shusheela khoobsurat ehsas shbdbddh ho ke pnno pe utr aaye to kuchh isi trha ki njm bnti hai . dral saheb ki masumiyt bha gai . mgr unki shnka ka smadhan apekchhit hai .
सम्माननीय दराल जी ! 'पावस' का अर्थ होता है वर्षा ऋतु और 'धानी' एक ऐसे रंग के संबोधन मे आता है जो हरी हरी घास का रंग होता है या हरियाली का ही पर्याय...। आपका आभार...!
ऊषा जी ! प्रेम को आत्मसात करने के बाद समूची पृथ्वी ही अपनी लगती है ...., संदेह तो कहीं है ही नहीं...पावस को बीच मे लाने का मकसद मात्र इतना है कि पावस को उल्लास और खुशी का मौसम माना गया है ,मेरी पंक्तियों पर ध्यान दीजिएगा -- 'उसकी बातें',यहाँ उसकी बातों का तात्पर्य निश्चितरुप से प्रिय की बातों की ही बात है और ये बातें जरूरी नहीं की 'उसी'से ही हो रही हों ,दुनिया मे कहीं भी उसकी बातें होंगी तो पावस को तो आना ही होगा यदि आप प्रेम मे होंगे.....!!!
बेहद कम शब्दों में एक साथ कई बातें कहने काम आपका हुनर अनूठा है। चार रूपकों से प्रेम की जो सृष्टि आपने की है वह अतुल्य है। ऐसी ही उत्कृष्ट कविताओं की अपेक्षा रहती है आपसे।
वाह! बहुत खूब कहा.
ReplyDeleteप्रेम की अदभुद व्याख्या... किसी की बातें जब पावस हो जाए.. धरती तो हो ही जाएगा मन... सुंदर कविता....
ReplyDeleteBehad sundar rachana..mere paas aksar alfaaz nahi hote...kalse comment dene ki koshish me hun,par net me kuchh samasya thi jo de nahi payi.
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुन्दर ...उसकी बातें .पावस की तरह ...
ReplyDeleteवाह!!!!!
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ReplyDeleteसुशीला जी...
ReplyDeleteपावस से सबका तन भीगे...
और बातों से मन भीगे...
धानी चुनर, धरा सी..ओढ़े...
मन बातों से ही चहके...
सुन्दर भाव....सच में...
दीपक....
इस काव्यालय के चक्कर में सभी कवि बन गए बिहारी...
ReplyDeleteसुशीला जी मतलब तो आप समझ ही गई होगीं..
सच है प्रेम ही नही उसका एहसास भी भिगो जाता अंदर तक ... प्रेम को कुछ शब्दों में भी कहा जा सकता है ...
ReplyDeletebahut sundar !!roz hii paawas toh sirf pyaar men hota hai ...
ReplyDeleteधानी चूनर...और भीगना...
ReplyDeleteबेहतर...
पावस और धानी --आपने तो पल्ले ही नहीं पड़ा सुशीला जी ।
ReplyDeleteमानने में कैसी शर्म !
ओह , मांफ कीजियेगा , लिखने में गलती हो गई । मेरा मतलब था -अपने (मेरे ) समझ में नहीं आया , पायस और धानी का मतलब ।
ReplyDeleteshusheela
ReplyDeletekhoobsurat ehsas shbdbddh ho ke pnno pe utr aaye to kuchh isi trha ki njm bnti hai .
dral saheb ki masumiyt bha gai . mgr unki shnka ka smadhan apekchhit hai .
सम्माननीय दराल जी ! 'पावस' का अर्थ होता है वर्षा ऋतु और 'धानी' एक ऐसे रंग के संबोधन मे आता है जो हरी हरी घास का रंग होता है या हरियाली का ही पर्याय...। आपका आभार...!
ReplyDeletebeautiful lines Sangeeta ji. Very touching and meaningful.
ReplyDeleteधानी चूनर.........
ReplyDeleteसुन्दर शब्द ...
सुन्दर कविता !!!
पावस है की उसकी बातें हैं ,,,उसकी बातें हैं की पावस हैं ! संदेह अलंकार है ! बता दो न ! किसकी बातें !सुंदर रचना ! बधाई !
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
No Right Click
prem pagi rachna....
ReplyDeleteati sundar kavita.....
ReplyDeleteहे आदमजात सी बेखोफ सुशीला....ये पावस हमें भी मारे है. इस मौसम में मन रीतिकालीन हो जाता है..धानी चूनर ओढकर पृथ्वी हो जाओ आप.शानदार अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार हैं..........
ReplyDeleteवाह सुशीला जी । अब समझ में आया । आभार ।
ReplyDeleteप्रेम की बरखा यूँ ही होती रहे ।
बहुत सुन्दर अहसास ।
Behatareen kavita Susheela dee,---barish kee anubhootiyon ko kam lekin prabhavashalee shabdon men bandha apne.
ReplyDeletePoonam
सुंदर शब्द और सुंदर भाव.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ....
प्रेम का सुन्दर व्याखान ....
ReplyDeleteगणेशोत्सव और हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना
क्या बात है सुशीला जी! वाह.
ReplyDeleteऊषा जी ! प्रेम को आत्मसात करने के बाद समूची पृथ्वी ही अपनी लगती है ...., संदेह तो कहीं है ही नहीं...पावस को बीच मे लाने का मकसद मात्र इतना है कि पावस को उल्लास और खुशी का मौसम माना गया है ,मेरी पंक्तियों पर ध्यान दीजिएगा -- 'उसकी बातें',यहाँ उसकी बातों का तात्पर्य निश्चितरुप से प्रिय की बातों की ही बात है और ये बातें जरूरी नहीं की 'उसी'से ही हो रही हों ,दुनिया मे कहीं भी उसकी बातें होंगी तो पावस को तो आना ही होगा यदि आप प्रेम मे होंगे.....!!!
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुन्दर ......
ReplyDeleteकम शब्दों में बेहतरीन भाव .....!!
ReplyDeleteधानी - धान की पत्तियों सा रंग ...हल्का हरापन लिए ......
bhawpurn kavita.
ReplyDeleteसुन्दर है। मामला ऐसा ही हरा-भरा बना रहे।
ReplyDeleteभीगना
ReplyDeleteसिर्फ पावस में ही नहीं होता
उसकी बातें
भिगोती हैं
रोज ही
सचमुच समूचा भींगना ही है यह।
बारिश में आज दिन भी सलामत नहीं रहे
रह-रह के यूं पड़ती रही यादों की फुहारें।
आपके ब्लाग में लगे तमाम चित्र उद्वेलित करते हैं।
ReplyDeleteसच लिखा.सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletesushila mem
ReplyDeletenamaskar 1
...बहुत सुन्दर ...उसकी बातें .पावस की तरह
रोज ही
ReplyDeleteधरती की तरह
धानी चूनर
ओढ़ लेती हूँ मैं ।
बहुत ही खूबसूरत पक्ति सुन्दर चित्र
बेहद कम शब्दों में एक साथ कई बातें कहने काम आपका हुनर अनूठा है। चार रूपकों से प्रेम की जो सृष्टि आपने की है वह अतुल्य है। ऐसी ही उत्कृष्ट कविताओं की अपेक्षा रहती है आपसे।
ReplyDeleteआप ने तो वही बात कह दी जो शाश्वत है!
ReplyDeleteबारिश तो गई लेकिन पंक्तियाँ अच्छी लगीं
ReplyDeleteआप सभी हार्दिक आभार ....आपकी visit मेरी प्रेरणा है !!!
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