प्रेम करती हूँ तुम्हे
प्रेम करती हूँ तुम्हे ...!
सघन पेड़ों के बीच जैसे
हवा सुलझाती है अपने को,
चमकता है चाँद
प्रेम करती हूँ तुम्हे ...!
सघन पेड़ों के बीच जैसे
हवा सुलझाती है अपने को,
चमकता है चाँद
फास्फोरस की तरह
नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
पीछा करते एक दूजे का
तुम्हारी याद ;और चाँद
खूब छप-छप करते हैं
नदी की देह में,
एक चमकीली समुद्री चिडिया सी
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी
नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
पीछा करते एक दूजे का
तुम्हारी याद ;और चाँद
खूब छप-छप करते हैं
नदी की देह में,
एक चमकीली समुद्री चिडिया सी
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी
भोर ही में
भीगी होती है मेरी आत्मा
सबसे बड़ा तारा मुझे
तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ
अपनी बांहों को शून्य में लपेटकर
हवाओं में भर जाता है संगीत,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के नर्तन से
तुम्हे संदेश भेजते हुए,
नदी के आईने में
देवदार झूमते है
और झिलमिल जल में
तैरता है तुम्हारा चेहरा ...!
भीगी होती है मेरी आत्मा
सबसे बड़ा तारा मुझे
तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ
अपनी बांहों को शून्य में लपेटकर
हवाओं में भर जाता है संगीत,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के नर्तन से
तुम्हे संदेश भेजते हुए,
नदी के आईने में
देवदार झूमते है
और झिलमिल जल में
तैरता है तुम्हारा चेहरा ...!
बहुत ही सुंदर रचना..एक अनोखा चित्र सा खींच रहा है....ह्रदयस्पर्शी।
ReplyDeleteNihayat khoobsoorat rachana!Aankhon ke aage se manzar guzarte rahe,aur ham khamosh dekhte rahe!
ReplyDeleteसुंदर बिम्बों से सजी उत्तम कविता।
ReplyDeletesundar bimb .. pyaari kavita . sukomal shabdon ke muktak lutati .. badhai!
ReplyDeleteयह तो प्रवाह है जिसमें भाव और भाषा एकाकार हो गए हैं..हवा में सुगन्ध की तरह..आत्मा में प्रेम की तरह...अद्भुत रचना जो सीधे आत्मा में घुल मिल जाती है और उसे ले जाती है किसी दूसरे लोक में...जहाँ कष्ट सहने को अभिश्प्त शरीर नहीं हैं..बस प्रेम है.....
ReplyDeleteप्रेम जैसे बड़े विषय के आगे भाषा कितनी बौनी हो जाती है !
ReplyDeleteऔर तब हम उसे व्यक्त करने के लिए किसी उतने ही विराट माध्यम -
जैसे कि- प्रकृति का अवलंबन लेने को बाध्य होते हैं ! तब कविता सीधे
शब्दों में नहीं बल्कि प्राकृतिक दृश्य बिम्बों में व्यक्त होती है ! तनिक गूढ़
किन्तु सुन्दर और आत्मीय ! ऐसी भाषा मनुष्यता की सच्ची मातृभाषा है ,
क्योंकि प्रकृति माँ है !
बहुत ही सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteनदी के आईने में
ReplyDeleteदेवदार झूमते है
और झिलमिल जल में
तैरता है तुम्हारा चेहरा ...!
बहुत सुन्दर...
waah
ReplyDeleteBahut sunder kavita hai aapki..badhai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteअच्छे भाव
ReplyDeleteअति सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई सुशीला जी ...
ReplyDeleteऔर झिलमिल जल में
ReplyDeleteतैरता है तुम्हारा चेहरा ...चेहरा आईना बहार है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletegood one.....
ReplyDeleteबहुत अलग अनुभूति
ReplyDeleteहवाओं में भर जाता है संगीत,
ReplyDeleteदेवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के नर्तन से
तुम्हे संदेश भेजते हुए,
बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति ।
सबसे बड़ा तारा ,,, मुझे देखता है...... जैसे लगता है कि प्रियतमा का प्रिय ही अपनी प्रिये को खामोश निगाहो से देख रहा है और प्रियतमा भी सब कुछ भूल कर अपने प्रिय में डूबी है जिसकी साक्षी बनी है पवित्र बहती हुई नदी..............!
ReplyDeleteman ko chhute shbd!
ReplyDeletesundar kalpna!!
