पहले -पहल जब
उसकी गोद मे गिरा था बीज
वृक्ष होने के लिए
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,
पहले पहल जब
हवा जन्मी थी
सहेजा था उसने सुगंध
बनाई थी सांस
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,
पहले पहल जब
बादल उगे थे
उतरी थीं नदियाँ
समंदर को गले लगाकर
बुझाई थी प्यास
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,
------ सुशीला पुरी
अपने ही अस्तित्व की स्मृतियाँ .... बेहतरीन कविता
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सुशीला जी काफी दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली धन्यवाद और कभी समय मिले तो http:pankajkrsah.blogspot.com पे भी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना सुशीला जी आभार..
ReplyDeleteBadee hee gazab kee rachana hai!
ReplyDeleteपहले पहल जब
ReplyDeleteबादल उगे थे
उतरी थीं नदियाँ
समंदर को गले लगाकर
बुझाई थी प्यास
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,
Gazab kee rachana hai!
...हथेली खोलकर तो देखिए
ReplyDeleteमोतियों की पूरी खेप
तुम्हारी अँजुरी के इंतजार में
सीप से बाहर
आने को आतुर है !
नारित्त्व की परतन्त्रता !
ReplyDeleteन जाने कब पायेगी मुक्ति
पहले -पहल जब
ReplyDeleteधरती कुनमुनाई थी
उसकी गोद मे गिरा था बीज
वृक्ष होने के लिए
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,
प्यारी रचना
भा गई मन को
सादर
वाह....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना....
सादर
अनु
अहा!
ReplyDeleteपहले पहल जब
ReplyDeleteहवा जन्मी थी
सहेजा था उसने सुगंध
बनाई थी सांस
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे.........,
सुंदर रचना...............
सुंदर रचना। बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ी। पिछली दफा पहली बार टिप्पणी की थी। तबसे आपकी नई पोस्ट का इंतजार था। बधाई
ReplyDeletemamatva se bhari hui rachna..
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ReplyDeleteब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
बहुत सुन्दर...
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDelete