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Monday, December 13, 2010

अम्मा

आज जब पिता नहीं हैं 
अम्मा कुछ ज्यादा ही 
जोड़ -घटाव करती हैं 
रात-दिन, उन दिनों का, 
पिता की चौहद्दी में 
वे कभी भारहीन, भयमुक्त न थीं 
वहाँ मुकदमों की अनगिनत तारीखें थीं 
या फिर फसल की चिंताएँ 
बुहारते ही बीता उन्हे -
अनिश्चय , अकाल,
हाँ, जब -जब नाना आते थे 
जरूर तब हंसती थीं अम्मा 
वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान 
पिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर 
कुछ दिन संतुलित रहती थी हवा 
थोड़े दिनों के लिए ही सही 
अम्मा को भी अपना नाम याद रहता था ,
उन्हे याद आती है -
पीतल की वह थाली 
जिसे पटक दी थी पिता ने 
दाल मे नमक ज्यादा होने पर 
अब भी गूँजती रहती है घर में 
थाली के टूटने की आवाज़ 
उन टुकड़ों को अब भी 
जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।   

39 comments:

  1. अम्मा ने चाहरदीवारी के भीतर की हजारों माओं की तस्वीर खींच दी... बहुत सुन्दर...

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  2. हर हाल में जीना सीख ही लेती है भारतीय नारी ।
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. हर घर की माँ ...अम्मा को रखांकित करती प्रभावी रचना..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. इस कविता में नारी मन की गहराई, उसका अन्तर्द्वन्द्व, मान-अपमान में समान भावुक मन की उमंगे, संवेदनशीलता, सहिष्णुता आदि पर अभिव्यक्ति दी गई है, जो कि वस्तुतः सुलझी हुई वैचारिकता की प्रतीक है।

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  5. बहुत उम्दा चित्रण...गहन अभिव्यक्ति!!

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  6. Jab kabhi maa pe likhi rachana padhti hun,to aankhen nam ho jati hain! Ye rachana to bahuthi sundar hai!

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  7. अब भी गूँजती रहती है घर में
    थाली के टूटने की आवाज़
    उन टुकड़ों को अब भी
    जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा .
    शायद दुनिया की हर अम्मा की यही कहानी है?
    मर्मस्पर्शी रचना। शुभकामनायें।

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  8. आज जब पिता नहीं हैं
    अम्मा कुछ ज्यादा ही
    जोड़ -घटाव करती हैं

    didi ji sadar pranam ...........aapki ye rachna to man ke anta patal pe cha gayi hai ........bahut hi sanvedansheel aut itni sunder rachna se hum sabka parichay karane k liye aapka bahut shukriya............

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  9. रिश्ता .अपनी तमाम गांठो के बावजूद मौजूद रहता है ....चीजों में......

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  10. हाँ, जब -जब नाना आते थे
    जरूर तब हंसती थीं अम्मा
    वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान
    पिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर
    कुछ दिन संतुलित रहती थी हवा
    थोड़े दिनों के लिए ही सही
    अम्मा को भी अपना नाम याद रहता था ,,,,,,,,,,,,,अम्मा का माँ ,पत्नी होना मुझे बहुत सालता ,,,,बेहद सटीकता से भरी हुई भारतीय नारी की विवशता को शब्दाकार दिया .

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  11. "अब भी गूँजती रहती है घर में
    थाली के टूटने की आवाज़
    उन टुकड़ों को अब भी
    जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।"

    हमारी अम्माओं की यही कहानी है। मर्मस्पर्शी।

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  12. मां पर लिखी कुछ श्रेष्ठ कविताओं में शुमार की जाएगी आपकी यह कविता.जहां अम्मा अब भी कुछ बीन रही है..आपके हिस्से का प्रेम,सौभाग्य.अम्माएं एसी ही होती हैं..
    मैं इस वक्त अपनी मां को याद कर रही हूं..आंखें नम हैं. वे पुकार रही है..गीतवा..बकबक बंद कर.लड़की जात..कैसे होगा गुजारा.वे सीखा रही है, दुनिया से भिड़ने और बचने का सलीका.

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  13. फैंकी हुई थाली के टुकड़े बीनती अम्मा...
    बेहतर...

