स्वर्गीय पंडित भीमसेन जोशी जी के अद्भुत सुरों को समर्पित अपनी एक कविता ....
खुशी के आदिम उद्घोष सी
गूँजती है तुम्हारी आवाज़
मेघ बनकर फूँकती है
मन मे मल्हार
बूँदों सी झरती है देह पर
नेह ही नेह ,
रक्तकोशिकाओं के पाँवों में
बंध जाते हैं रुनझुन घुंघरू
अनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद
हवाएँ कर देती हैं अभिषेक
और वापस लौट आती है
हंसी , साँसों की ,
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
खण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!
खुशी के आदिम उद्घोष सी
गूँजती है तुम्हारी आवाज़
मेघ बनकर फूँकती है
मन मे मल्हार
बूँदों सी झरती है देह पर
नेह ही नेह ,
रक्तकोशिकाओं के पाँवों में
बंध जाते हैं रुनझुन घुंघरू
अनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद
हवाएँ कर देती हैं अभिषेक
और वापस लौट आती है
हंसी , साँसों की ,
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
खण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!
pandit ji ko naman ... sachchi shraddhanjali..
ReplyDeleteअनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद
हवाएँ कर देती हैं अभिषेक
और वापस लौट आती है
हंसी , साँसों की ,
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
खण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
.....तुम्हारी आवाज़ की बरखा/खींच लाती हैं गगन से रश्मियॉं'...सुंदर....प्रासंगिक पोस्ट।...साधुवाद...
ReplyDelete.....अक्षत लय को शत्-शत् नमन...
आपकी कविता के जल में साफ़-साफ़ पंडित जी झिलमिलाते हैं । कविता बेहत्तर बन पड़ी है । बधाईयाँ
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखुशी के आदिम उद्घोष सी
ReplyDeleteगूँजती है तुम्हारी आवाज़
मेघ बनकर फूँकती है
मन मे मल्हार
बूँदों सी झरती है देह पर
नेह ही नेह......हर बूंद के सुर मिल रहें हैं......सुंदर!!!!!!
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
ReplyDeleteखण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै...........
अतिसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,
जगमगाते बिम्ब-पुष्पों से गुंथी माला ,
पंडित जी को समर्पित की आपने !
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
ReplyDeleteसुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!
बहुत भावपूर्ण श्रधांजलि , जोशी जी को ।
हमारा भी नमन ।
रक्तकोशिकाओं के पाँवों में
ReplyDeleteबंध जाते हैं रुनझुन घुंघरू
अनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद
हवाएँ कर देती हैं अभिषेक
और वापस लौट आती है
हंसी , साँसों की ,
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
खण्डहरों के खोह
Waah Didi ji bahut sunder aur sachi shrandanjali
बहुत सुन्दर और पावन अभिव्यक्ति...श्रद्धांजली....
ReplyDeleteतुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!
bhavon ki Bahut maheen bunavat hai is kavita mein. bahut sunder.
ReplyDeleteAnupam
भीमसेन जोशी जी को नमन ..
ReplyDeleteमिले सुर मेरा तुम्हारा ....आपकी रचना कुछ ऐसा ही एहसास करा रही है
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Bhavnaon ki bahut hi sundar abhivyakti. Pandit Bhimsen Joshi ko ek sacchi shraddhanjali. Is sarthak rachna ke liye badhayee.
ReplyDeleteखूबसूरत श्रृद्धांजलि...
ReplyDeleteGantantr diwas bahut,bahut mubarak ho!
ReplyDeleteचुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
ReplyDeleteखण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
नमन उस आवाज को.....उस आत्मा को.....!!!
बहुत अच्छी रचना.पंडित जी कों श्रद्धांजलि और आपको गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteउनकी आवाज की कुछ बूंदे समंदर हो जाती थी
ReplyDeleteतान ताल सधे कंठों में ज्यूं सरस्वती खुद गाती थी
बहुत सुंदर भावानुभूति सुशीला जी!
''सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
ReplyDeleteकि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!''
बहुत मार्मिक...
बधाई..! और भीमसेन जोशी जी की शाश्वतता को नमन..!
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
ReplyDeleteखींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ....
बहुत सुंदर ..पंडित जी के अनमोल सुरों को मेरा शत-शत नमन...
भीमसेन जी को हार्दिक नमन।
ReplyDelete---------
हिन्दी के सर्वाधिक पढे जाने वाले ब्लॉग्।
भीमसेन जोशी जी को भावभीनी श्रधांजलि ...आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
आज (28/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
आपकी कविता मर्म को छूती है।....''.सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
ReplyDeleteकि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!''....;वे जीवन भर जीवन-राग गाते रहे...नमन।
dil se nikli aawaj
ReplyDeleteसुशीला जी मुझे कविता की समझ लगभग न के बराबर है। किन्तु आपकी कविता मुझे भी समझ आई और दिल को छू गई।
ReplyDeleteतेजेन्द्र शर्मा, लंदन
बहुत अच्छी रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteअहा...क्या मोहक भावुक उदगार हैं.....
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...
इस माहन सुर सम्राट को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि....
'' aavaj ki boond '' bahut marmik aur bhav pravan kavita hai jise aap ne poore man se racha hai. hardik badhai. laxmi kant.
ReplyDeleteचुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
ReplyDeleteखण्डहरों के खोह .....
और तब 'मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा'
अक्षर-अक्षर श्रद्धांजलि.
सुशीला जी, आपकी अभिव्यक्ति एवं आपको प्रणाम.
बहुत सुन्दर और पावन अभिव्यक्ति...श्रद्धांजली....
ReplyDeleteतुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!
बहुत शानदार पोस्ट प्रस्तुत की है आपने .शायद ब्लॉग जगत में ऐसी पोस्ट पढने से ही इसकी सार्थकता साबित होती है .बधाई .
ReplyDeleteतुम्हारी आवाज़ की बरखा
ReplyDeleteखींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
___________________
संगीत के इस महापंडित के लिये कविता से बेहतर श्रद्धांजलि क्या हो सकती थी?
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...
ReplyDeleteसंगीत का जादू ही ऐसा है ......! इस महान संगीतग्य को मेरी विनम्र श्रद्धान्जली !
"चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
ReplyDeleteखण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा"
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ श्रद्धेय पंडित जी के लिए....
मेरी भी विनम्र श्रधांजलि ....
aapne bahut hi sundar trarh se bheemsen ji ko shrdhanjali arpit ki hai , wo mere manpasand classical gaayak the ..
ReplyDeletebadhayi
-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
तुम्हारी आवाज़ की बरखा / खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
ReplyDeleteखिली गीली गुनगुनी सी धूप
बहुत अच्छी काव्यात्मक श्रद्धांजलि संगीत के जादूगर को
इस पोस्ट ने पंडित जी आवाज को एक बार फिर हमारे काने के पास ला दिया
ReplyDeletebahut hi achcha likhti hai aap ,moti jaise shabadon ko piro kar ek sundar mala roopi rachna ka nirmaan karti hai aap,bdhai...
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