"लखनऊ शहर की शान श्री नरेश सक्सेना जी की यह कविता मेरी पसंदीदा कविताओं मे से एक है ,जिसे मैंने रूबरू उन्हे पढ़ते हुये भी सुना है , और यह कविता उनके एकमात्र कविता संकलन का टाइटिल भी है"
क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का
कितनी नदियाँ आयीं और कहाँ खो गई
क्या पता
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे
कैसे पुकारे
मीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
नमक किसे नही चाहिए
लेकिन सबकी जरूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोये
क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरूध्द
उसके उछाल की सजा है यह
कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों मे नमक है या नही
नमक नहीं है उसके स्वप्न मे
मुझे पता है
मै बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी
की इच्छा के बारे मे सोचता हूँ
पछाड़े खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर मे समुद्र
अभी -अभी बादल
अभी -अभी बर्फ
अभी -अभी बर्फ
अभी -अभी बादल ।
--- नरेश सक्सेना
bahut gambhir kavita.. namak ka bimv bahut naya saa hai.. samander aur nadiya bhi paramparik arthon me nahi hain.. eak achhi kavita padhwane ke liya dhanyawaad
ReplyDeleteRoy sir kee baat se sahmat hoon.........:)
ReplyDeleteaapne ek achchhi kavita se rubaru karwaya.....dhanyawad!!
पछाड़े खा रहा है
ReplyDeleteमेरे तीन चौथाई शरीर मे समुद्र
इतनी सुन्दर रचना पढवाने का शुक्रिया
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
ReplyDeleteकहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
सुन्दर कविता...
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteखुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
ReplyDeleteसमुद्र पर हो रही है बारिश
बहुत सुन्दर रचना ।
Hi..
ReplyDeleteAapke dwara prastut kavita dwara mujhe bhi apne shahar ke pratishit kavi ki kavita se ru-ba-ru hone ka saubhagya mila...eske liye aapka abhaar..
Kavita bhavon ki anuthi abhivyakti hai...aur kuchh kaha to chhote muhn badi baat lagegi..
Deepak...
यह संग्रह मेरे प्रिय संग्रहों में से एक ही नहीं बल्कि पिछले कुछ दशकों में प्रकाशित होने वाले अत्यंत महत्वपूर्ण कविता संग्रहों में से एक है. नरेश जी कवियों के कवि हैं और एक ऐसी 'आधुनिक अंतर्दृष्टि' उनकी सभी कविताओं में अंतर्विन्यस्त होती है, जो अधिकतर उन समकालीन कविताओं में भी विरल है, जो या तो पहली नज़र में ताज़ा लगती भाषाई भंगिमाओं, क्षिप्र वक्रोक्तियों अथवा प्रकट राजनीतिक 'अभिव्यक्तियों'के पीछे अपने उस अभाव को छुपाने का चतुर कौशल करती हैं या सीधे 'पक्षधरताएं'घोषित करते हुए, बिना आधुनिक हुए समकालीन हो जाना चाहती हैं। दुर्भाग्य से उन्हें उस आलोचना का अनुमोदन मिल जाता है, जो स्वयं उसी अभाव से ग्रस्त है। किसी आलोचक ने उनकी कविताओं की तुलना ब्रेश्त की भाषिक किफ़ायत और 'precision' से की थी, हिंदी कविता में वह भाषिक मितव्ययिता कहीं है तो इस संग्रह की कविताएं उसका उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। फिर अपनी ही कविताओं को लेकर नरेश जी में जो निस्संगता और वैराग्य-सा है, वह इस उदग्र समय में और कहां है। हिंदी कविता एक दिन अपना खोया नमक खोजने इन्हीं कविताओं के पास आयेगी, तब तक शोर का यह 'क्लाउड-बर्स्ट' खत्म हो चुका होगा और हम शब्दों की धीमी आवाज़ सुनने की फिर शुरुआत करेंगे।
ReplyDeleteइस कविता को लौटा लाने के लिए आभार!
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब! सुन्दर पसंद!
ReplyDeleteआदरणीय नरेश जी की इतनी गंभीर,भावपूर्ण कविता पढ़वाने के लिये मेरा आभार।
ReplyDeleteDidi ji itni acchi bhavpurna & gambhir kavita ko humse rubru kerwane k liye bahut bahut shukriya......................
ReplyDeleteकवि आपकी आत्मा की दृष्टि को एक दूरबीन देता है ....देखिये न ...कितनी दूर तक दिखाया है
ReplyDeleteकैसे पुकारे
मीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
शुक्रिया इस कविता को यहाँ बांटने के लिए
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
ReplyDeleteकहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश ।
इस रचना का एक-एक शब्द गहरे उतर गया, बहुत ही सुन्दर, बहुत-बहुत आभार इसे प्रस्तुत करने का ।
क्या कहूँ ……………निशब्द हूँ।
ReplyDeleteइतनी गहनता के लिये शब्द ही नही मिल पाते……………सब मौन हो जाते हैं।
इतनी ख़ूबसूरत कविता पढवाने के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteसमुद्र पर हो रही है बारिश !
