कितनी संजीदगी से हाल-ए-दिल बयां कर दिया…………एक मे दूजे के अस्तित्व को समेट दिया और द्वैत का भेद मिटा दिया… कल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com
yade kisi share ki mohtaj nhi ye to bs aati hai our aati hi chali jati hai koi drwaja koi khidki inhe aane se na rok pai hai ye to bs aati hai our aati hi chli jati hai .
सुशीलाजी, ..क्या होता, तो क्या होता - यह सोचना पाठक का नहीं, रचनाकार का काम है, फिर भी आपके प्रेमिल स्वभाव को देखते हुए मेरा यह कहने का साहस हो रहा है कि यह कविता इतनी ही होती, जितनी कि मैंने ऊपर लिखी है, तो..!!
हर सवाल का जवाब जरूरी नहीं होता। कुछ सवाल लाजवाब कर जाते हैं। आपकी कविता ने भी लाजवाब कर दिया है। परवीन शाकिर का शेर याद आता है- मैं सच सच बोलूंगी और हार जाउंगी, वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा। बधाई, बहुत ही सुंदर कविता के लिए।
'तुम इतना क्यूँ याद आती हो ' Ghayal ki gati ghayal jane,na jane wo ghayal nahi.Wo jab yaad aaye,bahut yaad aaye,na jane kyon.yahi jeevan ka rahasya hai,yahi jeevan ka saundarya hai.shayad yah koi bata nahi payega kabhi,bas mahsus kar payega.adbhut hi kahunga.
Itni zara-si rachana ne kya kuchh nahi kah dala? Kuchh aur kahne ko mere paas bhi nahi bacha!
ReplyDeleteमुआ वक़्त!!
ReplyDeleteकुछ नहीं बचता कुछ कहने को
ReplyDeleteक्योंकि बिन कहे बहुत कुछ कह दिया जाता है
कितनी संजीदगी से हाल-ए-दिल बयां कर दिया…………एक मे दूजे के अस्तित्व को समेट दिया और द्वैत का भेद मिटा दिया…
ReplyDeleteकल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
यादों के भी सहारे होते हैं ।
ReplyDeleteWOW.............
ReplyDeleteचार पंक्तिया और चार युगों की व्याख्या... बहुत सहज और प्रभावशाली..
ReplyDeletechar lines ne hi sab kuch keh diya .........
ReplyDeleteहम्म ...सही है...मैं इन प्रश्नों की गहराई में डूब गयी हूँ
ReplyDeleteकुछ नहीं बचता है कहने को !!!
ReplyDeleteऔर इसी कुछ नही में वह कहा गया जो कभी कहा ही नही गया !बेहद सम्वेदनशील कविता बधाई !
कम शब्दों में जीवन दर्शन.
ReplyDeleteलाज़वाब पंक्तियों के साथ लाज़वाब पैंटिंग...
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति है...
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteUsme aur mujhme farak hai etna..
Wo puchhta bahut hai..
Batata bahut kam hai..
Leejiye aapki tarz par kuchh bhav humne bhi piro diye..
Deepak..
वाह! क्या बात है! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteयादों की कहा-सुनी जारी है। वाह जी! वाह!
ReplyDeleteसुशीला पुरी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
…कुछ नहीं बचता है कहने को !
प्रेमानुभूति की संक्षिप्त , लेकिन बहुत सुंदर और संप्रेषणीय रचना के लिए आभार !
आपका सौन्दर्यबोध रचनाओं के साथ साथ सुंदर सुरुचिपूर्ण चित्रों के रूप में भी पूरे ब्लॉग में उभर - निखर कर सामने आता है ।
कृपया , सहस्त्रो बधाइयां स्वीकार करें ।
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है ,अवश्य आइए…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
yade kisi share ki mohtaj nhi
ReplyDeleteye to bs aati hai our
aati hi chali jati hai
koi drwaja koi khidki
inhe aane se na rok pai hai
ye to bs aati hai our aati hi chli jati hai .
kya khoob susheela !
