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Saturday, September 24, 2011

पेन्टिंग पर तितली

( ये कविता पुस्तक-मेले के एक स्टाल पर हुसैन की पेन्टिंग पर बैठी एक जिंदा तितली देखकर लिखी गई ...)

वो तितली उड़ सकती थी 
मेले में स्वछंद ... 
शब्दों को मुट्ठी में भरकर 
किताबों की सुगंध पीते हुये
अर्थों की दुनियाँ के पार 

वो उड़ सकती थी 
नीले खुले आसमान में 
बादलों के पार 
बूँदों से आँख -मिचौनी खेलते हुए 
पृथ्वी को नहलाते हुए 
अपने अनगिन रंगों की बारिश में 

वो उड़ सकती थी 
दूर...बहुत दूर 
नदी की लहरों सी चंचल 
समंदर के सीने पर 
चित्र बनाते हुए खिलखिलाते हुए 

पहुँच सकती थी वो 
रंगों का सूत्र लिए 
रंगों के गाँव 
रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी 
हंसी और आँसू का हाल 

पर ,बेसुध विमुग्ध वह 
हुसैन के श्वेत -श्याम चित्र पर 
लिए जा रही थी 
चुंबन ही चुंबन 
चुंबन ही चुंबन !   

29 comments:

  1. sundar!ud jayegi titali!
    kahin zyada der nhi rukegi
    sundar shyamal titali...

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  2. बेहद सशक्त और शानदार रचना।

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  3. Vah Didi, kitni sunder rachna hai, akhir titli bhi kala ki parkhi nikli......badhai

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  4. बहुत सुन्दर....तितली के रंगों जैसी.

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  5. सुन्दर सरस विषय, श्रेष्ठ भावाभिव्यक्ति। साधुवाद सुशीला जी।

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  6. बेसुध विमुग्ध वह
    हुसैन के श्वेत -श्याम चित्र पर
    लिए जा रही थी
    चुंबन ही चुंबन
    चुंबन ही चुंबन !

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  7. एक तितली ने किताबों की दुनिया में उड़ते हुए पहचाना अपने जैसे निश्‍छल सौंदर्य के चितेरे हुसैन की कला को। और एक कवि ने उसे अद्भुत ढंग से व्‍यक्‍त किया। लाजवाब।

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  8. तितली के मन के भावों को शायद शब्द दे दिए हैं ... पारखी तितली
    अच्छी प्रस्तुति

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  9. waah titli ka ye haal tha to dekhne wale un buddhijiviyon ka kya hal hoga jo apne bhaavo ko abhivyakt kar sakte hai kai tarah se.

    bahut sunder shabdo se saji utkrisht abhivyakti.

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  10. Is kavita ko chura kar, titli bana kar uda diya, aur pahuncha diya parindon tak...

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  11. Wah,kya andaz hai aapka bhi,bahut oonchi kalpana ko swar diya ,sunder rachna ,hardik dhanyavaad.
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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  12. WAH-WAH di
    kamaal kar diya hai aapne to .
    kitni sahjta ke saath aapne titli ke mano -bhavon ko abhivykt kiya hai.yahi to ek shreshhth -kavi ki pahchaan hai.aur isme aap parangat hain yah likhne ki jaroorat nahi hai.
    bahut bahut hi achhi lagi aapki ye anupam kriti
    hardik badhai
    sadar naman
    poonam

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  13. alag tarah ki behad jandar kavita......

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  14. TITLI KE BAHAANE APNE MN KE BHAVON KO ABHIVYAKT KAR DIA.........KHOOOOB

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  15. कवि की कल्पना की पहुँच कहाँ तक जा सकती है...!
    एक सुन्दर उदाहरण.....
    आपकी ये रचना......!!

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  16. पहुँच सकती थी वो
    रंगों का सूत्र लिए
    रंगों के गाँव
    रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
    हंसी और आँसू का हाल ....पर , bahut sundar chitran

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  17. वाह सुशीला जी ,मुझे लगता है वह तितली और कोई नहीं आप ही थीं, कम-से-कम उस क्षण ! बहुत सुन्दर कविता ! सच है सौंदर्य अनुभूति का विषय है ,कहने का नहीं !

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  18. सुन्दर प्रस्तुति पर
    बहुत बहुत बधाई ||

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  19. Didi Ji Pranam,
    Appki yehi to khasiyat hai .......ki aap kabhi kahi bhi, kisi bhi topic pr .itni sasakt aur umda rachna likh akti hai ...........nahi to titliyan to log roj dekhte hai aur shayed kitabo p bhi baithti ho ................
    aapki is behtreen rachna ke liye bahut bahut badhai ...........

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  20. कितने सुन्दर भाव भरे हैं..... वाह!
    सादर...

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  21. मुझको है प्रिये नहीं.......पेंटर न्यूड हुसैन....
    अभिव्यक्ति के नाम पर.......सदा रहा बेचैन.....
    सदा रहा बेचैन.........देवियों को दी गाली.....
    टांग कब्र में डाल .......नग्नता पेंट से डाली......
    कह मनोज बनते नहीं......कर्मविहीन के भाग्य....
    मरने भर मिटटी नहीं......निज धरती सौभाग्य.....

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  22. पहुँच सकती थी वो
    रंगों का सूत्र लिए
    रंगों के गाँव
    रंगों के नुस्खों से पूछ सकती थी
    हंसी और आँसू का हाल ....पर , रश्मि प्रभा जी की तरह मुझे भी यह शब्द अन्दर तक छू गए ...

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