सुशीला पुरी
न सही कविता ये मेरे हाथों की छटपटाहट ही सही ..........
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Thursday, June 25, 2009
तंदुल और मैं
सुदामा के तंदुल सी मैं
छुपती रही यहाँ -वहां
तुम मिले
तुमने छुआ
मुझे मिला
प्रेम का ऐश्वर्य।
गेंद और मैं
गेंद थी मै
लेकर चली गई
यमुना की अतल गहराइयों में
और जब उबरे
लहरों पर नर्तन था
और थी बांसुरी की धुन ।
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