Pages

Saturday, April 23, 2011

नदी के आईने में


प्रेम करती हूँ तुम्हे
प्रेम करती हूँ तुम्हे ...!
सघन पेड़ों के बीच जैसे
हवा सुलझाती है अपने को,
चमकता है चाँद 
फास्फोरस की तरह
नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
पीछा करते एक दूजे का
तुम्हारी याद ;और चाँद
खूब छप-छप करते हैं
नदी की देह में,
एक चमकीली समुद्री चिडिया सी
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी 
भोर ही में
भीगी होती है मेरी आत्मा
सबसे बड़ा तारा मुझे
तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ
अपनी बांहों को शून्य में लपेटकर
हवाओं में भर जाता है संगीत,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के नर्तन से
तुम्हे संदेश भेजते हुए,
नदी के आईने में
देवदार झूमते है
और झिलमिल जल में
तैरता है तुम्हारा चेहरा ...!

49 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना..एक अनोखा चित्र सा खींच रहा है....ह्रदयस्पर्शी।

    ReplyDelete
  2. Nihayat khoobsoorat rachana!Aankhon ke aage se manzar guzarte rahe,aur ham khamosh dekhte rahe!

    ReplyDelete
  3. सुंदर बिम्बों से सजी उत्तम कविता।

    ReplyDelete
  4. sundar bimb .. pyaari kavita . sukomal shabdon ke muktak lutati .. badhai!

    ReplyDelete
  5. यह तो प्रवाह है जिसमें भाव और भाषा एकाकार हो गए हैं..हवा में सुगन्ध की तरह..आत्मा में प्रेम की तरह...अद्भुत रचना जो सीधे आत्मा में घुल मिल जाती है और उसे ले जाती है किसी दूसरे लोक में...जहाँ कष्ट सहने को अभिश्प्त शरीर नहीं हैं..बस प्रेम है.....

    ReplyDelete
  6. प्रेम जैसे बड़े विषय के आगे भाषा कितनी बौनी हो जाती है !
    और तब हम उसे व्यक्त करने के लिए किसी उतने ही विराट माध्यम -
    जैसे कि- प्रकृति का अवलंबन लेने को बाध्य होते हैं ! तब कविता सीधे
    शब्दों में नहीं बल्कि प्राकृतिक दृश्य बिम्बों में व्यक्त होती है ! तनिक गूढ़
    किन्तु सुन्दर और आत्मीय ! ऐसी भाषा मनुष्यता की सच्ची मातृभाषा है ,
    क्योंकि प्रकृति माँ है !

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  8. नदी के आईने में
    देवदार झूमते है
    और झिलमिल जल में
    तैरता है तुम्हारा चेहरा ...!

    बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  9. सुंदर प्रस्‍तुति !!

    ReplyDelete
  10. अति सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई सुशीला जी ...

    ReplyDelete
  11. और झिलमिल जल में
    तैरता है तुम्हारा चेहरा ...चेहरा आईना बहार है...

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  13. हवाओं में भर जाता है संगीत,
    देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
    अपने पत्तों के नर्तन से
    तुम्हे संदेश भेजते हुए,

    बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  14. सबसे बड़ा तारा ,,, मुझे देखता है...... जैसे लगता है कि प्रियतमा का प्रिय ही अपनी प्रिये को खामोश निगाहो से देख रहा है और प्रियतमा भी सब कुछ भूल कर अपने प्रिय में डूबी है जिसकी साक्षी बनी है पवित्र बहती हुई नदी..............!

    ReplyDelete
  15. man ko chhute shbd!
    sundar kalpna!!

    ReplyDelete
  16. सघन पेड़ों के बीच जैसे / हवा सुलझाती है अपने को ..... बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ..... बेहद खूबसूरत कविता .....

    ReplyDelete
  17. prem karti hu tumhe.... bhut bhut sunder rachna...

    ReplyDelete
  18. bahut khoobsurti prateeko ka prayog kar sunder srijan kiya hai.

    ReplyDelete
  19. अपने पत्तों के नर्तन से
    तुम्हे संदेश भेजते हुए,
    बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति, बधाई सुशीला जी ..