सघन पेड़ों के बीच जैसे / हवा सुलझाती है अपने को ..... बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ..... बेहद खूबसूरत कविता .....
ReplyDeleteprem karti hu tumhe.... bhut bhut sunder rachna...
ReplyDeletebahut khoobsurti prateeko ka prayog kar sunder srijan kiya hai.
ReplyDeleteअपने पत्तों के नर्तन से
ReplyDeleteतुम्हे संदेश भेजते हुए,
बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति, बधाई सुशीला जी ..
फास्फोरस की तरह
ReplyDeleteनदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
पीछा करते एक दूजे का
तुम्हारी याद ;और चाँद
खूब छप-छप करते हैं
नदी की देह में,
एक चमकीली समुद्री चिडिया सी
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी
भोर ही में
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
Sushila ji,
ReplyDeletebahut khubsurati se apne komal bhavnaon ko sanjoya hai is kavita maen..hardik badhai...
सुन्दर रचना...
ReplyDeletePranam Didi ji
ReplyDeleteनदी के घुमक्कड़ पानियों पर,
पीछा करते एक दूजे का
तुम्हारी याद ;और चाँद
खूब छप-छप करते हैं
नदी की देह में,
Sunder rachna ke liye Badhai sweekar karein
’लौकिक’ प्रेम के बहाने उससे ऊपर उठते हुए
ReplyDelete’अलौकिक’ प्रेम तक की उड़ान, !
धन्यवाद सुशीला जी !
सुशीला जी कमाल का लिखा है आपने
ReplyDeletebehatreen rachna.
ReplyDeleteआपने प्रकृति के साथ प्रेम का संगम महसूस कराया है ,बधाई
ReplyDeletesushilaa ji,
ReplyDeleteaapki kavitaaye paddi. pahale bhi patrikaao me padd chukaa hu.
kuchh alag frame ki kavitaaye kyaa aap nahi likhti?
Ramesh sharma
(shaharnamaraigarh.blogspot.com)
नदी में अपना अक्स देखना सा लगा.........भला सा !
ReplyDelete"भोर ही में
ReplyDeleteभीगी होती है मेरी आत्मा
सबसे बड़ा तारा मुझे
तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ
अपनी बांहों को शून्य में लपेट कर"
खूबसूरत भाव...!!
आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूं।रचना मनभावन लगी।धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रेम की ऐसी सान्द्र अभिव्यक्ति बहुत कम पढ़ने को मिलती है। आपको बधाई।......पर , अगर आप अन्यथा न लें, तो कहूं....यह आवश्यक नहीं कि प्रेम कविता में प्रेम शब्द बार-बार आए...;न आए या कम से कम आए तो बेहतर। क्या आप कविता की आरम्भिक दो पंक्तियों पर फिर से विचार करेंगी......।
ReplyDeleteसुलभ जी ! बिल्कुल ...! मैं पुनः उन पंक्तियों पर ध्यान दे रही हूँ,अन्यथा लेने का प्रश्न ही नहीं..., आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteshushila ji
ReplyDeletekya shndar prem kavita hai
bahut bahut badhai
आप सभी का हार्दिक आभार !
ReplyDeleteबहुत ही मनमोहक कविता.
ReplyDeleteसादर
"प्रेम करती हूँ तुम्हे ...!
ReplyDeleteसघन पेड़ों के बीच जैसे
हवा सुलझाती है अपने को,
चमकता है चाँद
फास्फोरस की तरह
नदी के घुमक्कड़ पानियों पर,"
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति। प्रेम को इतने विराट फलक पर रूपायित करती यह कविता, रचनाकार के गहरी संवेदनशीलता और उसके औदात्य को मूर्त करती है। इस शानदार अभिव्यक्ति के लिए जितना कहा जाए, कम ही होगा। बधाई।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletePahli baar aapki koi rachna padhi. Behad khubsoorati se prem ko abhivyakt kiya h. Main bhi Sulabhji ki baat se sahmat hoon. Aasha hai aisi aur bhi rachnayein padhne ko milengi. Shubhkamnayein !
ReplyDeleteक्या कहूं, हर बार आपकी कविता लाजवाब कर देती है। प्रणाम करता हूं आपकी लेखनी को।
ReplyDeleteAdbhut hai Shushila ji
ReplyDeleteदिल को छू गयी ..बहुत प्यारी कविता ....
ReplyDeletehttp://boseaparna.blogspot.in/
भाव,भाषा ,प्रवाह अतुलनीय है बधाई
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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