नदी के भीतर
जब वसंत में बहती है वो ,
बेसुध हवा भटकती है
बंजारन गंध लिए
नदी में घुलती है जब
वो मधुमय गंध
नदी भी समूची
बंजारन हो जाती है ,
फूलों को देखने के बाद भी
बचा रहता है
बहुत कुछ देखने जैसा
अनकहा ;अकथ अभिप्राय
उनमन नदी नहाती है
सौंदर्य के वे अनगिन पल
और उस अकथ की
सारी अंतर्कथा,
सभ्यता की चौखटों से दूर
तितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
अपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी !
सभ्यता की चौखटों से दूर
ReplyDeleteतितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
बसंत की सुन्दर तस्वीर उतारी है आपने , एक अनोखे अंदाज़ में ।
बसंत की शुभकामनायें सुशीला जी ।
इस बार बहुत दिनों बाद लिखना हुआ ।
बहुत कुछ देखने जैसा
ReplyDeleteअनकहा ;अकथ अभिप्राय
उनमन नदी नहाती है
सौंदर्य के वे अनगिन पल
और उस अकथ की
सारी अंतर्कथा,
सभ्यता की चौखटों से दूर
तितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
अपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी !
अद्भुत.....शब्द कितना महत्वपूर्ण रच देते है न कभी कभी !
sundar bhav sampreshan .. aur utna hi khoobsoorat shabd sanyojan..
ReplyDeleteबेसुध हवा भटकती है
ReplyDeleteबंजारन गंध लिए
नदी में घुलती है जब
वो मधुमय गंध
नदी भी समूची
बंजारन हो जाती है
सभ्यता की चौखटों से दूर
तितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
अपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी !
वसंत में अलमस्त इस नदी के किनारे ही बसने का जी चाह रहा है..सुंदर!!!!
बेसुध हवा भटकती है
ReplyDeleteबंजारन गंध लिए
नदी में घुलती है जब
वो मधुमय गंध
नदी भी समूची
बंजारन हो जाती है
बहुत सुंदर..... बसंत और मन के भावों को एक साथ पिरोया है आपने...... बेहद खूबसूरती से.....
अच्छी कविता...बधाई....
ReplyDeleteधुन बांध बहती है नदी
ReplyDeleteसरगम नदी !
मन को छू लेने वाली अद्भुत कविता....
यहाँ से वहाँ पराग लिए
ReplyDeleteअपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी !
Kitni nafees ,nazuk kalpana hai!
सरगम नदी !
ReplyDeleteनदी सरगम!!
फूलों को देखने के बाद भी
ReplyDeleteबचा रहता है
बहुत कुछ देखने जैसा
कुछ सौन्दर्यमयी रचनाओं पर
शाब्दिक प्रतिक्रिया नहीं दी जा सकती ,
बस-सुनों और पलकें मूँद कर किसी
स्वप्न के लिए आँखें खोल दो !
मनोरम कविता... अव्यक्त को व्यक्त करते आपके शब्द कितनी स्निग्धता के साथ कविता का रूप धर लेते हैं....सुन्दर!
ReplyDeleteसुशीला जी,शुभकामनाएँ व बधाई!
basant aa gaya..
ReplyDelete"Aap yoon faaslon se guzarte rahe...
ReplyDeleteDil se qadmon kki aawaaz aati rahi.."
...
Aur
Qatra=qatra pighalta raha aasmaan...
Ik nadi dilruba-se gaatee rahi...
Aap yoo...
Bas, yoon hi...
Tumne kaha to Snowa se tha,
magar aa mai gai :
HIMBALA !
un dono ke khaate me se....
Bachna ai Haseeno!
Lo mai aa gai!!
सभ्यता की चौखटों से दूर
ReplyDeleteतितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
अपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी !
vasant beetne wala hai, lekin aapne fir se titliyon ko uda diya.........:)
ek almast tajgi deti rachna..!
देर तक ज़हन में बजती रह जाने वाली- एक बंजारी धुन... सरगम नदी की.
ReplyDeleteखूबसूरत अभीव्यक्ती!!
नदी ... पवन ... गंध ... तितलियों की उड़न .. पराग ... बहुत से मौसमों को नदी के प्रवाह मेंन समेत दिया है ... बसंत के साथ ... लाजवाब ल्लिखा है ...
ReplyDeleteनदी में घुलती है जब
ReplyDeleteवो मधुमय गंध
नदी भी समूची
बंजारन हो जाती है ,
बहुत खूब...सुन्दर भाव
सुशीला मेम !
ReplyDeleteनमस्कार !
बेसुध हवा भटकती है
बंजारन गंध लिए
नदी में घुलती है जब
वो मधुमय गंध
नदी भी समूची
बंजारन हो जाती है
बहुत सुंद बसंत और मन के भावों को एक साथ पिरोया है आपने, बेहद खूबसूरती से!
सादर
सभ्यता की चौखटों से दूर
ReplyDeleteतितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं...
बेहतर कविता...
सभ्यता की चौखटों से दूर
ReplyDeleteतितलियाँ अलमस्त उड़ती हैं
यहाँ से वहाँ पराग लिए
अपनी स्निग्ध लहरों में
धुन बांध बहती है नदी
सरगम नदी
kya baat hai, pehli baar aya hu. aab aap jab-2 naya likhengi tab-tab aana hoga. apko follow kar liya hai.
बेहद खूबसूरती से मन के भावों को पिरोया है|धन्यवाद|
ReplyDeleteआदरणीया सुशीला पुरी जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
नदी और वसंत रचना पढ़ कर आनन्दनिमग्न हो गया …
फूलों को देखने के बाद भी
बचा रहता है
बहुत कुछ देखने जैसा
अनकहा ;अकथ अभिप्राय
उनमन नदी नहाती है
सौंदर्य के वे अनगिन पल
आपकी लेखनी का ज़ादू अवाक कर रहा है …
अद्भुत् ! अनिर्वचनीय ! अद्वितीय !
♥बसंत ॠतु की आपको हार्दिक बधाई !♥
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
sushila di
ReplyDeletenadi aur basant ka adhhbhut chitran prastut kiya hai aapne .shabdo ke ati sundar chayan ne aapki rachna ko bahut hi behatreenabhivykti pradaan ki hai
bahut hi uamda
sadar dhanyvaad
poonam
आप सभी का बहुत बहुत आभार और होली की हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteफूलों को देखने के बाद भी
ReplyDeleteबचा रहता है
बहुत कुछ देखने जैसा
अनकहा ;अकथ अभिप्राय !!!
सब कुछ कह देने के बाद भी कुछ बचा रहता है कहने को ! उसका काव्य में बहुत महत्व है ! और वो आपकी कविता में है ! बधाई !
Didi Ji Sadar Pranam, Sunder bhavpurn Rachna ke liye hardi Badhai sweekar karein
ReplyDeleteकभी कभार वो तितलियाँ यहाँ तक आ जातीं हैं. जहाँ कोई चौखटें नहीं नहीं हैं .... बस हवाएं ज़रा सी बेरहम हैं.........
ReplyDeleteतृप्त करते हुए शब्द . आभार!