जैसे, हवा आई चुपके से
और रच... गई साँस ,
बिना किसी आहट के
जैसे, दाखिल हुई धूप
कमरे मे
और भर गई उजास ,
जैसे खोलकर पिंजड़ा
उड़ गया पंक्षी
आकाश मे
और पंखों मे समा गया हो
रंग नीला- नीला ,
जैसे, झरी हो ओस
बिल्कुल दबे पाँव
और पसीज गया हो
मन का शीशा
उजली सी दिखने लगी हो
पूरी दुनिया.....,
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
और धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
paseej gaya hi man ka sheesha ,yad aayi jaise hava aayi chupame se rach gayi sans .bahut acha,bahut khoob likha hai badahio,sushila ji
ReplyDeleteये यादें तो जीने का बहाना होती हैं...कभी हंसाती हैं तो कभी बेबात ही रुला भी देती हैं...और आपकी ये रचना बहुत ही सुन्दर हो... शुभकामनाएं..
ReplyDeleteउदास हैं हम....
यादों को भ्रूण कहना ...एक दम नया प्रतीक ....सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteजैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
Behad anoothee rachana!
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
bahut khoobsoorat lines... abhibhoot kardenewali rachna...
मन को छूने वाले कोमल भावों को उद्घाटित करती ये पंक्तियाँ शब्द दर शब्द नया बिम्ब गढ़ती हैं.उम्दा कविता .बधाई ! अरुण कमल की कविता याद आती है ---जैसे चींटी के शक्कर तोड़ने की आवाज ...जैसे गर्भ में बूंद गिरने की आवाज ...
ReplyDeletebahut hi gajab ka lekhan hai aapka .......
ReplyDeleteअरसे बाद आपकी कविता आती है और अगली कविता आने तक जेहन में मचलती रहती है.. सर्वथा नया विम्ब लिया है आपने भ्रूण का .. सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteयह सच है कि हमें सांस के लिए निथरी हवा चाहिये, अंधेरों से उबरने के लिए उजास चाहिए, पंछी को पिंजरा नहीं खुला-नीला आकाश चाहिए, मन के शीशे को पारदर्शी बनाए रखने के लिए ओस सा झरता शीतल आलोक चाहिए - एक ऐसा उजला आलोक कि जिसमें मां की कोख में पलते भ्रूण की हंसी सुनाई कि उसका नर्तन के लिए मचलना स्पंदित हो - यह खूबसूरत अहसास फकत् स्मृति (याद) भर न बना रहे, इसी कोमल भाव को बहुत धीमे स्वर में बयान करती यह एक अच्छी कविता है, सुशीलाजी।
ReplyDeleteजैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
सुशीलाजी....नया विम्ब.... नया प्रतीक
सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
सुन्दर.....अति सुन्दर।
ReplyDeleteहमारी हिन्दी की एक अच्छी कविता है यह । सुशीला जी!
ReplyDeleteतुम्हारी याद भी तुम जैसी है ....थोड़ी .चुलबुली ओर थोड़ी शर्मीली ....
ReplyDeleteजैसे पिंजड़ा खोल कर उड़ गया हो कोई पक्षी और अपने पंख में समा गया हो...
ReplyDeleteयाद बंदिनी ही नहीं बनाती, बांधती ही नहीं, मुक्ति-दायिनी भी होती है, यह इस कविता से जाना ! बधाई!
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!...वाह सुंदर अति सुंदर. सुशीला जी आपकी कविता गर्भ तक छू गई.
ma bchche ko jnm deti hai our rchnakar rchna ko .udahrn samne hai . dekho ho gya na kmaaaaal ! nye bimb ke liye sadhuwaad .
ReplyDeleteयाद आई ऐसे
ReplyDeleteजैसे, हवा आई चुपके से !!!
यादो को ऐसे कोमल बिम्बों में उभारना कविता की बहुत बड़ी सफलता है ! नये बिम्ब प्रभाव शाली हैं ! चित्र की सुंदर बाला भावनाओं की गरिमा से परिपूर्ण है ! प्यारी सी कविता के लिए बधाई !
यादों के अहसास की प्रकृति के अनेक रूपों से अद्भुत तुलना करते हुए बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteयाद को तुमने अलौकिक विस्तार और गति दे दी है .यादें सजीव भी होती है और सांस लेती हैं यह तुम्हारी कविता पढ़ कर जाना ..