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  14. ;आपकी इस कवि‍ता ने मेरे प्राणों को भींगो दि‍या है।...;

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  15. "जिसे पटक दी थी पिता ने" सुशीला जी, मेरा मानना है कि यह वाक्य ऐसे होना चाहिए था-- "जिसे पटक दिया था पिता ने" या आप इसे ऐसे भी कह सकती हैं-- "जो पटक दी तःई पिता ने"।

    कविता बेहद अच्छी है । मुझे बहुत पसन्द आई ।

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  16. सुशीला जी,
    "जिसे पटक दी थी पिता ने" ग़लत है यह वाक्य। मेरा मानना है कि यह वाक्य ऐसे होना चाहिए था-- "जिसे पटक दिया था पिता ने" या "जो पटक दी थी पिता ने"।
    कविता बेहद अच्छी है । मुझे बहुत पसन्द आई ।

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  17. भारतीय नारी का ये मानसिक दैहिक उत्पीडन किस निष्कर्ष तक ला रहा है... इसका मूल आखिर है कहाँ ? ऐसे चित्रण तो सैंकडों के हिसाब से रोज ही देखने को मिलते रहते हैं ... लहजे, अंदाज़, भाषा, बोली अलग हो सकते हैं .. लेकिन मूल स्वर तो छन कर यही आ रहा है.. और ऐसा नहीं की स्त्री का ही उत्पीडन है, पुरुष भी लगभग उसी अनुपात में पीड़ित है ... एक हिंसक समाज के यही लक्षण होते हैं ..क्या हिंसा से मुक्त समाज रचना की दिशा में कोई विचार मंथन चल सकता है ?

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  18. पिता भी तब बरसते नहीं थे उनपर !!! इन सामंत वादी प्रवृतियों की धज्जिया उड़ाई है तुमने ! कितने कम दिन होते थे जब वे नही बरसते थे ! इसी लिए हमारी पीढ़ी महिलाओं की तरफ हो गई है ! बधाई !

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  19. sushila ji is kavta ki tareef ke liye mere pas shabd nahi hai .badhai

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  20. हाँ, जब -जब नाना आते थे
    जरूर तब हंसती थीं अम्मा
    वेवजह भी ओढ़े रहती थीं मुस्कान

    :)

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  21. susheela
    jb aapka sms mila us samay mai out of station thi vapsi me train me dainik jagrn rkha tha samne .aadtn use utha kr pnne pltne lgi to samne chhpi aapki ye kvita dekhi . ise phle bhi aapse sun chuki hun mgr hr bar ki trh is bar bhi ye dil ke bhut bhut kreeb lgi .

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  22. आप कि कविता बहुत अच्छी लगी ... ... कल मैं यह लेख चर्चामंच पर रखूंगी .. आपका आभार .. http://charchamanch.blogspot.com .. on dated 17-12-2010

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  23. आदरणीया सुशीला पुरी जी
    नमस्कार !

    मां और पिता से संबंधित रचनाएं मुझे भाव विह्वल कर देती हैं …
    और, आपकी रचना तो किसी पत्थर को भी मोम बनाने की सामर्थ्य रखती है … ।

    उन टुकड़ों को अब भी,
    जब - तब बीनती रहती हैं अम्मा …


    अत्यंत करुण और कोमल भाव …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  24. बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

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  25. पीतल की वह थाली
    जिसे पटक दी थी पिता ने
    दाल मे नमक ज्यादा होने पर
    अब भी गूँजती रहती है घर में
    थाली के टूटने की आवाज़
    उन टुकड़ों को अब भी
    जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...।
    बेहतरीन भाव

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  26. ek umda rachna..

    mere blog par bhi sawagat hai..
    Lyrics Mantra
    thankyou

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  27. माँ के जीवन का खाका खींच दिया है ....संवेदनशील कविता ..या कहूँ माँ का जीवन

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  28. अम्‍मा के बहाने नारीमन की भावनाओं की साक्षात अभिव्‍यक्ति।

    ---------
    छुई-मुई सी नाज़ुक...
    कुँवर बच्‍चों के बचपन को बचालो।

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  29. अब भी गूँजती रहती है घर में
    थाली के टूटने की आवाज़
    उन टुकड़ों को अब भी
    जब -तब बीनती रहती हैं अम्मा ...

    बीते लम्हों को उम्र भर समेटते रहते हैं ... कुछ गहरे एहसास जो चाहते हुवे भी छोड़े नहीं जा सकते ... यादों के लबादे से निकली यादगार रचना ..

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  30. बहुत अच्छी लगी कविता। बधाई!

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  31. अम्मा पर लिखी यह रचना- क्या कहूं! बहुत शानदार, उम्दा.
    --
    पंख, आबिदा और खुदा

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  32. आप सभी का हार्दिक आभार !

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  33. अम्मा पर लिखी ये चंद पंक्तियाँ अम्मा की ऐतिहासिक पीडा की ईमानदार और निर्मम अभिव्यक्ति है .इस सुन्दर कविता के लिए दिल से बधाई .

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  34. maa par aapki kavita ne maa ki yaad dila di....

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