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Tuesday, April 5, 2011

एक दिन अचानक

जब पहली बार मिले थे हम  
थर-थर कांपती 
लिपियों के बीच मिले थे 
तुमने मुझे 
मेरे नाम से पुकारा था 
बहुत धीमे 
लगभग फुसफुसा कर,
और उन्ही दुबली लिपियों से 
रचा था हमने महाकाव्य ,
भाषा के मौन घर में 
छुप गये थे हम 
डरे हुए परिंदों की तरह, 
फिर एक दिन अचानक 
सुबह सुबह 
कलरव शुरू हुआ 
अपने आप
और आसमान भर गया 
अनगिन इन्द्रधनुषों से . 

38 comments:

  1. "भाषा के मौन घर में
    छुप गये थे हम
    डरे हुए परिंदों की तरह,
    फिर एक दिन अचानक
    सुबह सुबह
    कलरव शुरू हुआ"

    बहुत ख़ूब.
    पढ़ते हुए
    सुशीला जी की कविता
    भ्रम होता है बार-बार
    कहीं पढ़ रहा हूँ
    अज्ञेय को तो नहीं
    फिर से.

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  2. फिर एक दिन अचानक / सुबह सुबह / कलरव शुरू हुआ / अपने आप / और आसमान भर गया / अनगिन इन्द्रधनुषों से ..... बहुत खूब. हर्फ-हर्फ नाजुक अहसास ..... बधाई सुशीला जी.

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  3. अच्छे भाव... बेहतरीन...बधाई..

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  4. बहुत सुन्दर रचना एवं सुन्दर शब्दों से श्रृंगारित ,
    बहुत अर्थपूर्ण और मनभावन
    पढ़कर ह्रदय ने आतंरिक सुख महसूस किया.
    हार्दिक धन्यवाद.

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  5. "बड़ी नाज़ुक सी है, मीठी, हमारी ये कहानी है!
    हजारों कांपते लम्हों से गुजरी जिंदगानी है!
    हमे तो याद है वो दिन , जहाँ तुमसे मिले थे हम,
    उसे हम याद रखेंगे, जो उल्फत की निशानी है!"

    ..........आपकी रचना ने बहुत आनंद दिया!"

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  6. शब्द ही तो थे उन इन्द्रधनुषों में
    भास्वर और अर्थवान
    लिपि को पूर्णता प्रदान करने को आतुर
    शायद तुम्हारी वाणी से झरे हुए
    मैंने कब लिया था कोई नाम
    ये तो हवा थी
    कभी तुम्हारे कानों में फुसफुसाती
    तो कभी मेरे कानों में गुनगुनाती ।
    पपीहे की कूँक और
    चाँद की रोशनी में
    संभव है हम फिर से मिलें
    और रचें कोई महाकाव्य
    इस बार तैरेगी चान्दनी
    हमारे इर्द-गिर्द
    महाकाव्य नहीं होगा
    संयोजन किसी भाषा या लिपि का
    होगा बस आत्मा का संगीत
    मेरी आँखों से झाँकता.......
    सिर्फ तुम्हारी आँखों में।

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  7. कलरव सुन रहा हूँ । अच्छा लग रहा है ।

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  8. लगभग फुसफुसा कर,
    और उन्ही दुबली लिपियों से
    रचा था हमने महाकाव्य

    बहुत सुंदर अनुभूति

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  9. sundar rachna sushila .. naye se bimb taazgi dete hue ..
    indrdhanush si khinch jaati hai kavita ...

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  10. sundar rachna .. naye bimb taazgi de rahe hain .. ek indrdhanush sa kiinchti kavita

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  11. Aisee bemisaal nafees rachana ke liye kya kahun? Khaamosh hun!

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  12. बहुत ही भावपूर्ण है यह...लाजवाब.....सुंदरता से दिल के भाव को शब्द दिया है,दिल को छु गया है।

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  13. सुन्दर ,प्रेममयी कविता !

    'इन्द्रधनुषी रंगों से लथपथ थे
    वे गवाक्ष ,जिन्हें --
    हमारे स्वीकार ने
    सहसा खोल दिया था ! '

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  14. लिपियों के बीच मिले थे
    तुमने मुझे
    मेरे नाम से पुकारा था
    बहुत धीमे
    लगभग फुसफुसा कर

    और आसमान भर गया
    अनगिन इन्द्रधनुषों से .

    बहुत सुन्दर ....इन भावो को और शब्दों की आवशयकता नहीं हैं.

    सादर आभार

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  15. रच लिया महाकाव्य उस चिर मौन में कितना सार्थक है ..बहुत गहरे अर्थ हैं इस रचना में ...आपका आभार

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  16. जब पहली बार मिले थे हम
    थर-थर कांपती
    लिपियों के बीच मिले थे

    lipi...shabd ka prayog bha gaya:)

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  17. बहुत ही सहजता से मन पे उतरती कविता.
    कोमल अभिव्यक्ती.
    एक सुंदर रचना के लिये बधाई!

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  18. फिर एक दिन अचानक
    सुबह सुबह
    कलरव शुरू हुआ
    अपने आप
    और आसमान भर गया
    अनगिन इन्द्रधनुषों से ..
    बहुत सहजता के साथ पूरे एहसास कुछ ही शब्दों में लिख दिए हैं .... डोर ले जाने की क्षमता है इन शब्दों में...

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  19. लगभग निश्चित है...जो अनायास ....घटित हो जाता है...उस पर ये कि....वही जब व्यक्त भी हो जाता है...तो काव्य हो जाता है।

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  20. भाषा का मौन घर.....अच्छी कविता है.

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  21. शुरूआती लम्हों को बहुत खूबसूरती से लफ़्ज़ों में पिरोया है आपने ।
    बेहतरीन ।

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  22. और आसमान भर गया
    अनगिन इन्द्रधनुषों से...

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  23. वाह बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति बधाई हो

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  24. दुबली लिपियों से लिखा गया महाकाव्य !

    बेहद खूबसूरत.

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  25. sunder srijan ho gaya dubli lipiyon se likhte likhte . badhayi.

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  26. ....aur aasmaan ghir gya anginat indradhanusho se.....just beautiful.

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  27. To love is to transform;
    To be a Poet...

    And only lasting beauty
    Is the beauty of heart.

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  28. अद्भुत....शब्द कितना कुछ कह गए ....रोमांटिक !!!!

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  29. सुन्‍दर......भावप्रवण....बधाई....

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  30. कोमल से भावों की सुन्दर परिणिति
    इन्हीं शब्दों में हो सकती है.....

    तुमने मुझे
    मेरे नाम से पुकारा था
    बहुत धीमे
    लगभग फुसफुसा कर,
    *******************
    भाषा के मौन घर में
    छुप गये थे हम ........

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  31. उन्ही दुबली लिपियों से
    रचा था हमने महाकाव्य ,
    भाषा के मौन घर में
    छुप गये थे हम
    डरे हुए परिंदों की तरह


    आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | बधाई और शुभकामनाएं |

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  32. बहुत भावपूर्ण...अद्भुत!!

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  33. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना,
    मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.समाज में समरसता,सुचिता लानी है तो गलत बातों का विरोध करना होगा,
    हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

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  34. jo ankha rh gya ho vo bhi kh dalo
    prindo ko asma me nidr uda dalo
    ki bhav ab ruk nhi skte
    chhnd ab chuk nhi skte
    ki bhavna punah mukharit hui hai
    tumhare spt rngo se nha ke
    kvita our bhi pardrshi hui hai

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