
चारो तरफ से
बनाना पड़ता है
आकाश के नीचे
एक नया आकाश,
बचाना पड़ता है
लू और धूप से
सींचना पड़ता है
नियम से,
बहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
पान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर,
स्वाद और रंगत के लिए
चूने कत्थे की तरह
पिसना पड़ता है
गलना पड़ता है,
इसके बाद भी
इलायची सी सुगंध
प्रेम से ही आती है !
अच्छी कविता। बधाई सुशीला दी...
ReplyDeletebahut khoob di....aabhar
ReplyDeleteसच में प्रेम है ही ऐसी चीज़ कि उसे पान की फसल की तरह बहुत अवेरना होता है। रिश्तों की नजाकत और उसमें भी प्रेम संबंध को लेकर बिल्कुल नए ढंग से यह कविता कई नई बातें कहती हैं। एक बार फिर सुशीला जी की पारखी नज़र की दाद देनी होगी। लाजवाब...
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
ReplyDeleteपान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर, वाह,
.... खूबसूरत अभिव्यक्ति। बधाई।
पान की तरह ही फेरना पड़ता है रिश्तों को ...बहुत खूबसूरत चिंतन
ReplyDeleteअथ आमंत्रण आपको, आकर दें आशीष |
ReplyDeleteअपनी प्रस्तुति पाइए, साथ और भी बीस ||
सोमवार
चर्चा-मंच 656
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
ReplyDeleteपान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर,
नई उपमाओं की सुन्दर कविता के लिए बधाई...
पिसना पड़ता है
ReplyDeleteगलना पड़ता है,
इसके बाद भी
इलायची सी सुगंध
प्रेम से ही आती है ! bahut khooooooooooob......
बहुत सुन्दर...जैसे दिल एक पान का पत्ता....आशाओं का चूना और चाहतों का कत्था.........!
ReplyDeletebahut hi sunder wakai pan ki tarah hi sambhandho mei ushma kaa sanchaar kerne hetu hame bhi apni bhavnao kaa vicharo ka sambvednao kaa perishkaar kerna hota hai v pan ki tarah hi us sambhandh ko apnejeevan mei mahtav dena hota hai ..sahaj sampreshniy v sunder kavita
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
ReplyDeleteपान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
सूखने न पाये इसके लिए
लपेटनी पड़ती है नम चादर,
स्वाद और रंगत के लिए
चूने कत्थे की तरह
पिसना पड़ता है
गलना पड़ता है,
Bilkul sahee farmaya!
बेहतर...
ReplyDeleteशुभकामनाएं||
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया ||
बधाई |
बहुत सुन्दर प्तथा सार्थक रचना, आभार
ReplyDeleteये तो अद्भुत बात कही:
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
पान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते
जय हो! बधाई आपको!
शिव मंगल सिंह सुमन ने पान को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाया आपने प्रेम के पल्लवन सिंचन हिफाज़त का बेहद सुन्दर सार्थक सन्दर्भ उठाया सच मुच नाज़ुक होती है पान की बेल ,आपने सारा विज्ञान भी लिख दिया .जानकारी से भरपूर (पोस्ट) काव्यात्मक अभिव्यक्ति.बधाई इस अप्रतिम कविता के लिए .
ReplyDeleteसही कहा है आपने ..रिश्ते भी पान की तरह ही नाजुक होते हैं
ReplyDeleteसही है दीदी ,,,,,,रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं उन्हे बचाने के लिए उन्हे ऐसे सहेजना पड़ता है !!!!
ReplyDeleteइलायची की खुशबू प्रेम से ही आती है ...
ReplyDeleteइस सुगन्धित रचना के लिए आभार !
अनोखी उपमा है रिश्ते की लेकिन सच्ची बात कह गयी है ....
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
ReplyDeleteपान की तरह,
फेरना पड़ता है बार बार
गलने से बचाने के वास्ते ...
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति...
सादर...
waah bahut khoobsurat aur sunder tulnaatmak soch.
ReplyDeleteपान को बिम्ब बना कर गूढ़ बात को कितनी सहजता से कह दिया.
ReplyDelete-
ओह प्रेम तुम अब भी कितने रहस्मय हो ? कितने सालो से .....
ReplyDeleteआभार आप सभी का ...दिल से !!!
ReplyDeletejust gr8....
ReplyDeleteबहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते
ReplyDeleteपान की तरह,
सुन्दर विम्ब!
thanks susheela ki tumne meri frmaish pr ye khoobsoorat our behd nrm kvita blog pr dali .
ReplyDeleteस्वाद और रंगत के लिए
ReplyDeleteचूने कत्थे की तरह
पिसना पड़ता है
गलना पड़ता है,
इसके बाद भी
इलायची सी सुगंध
प्रेम से ही आती है !
just excellent...!
super
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