तुम्हारा नाम
अपने अर्थ की आभा में
चमकता है
जैसे अपने नमक के साथ
धीर धरे सागर हो ,
धैर्य की अटूट परम्परा में
तुम्हारे नाम का वजूद
समय के ठोस अँधेरे को भेदकर
रौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा कतरा नहा उठती हूँ ,
तुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
मै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
साइबेरियन पंछियों की तरह
तुम्हारे नाम का जल
क्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किये
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा .
और मै कतरा कतरा नहा उठती हूँ ,
ReplyDeleteतुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
मै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
साइबेरियन पंछियों की तरह
-बहुत छूते हुए अहसास!! सुन्दर अभिव्यक्ति!!
सांद्र और सुंदर कविता.तल्लीन करनेवाली.
ReplyDeleteतुम्हारे नाम की बारिश में
ReplyDeleteबिना छतरी के
मै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
भीगी रचना, एहसास की कोमलता और सुन्दर भाव की यह रचना
बेहतरीन
तुम्हारे नाम का जल
ReplyDeleteक्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किये
बहुत सुन्दर भाव सुन्दर रचना...भीगी भीगी सी
बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप . मृदु अहसास के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteएहसास की कोमलता और सुन्दर भाव की यह रचना
ReplyDeletebahut sundar ahsas dilaya aap ne
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
धैर्य की अटूट परम्परा में
ReplyDeleteतुम्हारे नाम का वजूद
समय के ठोस अँधेरे को भेदकर
रौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा कतरा नहा उठती हूँ ,
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बिना छतरी के
ReplyDeleteमै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
साइबेरियन पंछियों की तरह!!!
क्या बात है.... तुम्हारे नाम का जल तो है ,
जहाँ साइबेरियन पक्षी की तरह मन उड़ जाता है !
गर्मी में उत्सुक तरलता का एहसास बधाई !
कमाल का विस्तार है काव्य में!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर मैं आज पहली बार आया... और मुझे आपकी कवित्यें बहुत पसंद आई... मैंने तुम्हारा चुम्बन भी पढ़ा और यह भी ... मैं कविता का कोई जानकार नहीं पर अचानक अपने गति से उठने वाली पंग्तियाँ मिली... शुक्रिया.
ReplyDeletebahut achhe...
ReplyDeletehumein itni achhi kavita dene ke liye dhanyawaad...aur aapko badhai.....
mere blog par is baar..
नयी दुनिया
jaroor aayein....
अनूठे बिम्बों से सजी कविता...तुम्हारे नाम का जल कैसे खींचता है मुझे अपनी और
ReplyDeleteतुम्हारे नाम का जल
ReplyDeleteक्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किये
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा .
Bahut sundar bhavon kee khoobasurat prastuti.
Poonam
sundar...
ReplyDeletekya jbrdst kshish hai
ReplyDeleteyu dubli ptli si chup chup si aap, mashaallah ye takt kha se aai hai btlana jra
prem mein kuch bhi ho sakta hai. yadi havayen tej hoteen aur barish mein bachav ke liye rakhi chhatree bhi uda le jaatee to bheegne aur nahane ka maja ehsasas ko aur badha deta.prem mein jab nahana ho to katara katara kyon? rom - rom sirka ho jana chahiye. achha likha hai.
ReplyDeletekrishnabihari
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतुम्हारी कविता अति सुंदर है ...सुंदर भावों से भरी सागर की तरह ही !!......प्रेम में भीगने का भाव व्यापकता में प्रभावी है . मैं कृष्ण की बात से पूरा इत्तेफाक रखती हूँ कि भीगना सिरका सा हों तो प्रेम दुगुने असर से अभिव्यक्त होंगा ... इस सुन्दर कविता के लिए तुम्हें बधाई !!
ReplyDeleteकविता के शब्दों से भावों की बरसात हुई ,मन भीग गया.
ReplyDeleteअति सुंदर !
चित्र बहुत सुन्दर लगाया है.[.नीचे--जिस में बरसात हो रही है.]
अद्भुत है यह कविता। आप तो मुझे अपनी पुरानी कविताओं की ओर वापस ले जा रही हैं, वो कभी ना भूलने वाला संसार है, जिसमें दो दिल डूबकर प्यार करते हैं। ऐसी भावाभिव्यक्ति कविता को बहुआयामी बनाती है। बधाई।
ReplyDeleteक्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
ReplyDeleteमै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किये ..wah!
Hi..
ReplyDeleteAaj pahli baar aapke blog par aaya..
Wah.. Kavita ka bahav adwiteeya hai..
Aur ye Kavita hi hai.. Unglion ki chhatpatahat bilkul bhi nahi..
Aise hi likhti rahen aur aapne pathakon ko abhibhoot karti rahen..
