तुम्हारा वह चुम्बन जिसमे घुली होती है ईश्वर की आँख झंकृत करती रहती है अनवरत मेरे जीवन के तार उसमे भीगा होता है पूरा का पूरा समुद्र पूनम के चाँद को समेटे नहा लेती हूँ मै अखंड आद्रता चांदनी ओढ़ कर वहां विहँसता है बचपन और घुटनों के बल सरकता है समय अपनी ढेर सारी निर्मल शताब्दियों के साथ सहेज लेती हूँ उसे जैसे सहेजती है मां पृथ्वी की तरह अपनी कोख .