ReplyDeleteएक शानदार कविता संग्रह है ! जिसे भारत के कोने कोने में पढ़ा और सराहा गया है ! इस कविता को सुलभ करने के लिए तुम्हें धन्यवाद !
बेहद शशक्त रचना ... नमक के माध्यम से बहुत कुछ कह रही है रचना ... कितना कुछ समेटने के बाद भी सबका नमक संभाले रहता है समुद्र .....
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna.....
ReplyDeleteumdaah prastuti...
mere blog par is baar..
पगली है बदली....
http://i555.blogspot.com/
नरेश भाई की इस रचना का कथ्य अतल गहराइयों मे है ।
ReplyDeleteप्रस्तुति प्रशंसनीय ।
अद्भुत कविता है यह नरेश जी की। कितनी बार पढ़ी है, फिर भी बार-बार पढ़ने को मन करता है। नरेश जी वाल्यूम में विश्वास नहीं करते। उनका जोर एक-एक शब्द पर रहता है। इसीलिये उनकी कवितायें सीमित संख्या में होते हुये भी अच्छी कविता लिखने की पाठशाला हैं। महान कवि की महान रचनाएं।
ReplyDeleteबड़े और सधे हुए कवि हैं नरेश जी। गरिमा और संवेदना का विरल संयोग इनकी कविता में है।
ReplyDeleteसुशीला जी,यह कविता मेरी भी पसंदीदा कविताओं में शामिल है.इसकी याद ताज़ा करने के लिए आभार.
ReplyDeleteसशक्त और सच्ची कविता पढवाने के लिए आभार |
ReplyDeleteवाह !!!!
ReplyDeleteआभार पढवाने के लिए....
प्रशंसनीय.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता , नरेश जी से यह सुनी भी है ।
ReplyDeleteकैसे पुकारे
ReplyDeleteमीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
Nresh ji ki is kavita ke liya aapaka aabhar.
नरेश जी मेरे प्रियतम कवियों में हैं। उनकी कविताएं ढूंढ ढूंढ कर पढनी पड़ती हैं। वे अद्भुत रचनाकर हैं। उनके यहां मात्रा में कम लेकिन गुणवत्ता में अधिक रचनाएं हैं। हिंदी में उनके अलावा कम ही कवि हैं, जिनकी रचनाएं लोगों की जुबान पर चढती हैं। यह उनकी काव्यमेधा का अप्रतिम उदाहरण है।
ReplyDeleteनरेश जी की यह कविता मैं शायद पहले कभी उन से ही सुन चुका हूं --लेकिन इसे यहां फ़िर से पढ़ना सुखद लगा। आपको आभार इसे पुनः पढ़वाने का।
ReplyDeletesammaniyaa sushila jee
ReplyDeletenamskar !
behad behad aabhar ek achchi rachna padhwane ke liye aur shri naresh jee ko sadhuwad ise rachne ke liye ,
aabhar !
[smudr par ho rhi barish
ReplyDelete]in laino ke shbd aur unme nihi arth me bhut gudhta hai bhut gharai hai utna hi jitna ki svym smudr ghara aur gudh hai jis tarh chitij ko dekhna aasan hai par pakdna kathin usi tarh is kavita ke bhav ko mahsus karna aasan par uske bhav vykt karna kathin hai bhut kuch kah jati hai kavita ek chammch chini pane ki
aaturta me bda hi karud bhav hai
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
ReplyDeleteसमुद्र पर हो रही है बारिश
-देर सी ही सही..क्या खूब रचना पढ़ने मिली. वाह!!
आपको कितना शुक्रिया कहें? :)
sushila
ReplyDeletenresh ji ke vyktitv ke anuroop
upr se shant bhitr tmam hlchal liye huye .
is hlchal ko smjhne ke liye inke sahity snsar me our ghre paithna hoga . uplbdh kra sko to btana .
राजवंत जी ! यह मेरा सौभाग्य होगा ,आदरणीय नरेश जी का एकमात्र कविता संकलन मेरे पास है , उसके अलावा भी उनकी देर सारी कविताएँ मेरे पास हैं , आप जब चाहें तब !!!
ReplyDeletemeri kavitaon ko aapka intzaar hai....
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteकैसे पुकारे
ReplyDeleteमीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
नरेश सक्सेना जी से रुबरु आपने यह कविता सुनी है.....क्या बात है आदरणीया....!
नरेश जी से कई बार मिलने की सोचने के बावजूद उनसे अब तक भेंट नहीं हो सकी ....अगली बार लखनऊ आया तो मिलने का प्रयास करूंगा. बहरहाल अभी तो आपने जो उनकी कविता लिखी है उसे पढ़ कर आनंद उठा रह हूँ
आप सभी का बहुत-बहुत आभार .....
ReplyDeleteमेरी बेहद पसन्दीदा कविता है यह .........
ReplyDeleteबेहतरीन कविता...आभार।
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