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए .
प्राण और तरंग से भरी हुई 'याद ' अप्रतिम है.बधाई.
याद के सहारे हम जीवन के कई पडाव तय करते हैं....जो हमारे प्राणों को नयी उर्जा से भरती है....हमेशा की तरह अदभुत लगा...
ReplyDeleteयादों को बहुत सलीके से संजोया है आपने। बधाई।
ReplyDelete---------
सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
बेहतर...
ReplyDeleteSmriti ko itne vividh roopon me aap jaisi rachnakar hi dekh sakti hai...Badhai...
ReplyDeleteNavintam prayas ............bahut accha laga ........
ReplyDeleteयादें ... सच है यादों चुपचाप चली आती हैं ... पर इनका सृजन भी हमारे अंतस से ही होता है ...
ReplyDeleteकोई कुछ नहीं कर पाता इन यादों का ... बहुत लाजवाब कविता ...
mem pranam !
ReplyDeleteek achchi aur bhauk rachna hai . badhai
sadhuwad !
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
क्या बिम्ब है ! अद्भुत.
अनछुए बिम्बों का सुन्दर प्रयोग.बहुत खूब.
ReplyDeleteप्रकाश पर्व की ढेरों शुभकामनायें.
सुंदर रचना !
ReplyDeleteदीपमाला पर्व की आपको बहुत बहुत बधाई हो
आपकी प्रोफाइल लाइन बहुत प्रभावित कर गयी ! भविष्य में पढने हेतु आपको फालो कर रहा हूँ !
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!
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सुंदर रचना !
.
“नन्हें दीपों की माला से स्वर्ण रश्मियों का विस्तार -
ReplyDeleteबिना भेद के स्वर्ण रश्मियां आया बांटन ये त्यौहार !
निश्छल निर्मल पावन मन ,में भाव जगाती दीपशिखाएं ,
बिना भेद अरु राग-द्वेष के सबके मन करती उजियार !! “
हैप्पी दीवाली-सुकुमार गीतकार राकेश खण्डेलवाल
सुहानी लगे हर गली आपको,
ReplyDeleteलगे फूल-सी हर कली आपको.
सुखी रक्खें बजरंगबली आपको,
मुबारक हो दीपावली आपको.
कुँवर कुसुमेश
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleterealy nice & wish u a happy diwali and happy new year
ReplyDeleteJiwan ki khatti Mithi yaden hi to hame jine ki prerana deti hai.yadi jiwan se hum yadon ko nikal de to jine ke liye kuchh bhi nahi rah jata hai.Jane wale to chale jate hain lekin unki yadn hi unki uoasthiti ka ehsas karati rahti hain. Nice post.Wish u a happy Diwali.
ReplyDeleteआदरणीया सुशीला पुरी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपकी रचना "याद" बहुत प्रभावित करती है ।
याद आई ऐसे
जैसे, हवा आई चुपके से
और रच... गई साँस ,
बिना किसी आहट के
जैसे, दाखिल हुई धूप
कमरे मे
और भर गई उजास !
तमाम बिंब कविता की ख़ूबसूरती में चार चांद लगाने वाले हैं ।
अच्छी श्रेष्ठ कविता के लिए आभार और बहुत बहुत बधाई !
आपको और परिवारजनों को
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं !
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान !
लक्ष्मी बरसाएं कृपा , बढ़े आपका मान !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ..
ise kahte hai dil se nikli hui rachna , badhai
kuch alag ..kuch apna sa...
ReplyDeleteजैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
ReplyDeleteऔर धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ..
*अहा ! क्या तुलना की है याद की...बहुत सुन्दर!
सुशीला जी, इस शमा को जलाए रखें।
ReplyDelete---------
मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
सुशीला जी, सुन्दर और अद्भुत बिम्बों वाली कविता ----अत्यन्त प्रभावशाली।
ReplyDeletebahut sunder.
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार .....शुक्रिया !!!
ReplyDeleteदाखिल हुई धूप
ReplyDeleteकमरे मे
और भर गई उजास ।
जय हो!
Praise Life for the Gift of Thirst.
ReplyDeletesundar rachnaa...!!
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