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Tuesday, February 14, 2012

तुम्हारा होना

अनवरत गड्ड-मड्ड समय है 
जिसमें तुम्हारा होना भर रह गया है शेष 
सब कुछ भूल चुकी हूँ 
यहाँ तक कि भाषा भी 
सिर्फ मौन है 
और तुम हो 
तुम्हे बटोरती हूँ 
जैसे हरसिंगार के फूल 
और उनकी महक से 
भीगती हूँ भीतर ही भीतर,
कई बार धूसर उदासियों में 
तुम बरसते हो आँखों से 
और तुम हो जाते हो मेघ 
अहर्निश कुछ अस्फुट शब्द 
बुद्बुदातें हैं मेरे होंठ 
और मैं समूचे अंतरिक्ष में 
ठिठक कर खोजती हूँ खुद को,
ब्रह्माण्ड में बचा है सिर्फ 
मेरा कहना 
और तुम्हारा सुनना
ईश्वर अपने गूंगेपन पर चकित है 
और तुम्हारे-मेरे शब्दों के बीच का मौन 
सुन्दर अंतरीप में बदल रहा है 
जहाँ फैले हैं अनगिनत उजाले 
नई व्यंजनाओं के साथ,
देह के भीतर का ताप 
दावानल बन जलाता नहीं 
तुम्हारा होना 
आत्मा को धीमी आंच पर सिझाता है 
और अबूझ आहुतियों से गुजरकर मैं 
बार बार उगने की प्रक्रिया में हूँ !     

12 comments:

  1. कई बार धूसर उदासियों में
    तुम बरसते हो आँखों से
    और तुम हो जाते हो मेघ
    अहर्निश कुछ अस्फुट शब्द
    बुद्बुदातें हैं मेरे होंठ
    और मैं समूचे अंतरिक्ष में
    ठिठक कर खोजती हूँ खुद को,


    और ये खोजना कितना सुखद होता है कभी कभी....

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  2. बार बार उगाने की प्रक्रिया में .... यही जीवन भर चलता रहता है .... एक खोज ... अच्छी प्रस्तुति

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  3. प्रतिक्रिया विहीन हूँ...जैसे खो गया हूँ....प्रतीक्षा करो मेरे फिर से उगने की।

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  4. भावो को संजोये रचना......

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  5. तुम्हे बटोरती हूँ
    जैसे हरसिंगार के फूल
    और उनकी महक से
    भीगती हूँ भीतर ही भीतर,
    कई बार धूसर उदासियों में
    तुम बरसते हो आँखों से
    और तुम हो जाते हो मेघ ,,,,

    बहुत बहुत सुन्दर...
    सादर..

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  6. ब्रह्माण्ड में बचा है सिर्फ
    मेरा कहना
    और तुम्हारा सुनना
    ईश्वर अपने गूंगेपन पर चकित है
    और तुम्हारे-मेरे शब्दों के बीच का मौन
    सुन्दर अंतरीप में बदल रहा है

    सुंदर अति सुंदर ।

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  7. बहुत ही व्यंजनापूर्ण सुंदर कविता है. हार्दिक धन्यवाद.

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  8. किसी के होने का एहसास बार बार उगने की सांस लेने की जीवन जीने की प्रेरणा देता है ...
    गहरे भाव ...

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  9. aise likhogi to ishwar ka goonga our chkit hona lazmi hai.waaaah .

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  10. तुम्हारा होना
    आत्मा को धीमी आंच पर सिझाता है
    और अबूझ आहुतियों से गुजरकर मैं
    बार बार उगने की प्रक्रिया में हूँ !
    ______________________________

    ye usake hone ka ahasas hai jo hamesha aasa pas hai

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  11. ''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ
    ठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"

    तेज लेखनी... गज़ब व्यक्तित्व ....
    शुभकामनायें आपको !

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  12. सघन और गाढ़े भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति। प्रेम के दैवीय स्वरूप और एकाकीपन के ब्रम्हांडीय विस्तार के साथ वैयक्तिक अस्तित्व को स्थापित करती रचना।

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