तुम्हारा नाम
पैदा करता है
नजरों में ठहराव
किसी भी गणित से परे
बार-बार तुम्हारा नाम
क्यूँ टकराता है मुझसे ?
कभी गली के किसी मोड़ पर
चौराहे की चहल-पहल
या राह चलते किसी घर पर
ठिठक जाती हैं नजरें
विमुग्ध हो जाती हूँ मैं,
हथेली पर बहुधा
लिखती हूँ तुम्हे
छू लेती हूँ हौले से
भर लेती हूँ ऊर्जा,
अक्सर किताबों में
लिख देती हूँ तुम्हे
घर की दीवारों पर
बिना लिखे ही दिखता है
तुम्हारा नाम
तुम्हारे नाम के नीचे
लिख देती हूँ अपना नाम
और मेरी संवेदना पा लेती है
सामीप्य का एहसास,
तुम्हारा नाम लिख कर
सुंदर अल्पना में छुपा देती हूँ
और तुम्हारी उपस्थिति
भर देती है प्राणों में उल्लास,
तुम्हारा नाम
मानो पूरी परिधि वाला कवच
मैं बड़ी निश्चिंत हूँ उसके भीतर.
Friday, April 24, 2009
Tuesday, April 21, 2009
संदेश
प्रेम करती हूँ तुम्हे/सघन चीड़ों के बीच
हवा सुलझाती है अपने को
चमकता है चाँद phosphorus की तरह
घुमक्कड़ पानियों पर
दिन जा रहे एक समान, पीछा करते एक दूजे का
पसर जाती बरफ नाचते लोगों के बीच
पश्चिम की ओर से फिसल जाती नीचे
एक चमकीली समुद्री चिडिया
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी भोर ही में
भीगी होती मेरी आत्मा भी
सबसे बड़ा तारा मुझे तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ, हवाओं में,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के साथ तार से संदेश भेजते हुए............
हवा सुलझाती है अपने को
चमकता है चाँद phosphorus की तरह
घुमक्कड़ पानियों पर
दिन जा रहे एक समान, पीछा करते एक दूजे का
पसर जाती बरफ नाचते लोगों के बीच
पश्चिम की ओर से फिसल जाती नीचे
एक चमकीली समुद्री चिडिया
मैं उठ जाती हूँ कभी-कभी भोर ही में
भीगी होती मेरी आत्मा भी
सबसे बड़ा तारा मुझे तुम्हारी नज़र से देखता है
और जैसे मैं तुम्हे प्यार करती हूँ, हवाओं में,
देवदार गाना चाहते हैं तुम्हारा नाम
अपने पत्तों के साथ तार से संदेश भेजते हुए............
Saturday, April 18, 2009
Thursday, April 16, 2009
Monday, April 13, 2009
Sunday, April 12, 2009
Sunday, April 5, 2009
गिरना
गिरो जैसे गिरती है बर्फ
ऊँची चोटियों पर
जहाँ से फूटती है मीठे पानी की नदियाँ
गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह
रीते पात्र में पानी की तरह गिरो
उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए
गिरो आंसू की एक बूंद की तरह
किसी के दुःख में
गेंद की तरह गिरो
खेलते बच्चों के बीच
गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह
एक कोंपल के लिए जगह खाली करते हुए_____नरेश सक्सेना जी (साभार- तदभव)
ऊँची चोटियों पर
जहाँ से फूटती है मीठे पानी की नदियाँ
गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह
रीते पात्र में पानी की तरह गिरो
उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए
गिरो आंसू की एक बूंद की तरह
किसी के दुःख में
गेंद की तरह गिरो
खेलते बच्चों के बीच
गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह
एक कोंपल के लिए जगह खाली करते हुए_____नरेश सक्सेना जी (साभार- तदभव)
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