बहुत कुछ कहने के लिए बहुत सारे शब्दों की जरूरत नहीं होती...गागर में सागर सी रचना....
ReplyDeleteनीरज
सही है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सम्मानिया मेम ,
ReplyDeleteप्रणाम !
इन पंक्तियों में बहुत कह दिया आप ने ,
साधुवाद
बिन कहे बहुत कुछ कह दिया,
ReplyDeleteआभार....
बड़ी दूर की बात कह दी...लाजवाब रचना..बधाई.
ReplyDeleteलिल्लाह!
ReplyDeleteकुछ उनकी जफ़ाओं ने लुटा कुछ उनकी अदाए मार गयी.
ReplyDeleteहम राजे मोहब्बत ख न सके चुप रहने की आदत मार गयी...
ख*कह
ReplyDeleteसुशीला दी, कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने।
ReplyDeleteBahut hi kamaal ka bhav.
ReplyDeleterachna padhke chup ho jane ko man karta hai.
na vo kuchh kahte hain
na hum kuchh khte hain
ek doosare ko masti se
bas dekhte rahte hain.
सुशीला जी, प्रश्न और उत्तर के बीच का यह मौन ही तो सशक्त रचना को जन्म देता है। अच्छी कविता।
ReplyDelete'तुम इतना क्यूँ याद आती हो'
ReplyDelete'...और तुम?'
सुशीलाजी, ..क्या होता, तो क्या होता - यह सोचना पाठक का नहीं, रचनाकार का काम है, फिर भी आपके प्रेमिल स्वभाव को देखते हुए मेरा यह कहने का साहस हो रहा है कि यह कविता इतनी ही होती, जितनी कि मैंने ऊपर लिखी है, तो..!!
इतनी साफ और छोटी सी बात...बस इस तरह समझनी पडती है...क्या बात है !
ReplyDeleteहर सवाल का जवाब जरूरी नहीं होता। कुछ सवाल लाजवाब कर जाते हैं। आपकी कविता ने भी लाजवाब कर दिया है। परवीन शाकिर का शेर याद आता है- मैं सच सच बोलूंगी और हार जाउंगी,
ReplyDeleteवो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा।
बधाई, बहुत ही सुंदर कविता के लिए।
'तुम इतना क्यूँ याद आती हो '
ReplyDeleteGhayal ki gati ghayal jane,na jane wo ghayal nahi.Wo jab yaad aaye,bahut yaad aaye,na jane kyon.yahi jeevan ka rahasya hai,yahi jeevan ka saundarya hai.shayad yah koi bata nahi payega kabhi,bas mahsus kar payega.adbhut hi kahunga.
अक्सर होता है ऐसा..सवाल का जवाब सवाल ही होता है ..
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब! छोटी सी सुन्दर पंक्तियों में बहुत ही गहराई है! इस प्रभावशाली पोस्ट के लिए बधाई!
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ReplyDeleteसही है ।
ReplyDeleteयाद तो दोनो तरफ होती है बराबर की ....कुछ ही शब्दों में दूर की बात ....
ReplyDeleteये वक़्त भी...
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार !
ReplyDeleteइतनी छोटी कविता और प्रेम का संपूर्ण विस्तार...? उफ़्फ़्फ़!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteयाद आना भी कम्बख्त कहां बस में होता है ?
क्यों कि मैं तुम्हारे TV का Remote साथ ले आई थी , ये भी उत्तर हो सकता है ना ? :-)
ReplyDeleteमज़ाक बन्द ।
अच्छी और प्यारी सी कविता है ।
वह पूछता है-
ReplyDelete'तुम इतना क्यूँ याद आती हो '
और सिवाय इसके कि
यही सवाल मै उससे करूँ
कुछ नहीं बचता है कहने को ।
वाह्_______
सवाल के बदले सवाल सही
कुछ इसी तरह हाल चाल सही