क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का
कितनी नदियाँ आयीं और कहाँ खो गई
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे
कैसे पुकारे
मीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाये
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश
नमक किसे नही चाहिए
लेकिन सबकी जरूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोये
क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरूध्द
उसके उछाल की सजा है यह
कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों मे नमक है या नही
नमक नहीं है उसके स्वप्न मे
मुझे पता है
मै बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी
की इच्छा के बारे मे सोचता हूँ
पछाड़े खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर मे समुद्र
अभी -अभी बादल
अभी -अभी बर्फ
अभी -अभी बर्फ
अभी -अभी बादल ।
--- नरेश सक्सेना