    ReplyDelete
  20. फास्फोरस की तरह
    नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
    पीछा करते एक दूजे का
    तुम्हारी याद ;और चाँद
    खूब छप-छप करते हैं
    नदी की देह में,
    एक चमकीली समुद्री चिडिया सी
    मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी
    भोर ही में

    बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन

    ReplyDelete
  21. Sushila ji,
    bahut khubsurati se apne komal bhavnaon ko sanjoya hai is kavita maen..hardik badhai...

    ReplyDelete
  22. सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  23. Pranam Didi ji
    नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
    पीछा करते एक दूजे का
    तुम्हारी याद ;और चाँद
    खूब छप-छप करते हैं
    नदी की देह में,

    Sunder rachna ke liye Badhai sweekar karein

    ReplyDelete
  24. ’लौकिक’ प्रेम के बहाने उससे ऊपर उठते हुए
    ’अलौकिक’ प्रेम तक की उड़ान, !
    धन्यवाद सुशीला जी !

    ReplyDelete
  25. सुशीला जी कमाल का लिखा है आपने

    ReplyDelete
  26. आपने प्रकृति के साथ प्रेम का संगम महसूस कराया है ,बधाई

    ReplyDelete
  27. sushilaa ji,
    aapki kavitaaye paddi. pahale bhi patrikaao me padd chukaa hu.

    kuchh alag frame ki kavitaaye kyaa aap nahi likhti?

    Ramesh sharma
    (shaharnamaraigarh.blogspot.com)

    ReplyDelete
  28. नदी में अपना अक्स देखना सा लगा.........भला सा !

    ReplyDelete
  29. "भोर ही में
    भीगी होती है मेरी आत्मा
    सबसे बड़ा तारा मुझे
    तुम्हारी नज़र से देखता है
    और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ
    अपनी बांहों को शून्य में लपेट कर"

    खूबसूरत भाव...!!

    ReplyDelete
  30. आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूं।रचना मनभावन लगी।धन्यवाद।

    ReplyDelete
  31. प्रेम की ऐसी सान्‍द्र अभि‍व्‍यक्‍ति‍ बहुत कम पढ़ने को मि‍लती है। आपको बधाई।......पर , अगर आप अन्‍यथा न लें, तो कहूं....यह आवश्‍यक नहीं कि‍ प्रेम कवि‍ता में प्रेम शब्‍द बार-बार आए...;न आए या कम से कम आए तो बेहतर। क्‍या आप कवि‍ता की आरम्‍भि‍क दो पंक्‍ति‍यों पर फि‍र से वि‍चार करेंगी......।

    ReplyDelete
  32. सुलभ जी ! बिल्कुल ...! मैं पुनः उन पंक्तियों पर ध्यान दे रही हूँ,अन्यथा लेने का प्रश्न ही नहीं..., आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  33. shushila ji
    kya shndar prem kavita hai
    bahut bahut badhai

    ReplyDelete
  34. आप सभी का हार्दिक आभार !

    ReplyDelete
  35. बहुत ही मनमोहक कविता.

    सादर

    ReplyDelete
  36. "प्रेम करती हूँ तुम्हे ...!
    सघन पेड़ों के बीच जैसे
    हवा सुलझाती है अपने को,
    चमकता है चाँद
    फास्फोरस की तरह
    नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,"
    बेहद खूबसूरत अभिव्‍यक्ति। प्रेम को इतने विराट फलक पर रूपायित करती यह कविता, रचनाकार के गहरी संवेदनशीलता और उसके औदात्‍य को मूर्त करती है। इस शानदार अभिव्‍यक्ति के लिए जितना कहा जाए, कम ही होगा। बधाई।

    ReplyDelete
  37. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  38. Pahli baar aapki koi rachna padhi. Behad khubsoorati se prem ko abhivyakt kiya h. Main bhi Sulabhji ki baat se sahmat hoon. Aasha hai aisi aur bhi rachnayein padhne ko milengi. Shubhkamnayein !

    ReplyDelete
  39. क्‍या कहूं, हर बार आपकी कविता लाजवाब कर देती है। प्रणाम करता हूं आपकी लेखनी को।

    ReplyDelete
  40. दिल को छू गयी ..बहुत प्यारी कविता ....
    http://boseaparna.blogspot.in/

    ReplyDelete
  41. भाव,भाषा ,प्रवाह अतुलनीय है बधाई
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post'वनफूल'
    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

    ReplyDelete

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails