आज जब पिता नहीं हैं
अम्मा कुछ ज्यादा ही
जोड़ -घटाव करती हैं
रात-दिन, उन दिनों का,
पिता की चौहद्दी में
वे कभी भारहीन, भयमुक्त न थीं
वहाँ मुकदमों की अनगिनत तारीखें थीं
या फिर फसल की चिंताएँ
बुहारते ही बीता उन्हे -
अनिश्चय , अकाल,
हाँ, जब -जब नाना आते थे
जरूर तब हंसती थीं अम्मा
वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान
पिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर
कुछ दिन संतुलित रहती थी हवा
थोड़े दिनों के लिए ही सही
अम्मा को भी अपना नाम याद रहता था ,
उन्हे याद आती है -
पीतल की वह थाली
जिसे पटक दी थी पिता ने
दाल मे नमक ज्यादा होने पर
अब भी गूँजती रहती है घर में
थाली के टूटने की आवाज़
उन टुकड़ों को अब भी
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।
अम्मा ने चाहरदीवारी के भीतर की हजारों माओं की तस्वीर खींच दी... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteहर हाल में जीना सीख ही लेती है भारतीय नारी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
हर घर की माँ ...अम्मा को रखांकित करती प्रभावी रचना..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस कविता में नारी मन की गहराई, उसका अन्तर्द्वन्द्व, मान-अपमान में समान भावुक मन की उमंगे, संवेदनशीलता, सहिष्णुता आदि पर अभिव्यक्ति दी गई है, जो कि वस्तुतः सुलझी हुई वैचारिकता की प्रतीक है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा चित्रण...गहन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteJab kabhi maa pe likhi rachana padhti hun,to aankhen nam ho jati hain! Ye rachana to bahuthi sundar hai!
ReplyDeletebahut hi gahri soch...behtareen kavita.....
ReplyDeleteवो लम्हें जो याद न हों........
अब भी गूँजती रहती है घर में
ReplyDeleteथाली के टूटने की आवाज़
उन टुकड़ों को अब भी
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा .
शायद दुनिया की हर अम्मा की यही कहानी है?
मर्मस्पर्शी रचना। शुभकामनायें।
आज जब पिता नहीं हैं
ReplyDeleteअम्मा कुछ ज्यादा ही
जोड़ -घटाव करती हैं
didi ji sadar pranam ...........aapki ye rachna to man ke anta patal pe cha gayi hai ........bahut hi sanvedansheel aut itni sunder rachna se hum sabka parichay karane k liye aapka bahut shukriya............
रिश्ता .अपनी तमाम गांठो के बावजूद मौजूद रहता है ....चीजों में......
ReplyDeleteहाँ, जब -जब नाना आते थे
ReplyDeleteजरूर तब हंसती थीं अम्मा
वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान
पिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर
कुछ दिन संतुलित रहती थी हवा
थोड़े दिनों के लिए ही सही
अम्मा को भी अपना नाम याद रहता था ,,,,,,,,,,,,,अम्मा का माँ ,पत्नी होना मुझे बहुत सालता ,,,,बेहद सटीकता से भरी हुई भारतीय नारी की विवशता को शब्दाकार दिया .
"अब भी गूँजती रहती है घर में
ReplyDeleteथाली के टूटने की आवाज़
उन टुकड़ों को अब भी
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।"
हमारी अम्माओं की यही कहानी है। मर्मस्पर्शी।
मां पर लिखी कुछ श्रेष्ठ कविताओं में शुमार की जाएगी आपकी यह कविता.जहां अम्मा अब भी कुछ बीन रही है..आपके हिस्से का प्रेम,सौभाग्य.अम्माएं एसी ही होती हैं..
ReplyDeleteमैं इस वक्त अपनी मां को याद कर रही हूं..आंखें नम हैं. वे पुकार रही है..गीतवा..बकबक बंद कर.लड़की जात..कैसे होगा गुजारा.वे सीखा रही है, दुनिया से भिड़ने और बचने का सलीका.
फैंकी हुई थाली के टुकड़े बीनती अम्मा...
ReplyDeleteबेहतर...
;आपकी इस कविता ने मेरे प्राणों को भींगो दिया है।...;
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteप्रभावी रचना ।
ReplyDelete"जिसे पटक दी थी पिता ने" सुशीला जी, मेरा मानना है कि यह वाक्य ऐसे होना चाहिए था-- "जिसे पटक दिया था पिता ने" या आप इसे ऐसे भी कह सकती हैं-- "जो पटक दी तःई पिता ने"।
ReplyDeleteकविता बेहद अच्छी है । मुझे बहुत पसन्द आई ।
सुशीला जी,
ReplyDelete"जिसे पटक दी थी पिता ने" ग़लत है यह वाक्य। मेरा मानना है कि यह वाक्य ऐसे होना चाहिए था-- "जिसे पटक दिया था पिता ने" या "जो पटक दी थी पिता ने"।
कविता बेहद अच्छी है । मुझे बहुत पसन्द आई ।
भारतीय नारी का ये मानसिक दैहिक उत्पीडन किस निष्कर्ष तक ला रहा है... इसका मूल आखिर है कहाँ ? ऐसे चित्रण तो सैंकडों के हिसाब से रोज ही देखने को मिलते रहते हैं ... लहजे, अंदाज़, भाषा, बोली अलग हो सकते हैं .. लेकिन मूल स्वर तो छन कर यही आ रहा है.. और ऐसा नहीं की स्त्री का ही उत्पीडन है, पुरुष भी लगभग उसी अनुपात में पीड़ित है ... एक हिंसक समाज के यही लक्षण होते हैं ..क्या हिंसा से मुक्त समाज रचना की दिशा में कोई विचार मंथन चल सकता है ?
ReplyDeleteपिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर !!! इन सामंत वादी प्रवृतियों की धज्जिया उड़ाई है तुमने ! कितने कम दिन होते थे जब वे नही बरसते थे ! इसी लिए हमारी पीढ़ी महिलाओं की तरफ हो गई है ! बधाई !
ReplyDeletesushila ji is kavta ki tareef ke liye mere pas shabd nahi hai .badhai
ReplyDeleteहाँ, जब -जब नाना आते थे
ReplyDeleteजरूर तब हंसती थीं अम्मा
वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान
:)
susheela
ReplyDeletejb aapka sms mila us samay mai out of station thi vapsi me train me dainik jagrn rkha tha samne .aadtn use utha kr pnne pltne lgi to samne chhpi aapki ye kvita dekhi . ise phle bhi aapse sun chuki hun mgr hr bar ki trh is bar bhi ye dil ke bhut bhut kreeb lgi .
आप कि कविता बहुत अच्छी लगी ... ... कल मैं यह लेख चर्चामंच पर रखूंगी .. आपका आभार .. http://charchamanch.blogspot.com .. on dated 17-12-2010
ReplyDeleteआदरणीया सुशीला पुरी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
मां और पिता से संबंधित रचनाएं मुझे भाव विह्वल कर देती हैं …
और, आपकी रचना तो किसी पत्थर को भी मोम बनाने की सामर्थ्य रखती है … ।
उन टुकड़ों को अब भी,
जब - तब बीनती रहती हैं अम्मा …
अत्यंत करुण और कोमल भाव …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
ReplyDeletebahut sunder aur bhawbhini.
ReplyDeleteपीतल की वह थाली
ReplyDeleteजिसे पटक दी थी पिता ने
दाल मे नमक ज्यादा होने पर
अब भी गूँजती रहती है घर में
थाली के टूटने की आवाज़
उन टुकड़ों को अब भी
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।
बेहतरीन भाव
ek umda rachna..
ReplyDeletemere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
माँ के जीवन का खाका खींच दिया है ....संवेदनशील कविता ..या कहूँ माँ का जीवन
ReplyDeleteअम्मा के बहाने नारीमन की भावनाओं की साक्षात अभिव्यक्ति।
ReplyDelete---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
अब भी गूँजती रहती है घर में
ReplyDeleteथाली के टूटने की आवाज़
उन टुकड़ों को अब भी
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...
बीते लम्हों को उम्र भर समेटते रहते हैं ... कुछ गहरे एहसास जो चाहते हुवे भी छोड़े नहीं जा सकते ... यादों के लबादे से निकली यादगार रचना ..
बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई!
ReplyDeleteअम्मा पर लिखी यह रचना- क्या कहूं! बहुत शानदार, उम्दा.
ReplyDelete--
पंख, आबिदा और खुदा
आप सभी का हार्दिक आभार !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअम्मा पर लिखी ये चंद पंक्तियाँ अम्मा की ऐतिहासिक पीडा की ईमानदार और निर्मम अभिव्यक्ति है .इस सुन्दर कविता के लिए दिल से बधाई .
ReplyDeletemaa par aapki kavita ne maa ki yaad dila di....
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