
ReplyDeleteye khoj yun hi chalti rahe anwart. ram mile na mile per prayas poora hona chahiye.
ReplyDeleteyahan aaker taja ho gai kuch yaade ram ki dharti ki, kanak bhawan se lekar naya ghat or hanuman gadhi.
sunder rachana ke liye badhai.
pawan shbdon ki bhumi ...
ReplyDeleteआस्था का सुन्दर प्रतीक..सच्चे मनोभाव.
ReplyDelete_________
"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण
कल भी अनवरत थी
ReplyDeleteआज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की...यही तो हमारे संस्कारों का प्रवाह है.
पर उनकी परिक्रमा
ReplyDeleteकल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
सदियों तक होगी यूँ ही
चौदह कोसी खोज राम की.
बहुत-बहुत सुन्दर. बधाई. शुभकामनायें भी
बहुत उम्दा
ReplyDeleteचौदह कोसी परिक्रमा के बाद भी राम नहीं मिलते लेकिन परिक्रमा अनवरत चलती है .आस्था के जंगल में पीडाएं भी कम नहीं हैं ..एक लाजवाब कविता . दिल से बधाई स्वीकारकरो .
ReplyDeleteDer se aane ke liye kshama chahti hoon.Pichli rachnayen bhi padhin.Kavita ke kshetra me nit naye aayam gadh rahin hain aap.Dher sari shubkamnayen.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeletebahut sundar ayodhaya ka photo
ReplyDeletesundar lekhn sheli
wah..wa....
ReplyDeletevery nicely describe I really like it ...........
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता…बधाई
ReplyDeleteदो बार दाद ! शुक्रिया ,
ReplyDeleteकिसकी तारीफ करूँ ,.अयोध्या .छांव, ,चाहना या ,,,,,,,,!
अच्छी रचना. इस बार अभिव्यक्ति एक नए रंग में लगी.
ReplyDeleteतीर्थ यात्री
ReplyDeleteदुखों की गठरियाँ ढ़ोते हैं सिर पर
उफनती है सरयू
की धो दें उनके पांव
उमगती है हवा
की सुखा दे उनके घाव
पर उनकी परिक्रमा
कल भी अनवरत थी
आज भी अनवरत है
---Manushya ki yaatra kabhi khatm nahi hoti.....
Bahut sudar abhivyakti....
haardik shubhkamnayne.
बहुत दिनों बाद आया आपके ब्लाग पर और तमाम कवितायें पढ़ीं…अफ़सोस कि रेगुलर नहीं देख पाया…अब असुविधा के ब्लाग रोल में लगा रहा हूं…
ReplyDeleteराम जिस तरह हमारे मानस पर छाये हुए हैं वो धर्म, जाति के बन्धनों से ऊपर है... उनकी खोज यूं ही अनवरत चलती रहेगी... आपने बहुत भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया है... बहुत सुंदर अनुपम...
ReplyDeleteअयोध्या से जुडी यादें ताजा हो गईं..आभार इस सुन्दर रचना के लिए.
ReplyDeleteआस्था से बड़ा कोई नहीं , बुरे समय में जब कोई पास नहीं होता हमारी आस्थाएं बहुत सहारा देती हैं ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteचौदह कोसी अयोध्या में
ReplyDeleteआतें हैं तीर्थ यात्री
परिक्रमायें करते हैं नंगे-पांव
उनके पाओं के साथ
चलती है अयोध्या ...
waah ..
lekin unhein kaun bataye...
raam to apne mann mein hai....
raam to jeewan me hai....
achhi rachna ke liye badhai, yun hi likhte rahein
mere blog par aane ke liye dhanyawaad...
मैं भी जाऊँगी अयोध्या देखने...
ReplyDelete***************
'पाखी की दुनिया' में इस बार "मम्मी-पापा की लाडली"
pahli baar aapke blog par aai. bahut achchha likhti hai aap. nishchit hi hame margdarshan milega..... bhartiya samaj mein RAM aur unse judi ASTHA ki bahut gahri paith hai. astha ka sunder chitran
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार !!!
ReplyDeleteजी लो इस पल को यारों ,
ReplyDeleteन आएगा ये कारवां दोबारा ,
ना बनाव राम मंदिर ,
ना बाबरी कि मस्जिद दोबारा ,
कुछ तुम रो लो ,
कुछ हम रो ले ताकी ,
न हो ये गलती दोबारा |
श्रीकुमार गुप्ता
fir bhi chahte hain dange to jarur banayen ram mandir .mandir shanti k liye hain na ki dagon ka karan bsana hai ram ko to unke vicharon ko mn me lao nahi to naam ke ram ko jana jayega na ki krm k............
mn se ravan jo nikale ram uske mn me haii
आपके ब्लॉग का अनुसरण तो पहले ही कर चुका हूँ , आज आया कविता पढने तो कई कवितायें पढ़ गया | अच्छा रहा आपकी कविताओं को देखना | कुछ पर टिप्पणी भी करने की इच्छा है |
ReplyDeleteसच कह रहा हूँ इस कविता को पढ़कर गुजरा हुआ वक़्त याद आ गया | मैं फैजाबाद का ही रहने वाला हूँ | इन दिनों दिल्ली में पढ़ाई कर रहा हूँ , पर जब घर रहता था तो जरूर जाता था चौदह कोसी और पंच कोसी पैकरमा करने | नाका नामक जगह से उठाता था और फिर पूरा करके वहीं आता था | आधा चक्कर पूरा करके सरयू में नहाते वक़्त सच में लगता था जैसे थकान दूर हुई ! फिर 'जनौरा' नामक जगह पर जाते जाते सोचते थे कि अब अगली बार नहीं आउंगा पैकरमा करने पर कुछ ही समय बाद फिर इंतिजार करने लगते थे कि 'पैकरमा कब शुरू होगा ?''
बहुत सुन्दर सवेदना के साथ यह कविता लिखी है आपने , ऐसा लग रहा है कि आपने भी कभी - न - कभी परिक्रमा जरूर किया है ! आभार !
सुशीला जी आपकी मात्र यह कविता ही नहीं संपूर्ण ब्लॉग देखा और पढ़ा निसंदेह श्रेष्ठ एवं स्तरीय रचनाये ,साधुवाद ,मुझे गर्व है लखनऊ पर
ReplyDeleteAVADHESH NARAIN SRIVASTAVA