DEEPAK..
तुम्हारे नाम की बारिश में
ReplyDeleteबिना छतरी के
मै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
साइबेरियन पंछियों की तरह
तुम्हारे नाम का जल
क्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके!
उफ़, अति सुन्दर , कमाल का लिखा है ! तारीफ़ के शब्द नहीं है, सच!
वाह !!
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteवाह !! अति सुन्दर !
ReplyDeleteवाह !! अति सुन्दर ! कमाल के शब्द ! कमाल की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतुम्हारे नाम की बारिश में
ReplyDeleteबिना छतरी के
मै भीगती हूँ ;नंगे पांव ...
साइबेरिया के पंछी की तरह ... चातक की तरह .. भंवरे की तरह ... मन भी तो चाहत के हाथों मजबूर हो जाता है ... किसी के नाम की बारिश .. या प्रेम की नमी .. भीगते रहने की चाह ... बहुत ही कमाल की कल्पना है ...
समय के ठोस अँधेरे को भेदकर
ReplyDeleteरौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा कतरा नहा उठती हूँ ,
तुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
बहुत खूब .....!!
bahut sundar panktiyaan....ekdam dil ko chhutee huee...aapkee har kavita dimaaag par chhap jatee hai...badhai
ReplyDeleteअच्छी कविता और मन को छू जाने वाले बिम्ब
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता..ख़ूबसूरत अहसास लिए.
ReplyDeleteमै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
ReplyDeleteसाइबेरियन पंछियों की तरह
तुम्हारे नाम का जल
क्यूँ बुलाता है मुझे बार बार
मै चली आती हूँ मीलों मील
बिना रुके बिना थके
तुम्हारे नाम का अर्थ
धारण किये
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा .
... gehre prem me dub kar likhi gai kavita.. bahut sunder vimb.. durlabh...
गजब है! क्या-क्या लिख देती हैं आप भी। नाम के इत्ते जलवे। वाह!
ReplyDeleteबिना छतरी के
ReplyDeleteमै भीगती हूँ ;नंगे पांव ,
...इसमें तो बड़ा मजा आता है...
________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर
साइबेरियन पंछियो के बिम्ब का बेहद सुन्दर प्रयोग है ।
ReplyDeleteसुशीला जी क्या कहूँ...हतप्रभ हूँ...रचना की प्रशंशा के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे...भाव विभोर हो गया हूँ इसे पढ़ कर...इस अद्भुत काव्य रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteनीरज
तुम्हारे नाम का अर्थ
ReplyDeleteधारण किये
तुझमे विलीन होने को आतुर
मै सदानीरा .
Neeraj ji ne sahi kaha..aapne nishabd kar diya hai!
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteभीगी-भीगी सी प्यार की मिठास संजोये सुन्दर रचना.....
ReplyDeletelovely, touchy,and wonderfull emotions.......
ReplyDeleteBAHUT hi najuk AUR man ko chu jane wali rachna......nice ...........
ReplyDeletesukriya is rachna k liye ............
ReplyDeleteaap ka dhanywad
वाहवाह अच्छी कविता
ReplyDeleteबड़े कोमल अहसासों की कविता
ReplyDeleteबधाई !
Aapko shayad HANS me bhi padha hai.Tumhare nam ka jal kavita bahut achhi ban pari hai. Jitni sangitmay hai utni hi asardar bhi.
ReplyDelete-------------------------------------
ReplyDeletemere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
bahut sunder.
ReplyDeleteसुंदर भाव, शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDelete--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
सदानीरा !
ReplyDeleteस्वयं मे आनन्द . रस . लय । प्रशंसनीय ।
यहाँ आकर ठहर गया हूँ
ReplyDeleteसादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव
अपनी माटी
माणिकनामा
इस अच्छी कविता के लिये बधाई इस अच्छी कविता के लिये बधाई इस
ReplyDeleteआप सभी मित्रों का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसमय के ठोस अँधेरे को भेदकर
ReplyDeleteरौशनी की तरह फैलता है
और मै कतरा कतरा नहा उठती हूँ ,
तुम्हारे नाम की बारिश में
बिना छतरी के
------------- पूरी कविता ही अच्छी है और इस हिस्से ने
तो बड़ी देर तक रोक रखा ! ऐसा लगा जैसे कोई भीगी
उँगलियों से समय के सिन्दूर को छू रहा हो ! आभार !
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ReplyDeleteनाम सम्मोहित सदानीरा ! आखिर क्या रखा है नाम में ? शायद, स्वयं को देखने का ये उपक्रम हो.. नाम को दर्पण बना कर! हिमांशु पाण्डेय ने कितना सही नाम दिया था मुझे श्याम विहंग :)
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