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Tuesday, April 21, 2009

संदेश

प्रेम करती हूँ तुम्हे/सघन चीड़ों के बीच
हवा सुलझाती है अपने को
चमकता है चाँद phosphorus की तरह
घुमक्कड़ पानियों पर
दिन जा रहे एक समान, पीछा करते एक दूजे का
पसर जाती बरफ नाचते लोगों के बीच
पश्चिम की ओर से फिसल जाती नीचे
एक चमकीली समुद्री चिडिया
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी भोर ही में
भीगी होती मेरी आत्मा भी
सबसे बड़ा तारा मुझे तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ, हवाओं में,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के साथ तार से संदेश भेजते हुए............

8 comments:

  1. bahut sundar .... bhaav gahare hai...

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  2. maaza aa gaya.....!!!

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  3. बहुत खूब .आपकी शाएरी वाकई बेखौफ और संजीदा है.

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  4. बेखौफ ही नहीं बेलौस भी है।
    शानदार

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  5. बहुत कोमल, कमल के पत्तों जैसी एकदम ...

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  6. यूँ अपने आप से प्यार करना और तुम शब्द का बहाना करना,आपकी direct approach भी चलेगी!

    बहुत सुन्दर रचना है.

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  7. वाह ...बहुत सुन्दर एहसास

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  8. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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