Pages

Monday, October 1, 2012


पहले -पहल जब 
धरती कुनमुनाई थी 
उसकी गोद मे गिरा था बीज 
वृक्ष होने के लिए 
तब से बंद हूँ मै 
तुम्हारी हथेलियों मे,

पहले पहल जब 
हवा जन्मी थी 
सहेजा था उसने सुगंध 
बनाई थी सांस 
तब से बंद हूँ मै 
तुम्हारी हथेलियों मे,

पहले पहल जब 
बादल उगे थे 
उतरी थीं नदियाँ 
समंदर को गले लगाकर 
बुझाई थी प्यास 
तब से बंद हूँ मै
तुम्हारी हथेलियों मे,

------ सुशीला पुरी 

17 comments:

  1. अपने ही अस्तित्व की स्मृतियाँ .... बेहतरीन कविता

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर सुशीला जी काफी दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली धन्यवाद और कभी समय मिले तो http:pankajkrsah.blogspot.com पे भी

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर रचना सुशीला जी आभार..

    ReplyDelete
  4. Badee hee gazab kee rachana hai!

    ReplyDelete
  5. पहले पहल जब
    बादल उगे थे
    उतरी थीं नदियाँ
    समंदर को गले लगाकर
    बुझाई थी प्यास
    तब से बंद हूँ मै
    तुम्हारी हथेलियों मे,
    Gazab kee rachana hai!

    ReplyDelete
  6. ...हथेली खोलकर तो देखिए
    मोतियों की पूरी खेप
    तुम्हारी अँजुरी के इंतजार में
    सीप से बाहर
    आने को आतुर है !

    ReplyDelete
  7. नारित्त्व की परतन्त्रता !
    न जाने कब पायेगी मुक्ति

    ReplyDelete
  8. पहले -पहल जब
    धरती कुनमुनाई थी
    उसकी गोद मे गिरा था बीज
    वृक्ष होने के लिए
    तब से बंद हूँ मै
    तुम्हारी हथेलियों मे,
    प्यारी रचना
    भा गई मन को
    सादर

    ReplyDelete
  9. वाह....
    बेहद खूबसूरत रचना....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  10. पहले पहल जब
    हवा जन्मी थी
    सहेजा था उसने सुगंध
    बनाई थी सांस
    तब से बंद हूँ मै
    तुम्हारी हथेलियों मे.........,
    सुंदर रचना...............

    ReplyDelete
  11. सुंदर रचना। बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढ़ी। पिछली दफा पहली बार टिप्पणी की थी। तबसे आपकी नई पोस्ट का इंतजार था। बधाई

    ReplyDelete
  12. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

    ReplyDelete

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails